UOU BA 1st Year History Solved Question Paper PDF

UOU BA 1st Year History Solved Question Paper PDF

इस पेज पर Uttarakhand Open University के छात्रों के लिए BA First Year History Question Paper का Solution दिया गया है | यहाँ आपको पेपर में दिए गये सभी प्रश्नों का उत्तर हिंदी लैंग्वेज में मिलेंगे |

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नीचे Solved Papers दिए गये हैं |

UOU BA 1st Year History Solved Question Paper PDF (First Paper)

💖 इस सेक्शन में उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए बीए फर्स्ट इयर हिस्ट्री (इतिहास) के फर्स्ट पेपर के क्वेश्चन (प्रश्नों) का आंसर (उत्तर) दिया गया है | 💖

Section – A (खंड – क)

Q1. Analyze the Importance of Literary of Literature and Archaeological Sources for the Reconstruction of Ancient Indian History.

(प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए साहित्यिक एवं पुरातात्विक स्रोतों के महत्त्व का विश्लेषण कीजिए)

उत्तर – 

प्राचीन भारतीय इतिहास की पुनर्निर्माण में साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोतों का महत्व अत्यंत उच्च है। ये दोनों स्रोत अलग-अलग पहलुओं से प्राचीनता के समय की जानकारी प्रदान करते हैं, जो सामजिक, आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं की समझ में महत्वपूर्ण है।

1. **साहित्यिक स्रोतों का महत्व**: प्राचीन भारतीय साहित्य, जैसे कि वेद, पुराण, इतिहास, काव्य, और धार्मिक ग्रंथ, प्राचीन भारतीय समाज, धार्मिक प्रथाओं, और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं का विवरण प्रदान करते हैं। ये स्रोत विभिन्न कालों और क्षेत्रों के समाज की जीवनशैली, आचार-व्यवहार, और राजनीतिक प्रणाली का विवरण करते हैं।

2. **पुरातात्विक स्रोतों का महत्व**: पुरातात्विक खोज और उनकी अद्भुत खोजों ने प्राचीन भारतीय समाज और सभ्यता के विकास को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। खुदाई, शिलालेख, मूर्तियाँ, और अन्य खोजों ने हमें प्राचीन भारत के जीवन की अनेक पहलुओं के बारे में जानकारी प्रदान की है।

3. **दोनों स्रोतों के समन्वय का महत्व**: साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोतों का समन्वय करके, हमें प्राचीन भारत के समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, सांस्कृतिक आधार, और इतिहास के विभिन्न पहलुओं का पूर्णतः और व्यापक चित्र मिलता है।

4. **ताल्लुक्यात्मक अध्ययन की अनिवार्यता**: साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोतों को एकसाथ लेकर अध्ययन करने से हमें प्राचीन भारतीय समाज और सभ्यता के सम्पूर्ण चित्र का एक समृद्ध और संगत विवरण प्राप्त होता है।

इस प्रकार, साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोतों का संयोजन हमें प्राचीन भारतीय इतिहास के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान करता है, और हमें समाज, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रक्रियाओं की समझ में मदद करता है।


Q2. Discuss the Main Features of Urbanization in Harrapan Civilization.

(हड़प्पा सभ्यता के नगरीकरण की मुख्य विशेषताओं का विवेचन कीजिए)

उत्तर – 

हड़प्पा सभ्यता में शहरीकरण की प्रमुख विशेषताओं पर चर्चा करते हैं:

1. **नियोजित शहरों**: हड़प्पा के शहरों की महत्वाकांक्षा से नियोजित थी, जो ग्रिड की तरह के लेआउट के साथ थे, जिनमें सड़कें लगभग लंबी दीवारों के किनारे बनाई गई थीं। शहरों की नींवें ईंटों से बनी थीं, जो मिट्टी या कीचड़ से बनी थीं, जो शहरी नियोजन और निर्माण में उच्च स्तर की संगठनात्मक योजना और प्राधिकरण की उपस्थिति को दर्शाती है।

2. **उन्नत नाली प्रणाली**: हड़प्पा के शहरों का एक अत्यधिक प्रमुख विशेषता उनकी विनम्र नाली प्रणाली थी। शहरों में अच्छी योजना और व्यापक भूमिगत नाली, ढके हुए गंदे पानी के नाले और सार्वजनिक स्नानघरों के साथ थे, जो उन्नत शहरी इंजीनियरिंग और स्वच्छता के उच्च स्तर को दर्शाते हैं।

3. **किला और निचले शहर**: हड़प्पा के शहरों में सामान्यत: एक दुर्ग जो ऊंची भूमि पर स्थित होता था और निचले शहरों जो नीचे फैले होते थे, के साथ दो-पाया संरचना थी। दुर्ग शायद प्रशासनिक और धार्मिक संरचनाओं को निवास कराता था, जबकि निचले शहर निवासी और वाणिज्यिक क्षेत्र थे।

4. **व्यापक व्यापार नेटवर्क**: हड़प्पा सभ्यता में शहरीकरण का समर्थन व्यापक व्यापार नेटवर्कों द्वारा किया गया था, सभी नागरिकीकृत सम्राटीय रीतियों और पड़ोसी क्षेत्रों के साथ। खुदाई के परिणाम, जैसे मोहरे और मिट्टी के बर्तन, ने मेसोपोटेमिया, अफगानिस्तान, और अरबी द्वीप से व्यापारिक संबंधों को दर्शाया, जो वाणिज्य पर आधारित एक समृद्ध अर्थव्यवस्था को सुझाता है।

5. **शिल्प विशेषज्ञता**: हड़प्पा शहरों में विशेषज्ञ शिल्प उत्पादन की उपस्थिति संदिग्ध करती है कि श्रेष्ठ वित्तीय रीतियों का विकास हुआ था। पोत, धातुकर्म, और आभूषण जैसे उत्पादों का अभिलाषी उत्पादन प्रदर्शित करते हैं, जो कुशल शिल्पकारों और एक विकसित आर्थिक प्रणाली की उपस्थिति

को दर्शाते हैं।

6. **मानक वजन और माप**: अर्थव्यवस्था के व्यवस्थित संरचन की प्रमुख पहचानों में से एक मानक वजन और माप का प्रयोग है। मानक वजन और माप का उपयोग व्यापारिक लेनदेन को सुविधाजनक बनाता है और शहरी जीवन की समग्र कुशलता में योगदान करता है।

7. **सामाजिक विभाजन के सबूत**: हड़प्पा के शहरों का खाका, जहां दुर्ग निचले शहर पर नजर डालता है, सामाजिक विभाजनों और संभावना की उपस्थिति को सुझाता है। हालांकि, हड़प्पा के सामाजिक संरचना और शासन की सटीक प्रकृति इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के बीच विवाद का विषय रहा है।

सम्ग्रतः, हड़प्पा सभ्यता में शहरीकरण प्राचीन दक्षिण एशिया में नगरीय जीवन के प्रारंभिक विकास के बारे में महत्वपूर्ण उपलब्धियों की एक अद्भुत उपलब्धि का प्रतिनिधित्व करता है।


Q3. Describe the Society and Economy As Reflected in Sangam Literature.

(संगम साहित्य में परिलक्षित समाज और अर्थव्यवस्था का वर्णन कीजिये)

उत्तर – 

संगम साहित्य में समाज और अर्थव्यवस्था का वर्णन विस्तारपूर्वक किया गया है, जो तमिलनाडु के प्राचीन समय की जीवनशैली और समाज की प्रतिबिम्बिति है। यह साहित्य तीन संगम कालों (आदि, मध्यम, अन्तिम) में लिखा गया था और समृद्ध सामाजिक और आर्थिक विविधताओं को दर्शाता है।

1. **समाजिक व्यवस्था**: संगम साहित्य में समाज का चित्रण बहुत विविध है। यहां पर उत्कृष्ट वर्गीय विभाजन दिखाई गई है, जैसे राजा, समंत, वैश्य, और शूद्र। समाज में महिलाओं का महत्वपूर्ण स्थान है, जिन्हें कवियों ने सम्मान दिया है।

2. **आर्थिक व्यवस्था**: संगम समय में अर्थव्यवस्था प्रगतिशील थी। व्यापार और व्यवसाय की व्यापकता को साक्षात्कार किया गया है, जिसमें समुद्र तट के लिए व्यापार, कृषि, और वन उत्पादों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।

3. **साहित्यिक समृद्धि**: संगम काव्य में समाज के विभिन्न पहलुओं का विवरण है, जिसमें धार्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दे शामिल हैं। यह काव्य साहित्य के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है और समृद्धि के साथ शिक्षा और मनोरंजन को भी प्रदान करता है।

4. **राजनीतिक संरचना**: संगम साहित्य में राजनीतिक संरचना का विवरण भी है, जो राजा और उनके सामंतों के संबंधों, राजनीतिक नीतियों, और राजा के कर्तव्यों के बारे में बताता है।

5. **साम्राज्य का प्रतिकृति**: कई संगम कवियों ने साम्राज्य की प्रतिकृति किया है, जिसमें समाज के विभिन्न पहलुओं का उल्लेख है, जैसे धर्म, सामाजिक समर्थन, और समृद्धि के लिए योजनाएँ।

संगम साहित्य ने तमिलनाडु के प्राचीन समय की समृद्ध और विविध समाज और अर्थव्यवस्था को एक अद्वितीय दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है, जिससे हमें उस समय के सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों का अध्ययन करने का अवसर मिलता है।


Q4. Analyze the Essential Characteristics of Asoka’s Dhamma.

(अशोक के धम्म के मूल अभिलक्षणों का विश्लेषण कीजिए)

उत्तर – 

अशोक का धर्म एक महत्वपूर्ण विचारधारा थी, जो उनके शासन की मुख्य विशेषताओं में से एक थी। अशोक का धर्म न केवल धार्मिकता के आधार पर ही था, बल्कि सामाजिक न्याय, सामाजिक कल्याण, और व्यावसायिक समृद्धि को बढ़ावा देने की भी विचारधारा थी। निम्नलिखित मुख्य विशेषताएं अशोक के धर्म के महत्वपूर्ण पहलुओं को विशेषता देती हैं:

1. **अहिंसा का प्रचार**: अशोक का धर्म अहिंसा को महत्व देता था। वे युद्धों का त्याग कर, शांति की बजाय समझौता को प्रोत्साहित करते थे। इसके अलावा, अहिंसा का अध्ययन और अनुसरण करने की प्रोत्साहना की गई।

2. **सामाजिक कल्याण**: उनका धर्म सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देता था। उन्होंने अनेक धर्मिक और सामाजिक निर्देश जारी किए, जिनमें विधवाओं, असहाय लोगों, और प्राणियों की रक्षा को बढ़ावा दिया गया।

3. **समानता का सिद्धांत**: अशोक का धर्म समानता के सिद्धांत को प्रचारित करता था। उन्होंने सभी धर्मों को समान दर्जे का स्थान दिया और सभी धर्मों के अनुयायियों का सम्मान किया।

4. **धर्मनिरपेक्षता**: अशोक का धर्म धर्मनिरपेक्ष था, यानी उन्होंने किसी एक विशेष धर्म की प्राथमिकता नहीं दी और सभी धर्मों के समर्थकों को सम्मान दिया।

5. **धार्मिक शिक्षा**: अशोक का धर्म धार्मिक शिक्षा को प्रोत्साहित करता था। उन्होंने लोगों को धर्मिक सद्भावना, करुणा, और साधुता के महत्व के बारे में सिखाया।

अशोक का धर्म उनके शासन की प्रमुख विशेषता थी, जो उन्हें एक अद्वितीय और प्रेरणादायक राजा बनाती है। उनका धर्म न केवल धार्मिक वैशिष्ट्यों का प्रचार करता था, बल्कि सामाजिक न्याय, शांति, और समृद्धि के लिए भी प्रेरित करता था।


Q5. Describe the Main Features of the Mauryan Economy.

(मौर्य अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये)

उत्तर –

मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था के कई मुख्य विशेषताएँ थीं। निम्नलिखित मुख्य विशेषताओं का वर्णन करते हैं:

1. **कृषि**: मौर्य समय में कृषि अर्थव्यवस्था का मुख्य स्तंभ था। अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी, और धान, गेहूं, और खड़ी फसलें प्रमुख उत्पादन थे।

2. **व्यापार**: मौर्य समय में व्यापार भी महत्वपूर्ण था। व्यापारिक गतिविधियों में धातु, कपड़ा, और खाद्यान्न के उत्पाद शामिल थे।

3. **धातु और खनिज संसाधनों का उपयोग**: मौर्य समय में धातुओं और खनिज संसाधनों का उपयोग भी हुआ। सोने, चांदी, और लोहे की खानों से अधिक धन प्राप्त हुआ और उनका उपयोग सिक्के बनाने में किया गया।

4. **सड़क और समर्थन व्यवस्था**: मौर्य समय में सड़क और समर्थन व्यवस्था का विकास हुआ। सड़कों का निर्माण और दुर्ग स्थापना की गई थी, जो व्यापार और प्रशासन को समर्थन करते थे।

5. **धन्यवादी आर्थिक नीति**: मौर्य समय में धन्यवादी आर्थिक नीति अपनाई गई थी। सम्राट के शासन के अधीन जमींदारों और किसानों को उचित राजनीतिक और आर्थिक स्थितियों में रखा गया था।

6. **मौद्रिक नीति**: मौर्य समय में मौद्रिक नीति को महत्व दिया गया था। इस समय सिक्के का विकास हुआ और व्यापार को संवारने के लिए सिक्के का उपयोग किया गया।

7. **सामाजिक न्याय**: मौर्य समय में सामाजिक न्याय को महत्व दिया गया था। सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने न्यायपालिका की स्थापना की, जो लोगों को न्यायपूर्ण और समान न्याय प्रदान करती थी।

मौर्य समय की अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ इन मुख्य क्षेत्रों में थीं, जिन्होंने भारतीय इतिहास में इस काल को विशेष बनाया।

Section – B (खंड – ख)

Q1. Society and Polity During Later Vedic Period.

(उत्तर वैदिक कालीन समाज एक राजनीति)

उत्तर –

वैदिक काल के अंत के दौरान, भारतीय समाज और राजनीति में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इस दौरान, समाज का ढांचा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के क्षेत्रों में विकसित हुआ। वैदिक समाज में चार वर्ण व्यवस्था की अवधारणा थी, जिसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र थे। यह वर्ण व्यवस्था समाज को व्यवस्थित करने और समृद्धि के साधन के रूप में काम करती थी।

राजनीतिक रूप से, वैदिक काल में जनपद संगठन का प्रचलन था, जिसमें समाज के विभिन्न समूहों के नेता सामंत या जनपदपति के रूप में जाने जाते थे। इन समूहों के नेता अपने क्षेत्र में राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव की दृष्टि से महत्वपूर्ण थे।

इस दौरान, वैदिक साहित्य और धार्मिक विचार भी विकसित हुआ। वेदों की रचनाएँ हुईं, जिनमें ब्राह्मण, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद शामिल हैं। यह साहित्य और धार्मिक विचार भारतीय समाज के आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन को मोल देते हैं और विभिन्न आचार्यों द्वारा प्रचारित किए जाते थे।

इस दौरान, वैदिक समाज में यज्ञ और पूजा का महत्व था, जो धार्मिक और सामाजिक अदालत की स्थापना करता था। ध्यान देने योग्य है कि वैदिक काल के समाज में महिलाओं की स्थिति समृद्धि नहीं करती थी, और वे पुरुषों के समान अधिकार नहीं थे।

यह वैदिक काल का समाजिक और राजनीतिक परिवेश कुछ हद तक वर्णित करता है, जो भारतीय सभ्यता के विकास के लिए महत्वपूर्ण था।

Q2. Significance of Geographical Factors in Ancient Indian History.

(प्राचीन भारतीय इतिहास में भौगोलिक कारकों का महत्त्व)

उत्तर –

प्राचीन भारतीय इतिहास में भौगोलिक कारकों का महत्व बहुत अधिक रहा है। ये कारक समृद्धि, समाज, राजनीति, और संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं।

पहले, भौगोलिक स्थिति ने व्यापारिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को सुनिश्चित किया। भारत का अपना व्यापारिक स्थान था, जिसने विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के साथ व्यापार और आदान-प्रदान किया। यहाँ तक कि भारत के भूगोल ने धातुओं, मसालों, और अन्य सामग्री की आपूर्ति को भी प्रभावित किया।

दूसरे, भौगोलिक दृष्टिकोण से, भारत की भूमि का स्थान सैन्य रणनीति में भी महत्वपूर्ण था। इसके साथ ही, यहाँ के प्राकृतिक परिस्थितियाँ युद्ध और सामरिक रणनीति को प्रभावित करती थीं।

तीसरे, भौगोलिक क्षेत्रों ने समाज के संरचना में भी अहम भूमिका निभाई। जैसे कि जलवायु, भूमि, और प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर जाति और समुदायों का विकास हुआ।

इस प्रकार, भौगोलिक कारकों ने प्राचीन भारतीय इतिहास के विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो समाज, संस्कृति, और राजनीति के विकास को प्रभावित किया।

Q3. Comment on Buddhism and Jainism.

(बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म पर टिपण्णी कीजिए)

उत्तर –

प्राचीन भारतीय इतिहास में बौद्ध और जैन धर्म का महत्वपूर्ण स्थान है। ये धर्म भारतीय समाज और संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं।

बौद्ध धर्म गौतम बुद्ध के शिक्षाओं पर आधारित है, जिन्होंने संसार के दुःखों के उत्तान के लिए चार महासत्यों की ओर इशारा किया। बौद्ध धर्म में अहिंसा, सहानुभूति, और संयम को महत्व दिया गया। इसके प्रेरक शिक्षाओं ने भारतीय समाज को धार्मिक, सामाजिक, और राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रभावित किया।

जैन धर्म भगवान महावीर के उपदेशों पर आधारित है, जो जीवन के साथ अहिंसा, अपरिग्रह, और सत्य को महत्व देते हैं। जैन धर्म ने सामाजिक असमानता और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई। इसके सिद्धांतों ने भारतीय समाज को धार्मिक समृद्धि और विश्वास में संशोधन किया।

बौद्ध और जैन धर्म ने समाज में विशेष रूप से ज्ञान, शिक्षा, और सामाजिक न्याय को प्रमोट किया। ये धर्म संगठित समाज के रूप में अपनी स्थिति बना लिए और भारतीय सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए।

इस प्रकार, बौद्ध और जैन धर्म प्राचीन भारतीय इतिहास के रूप में एक महत्वपूर्ण अध्याय बन गए हैं, जो सामाजिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भारतीय समाज को आगे बढ़ाने में मदद की।

Q4. Comment on Pratilom Vivah.

(प्रतिलोम विवाह पर चर्चा कीजिए)

उत्तर –

प्राचीन भारतीय इतिहास में प्रातिलोम विवाह एक महत्वपूर्ण विषय है। इस विवाह पद्धति में, वर्ण संरचना के विपरीत होता था, जिसमें ऊची वर्ण के पुरुष नीची वर्ण की स्त्रियों से विवाह करते थे। इस प्रकार का विवाह वैदिक समाज में अप्रत्याशित था और विभिन्न समाजिक और धार्मिक प्रतिबंधों का सामना करता था।

प्रातिलोम विवाह की आम धारणा थी कि यह आदर्श नहीं है और इससे समाज के संरक्षण में कठिनाईयाँ उत्पन्न होती थीं। इसके बावजूद, ऐसे विवाह के उदाहरण इतिहास में मिलते हैं।

प्रातिलोम विवाह के विषय में चर्चा इस प्रकार करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक ऐसा पहलू है जो वैदिक समाज के सामाजिक और धार्मिक नजरिए को समझने में मदद कर सकता है। इससे समझा जा सकता है कि समाज किस प्रकार के नियमों और मान्यताओं को महत्व देता था और कैसे उसकी सोच और संरचना विकसित हुई।

Q5. Comment on Tamil Sangam.

(तमिल संगम का वर्णन कीजिए)

उत्तर –

तमिल संघम प्राचीन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा है। यह एक साहित्यिक समूह था जो तमिल भाषा और साहित्य को प्रोत्साहित करता था। इसे तमिलनाडु के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है, और इसका उद्भव समय के बाद 300 ईसा पूर्व से लेकर 300 ईसा उत्तीर्ण तक माना जाता है।

तमिल संघम के दौरान, उसके सदस्य तमिल कवियों, लेखकों, और श्रोताओं को मिले और विभिन्न विषयों पर साहित्यिक कार्य किया। यहां काव्य, नाटक, उपन्यास, और विभिन्न शैलियों की कहानियाँ लिखी गईं।

तमिल संघम के काव्य कविताओं में जीवन, प्रेम, प्राकृतिक सौंदर्य, और धर्म के विभिन्न पहलुओं का विवरण होता है। यह साहित्य भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में माना जाता है और इसने भारतीय साहित्य को अमूल्य धरोहर दिया है।

इस प्रकार, तमिल संघम ने प्राचीन भारतीय इतिहास में एक अहम स्थान बनाया, जो भारतीय साहित्य और संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया।

Q6. Comment on Gupta Art and Architecture.

(गुप्त कला एवं स्थापत्य पर टिपण्णी कीजिए)

उत्तर –

गुप्त कला और वास्तुकला भारतीय इतिहास के एक उच्च और महत्वपूर्ण संदर्भ के रूप में जानी जाती है। गुप्त समय, जो चौथी से आठवीं सदी के बीच था, भारतीय सभ्यता के उत्कृष्ट विकास और समृद्धि का काल था। इस काल में भारतीय सांस्कृतिक, साहित्यिक, और कला की प्राचीनता की महानता को गौरवशाली रूप में दिखाया गया।

गुप्त कला का विकास और प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में दिखाई देता है, जैसे कि मंदिरों, स्तूपों, और विहारों के निर्माण में। गुप्त समय की वास्तुकला का मुख्य लक्ष्य धार्मिक और सांस्कृतिक संरक्षण करना था, और इसका परिणाम भव्य और आकर्षक संरचनाओं का निर्माण हुआ।

गुप्त काल के शासकों ने अपने प्रत्येक निर्माण में सौंदर्य, स्थिरता, और स्थायित्व का ध्यान रखा। उन्होंने भव्य और श्रद्धा के साथ मंदिरों का निर्माण किया, जो अपनी विशेष भूमिका में धार्मिक और सांस्कृतिक अनुष्ठानों के लिए स्थान बने। गुप्त काल के मंदिरों की विशेषता उनके विस्तारण और वास्तुकला में उनकी ऊर्ध्वाधारिता में है।

गुप्त समय के आधुनिक स्थापत्यकलाकारों ने अद्वितीय और शैलीष्ठ रूप में गुप्त कला को आधुनिक समय तक यादगार बनाया। इनके निर्माणों में उन्होंने पत्थर, लकड़ी, और अन्य सामग्री का उपयोग किया, जिनसे वे सुंदरता और शैली का महान काम करते थे।

गुप्त कला और वास्तुकला का प्रभाव अभी भी भारतीय सांस्कृतिक विरासत में महसूस किया जा सकता है। इसकी सुंदरता, महानता, और विशेषता ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रशंसा पाई है, और इसने भारतीय कला और सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध और प्रभावी बनाया है।

Q7. Comment on Maurya’s Taxation.

(मौर्यकालीन कर व्यवस्था पर चर्चा कीजिए)

उत्तर –

मौर्य साम्राज्य का कर व्यवस्था प्राचीन भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण था। चंद्रगुप्त मौर्य और उसके पुत्र सम्राट अशोक के शासनकाल में, तरल कर या ‘भोगवृद्धि’ की व्यवस्था थी, जिसे ‘बालूत्थक’ भी कहा जाता था।

इस कर व्यवस्था के अनुसार, भूमि का 1/4 या एक चौथाई भाग कर के राजा को दिया जाता था। इसके अलावा, अधिकतर उत्पाद राजकीय अधिकार में रहता था, जिसका अंश कर या मूल्य के रूप में स्वीकृत किया जाता था।

बालूत्थक के अलावा, मौर्य साम्राज्य में अन्य करों का भी उल्लेख है, जैसे कि मुक्त, साधारण, और निधान कर। इन करों का उपयोग सम्राट के समर्थकों के अनुसार समय-समय पर किया जाता था।

मौर्य साम्राज्य का कर व्यवस्था उसके सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण था। यह न केवल साम्राज्य को वित्तीय संसाधनों का अच्छे ढंग से प्रबंधित करने में मदद करता था, बल्कि इसके द्वारा साम्राज्य के विकास और विस्तार के लिए आवश्यक संसाधन भी प्राप्त होते थे।

Q8. Comment on Varna System and Gotra System.

(वर्णव्यवस्था एवं गोत्र व्यवस्था का विश्लेषण कीजिए)

उत्तर –

वर्ण और गोत्र दो प्रमुख प्रणालियाँ हैं जो प्राचीन भारतीय समाज में सामाजिक और पारंपरिक व्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करती थीं।

वर्ण प्रणाली भारतीय समाज को चार मुख्य वर्गों में विभाजित करती थी: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र। यह वर्ण प्रणाली व्यक्ति के कर्मों और धर्म के आधार पर उन्हें उनके सामाजिक स्थान पर रखती थी। ब्राह्मणों को वेदों का अध्ययन और प्रचारण, क्षत्रियों को राजनीतिक और सुरक्षा कार्य, वैश्यों को वाणिज्यिक और व्यापारिक काम, और शूद्रों को सेवा कार्यों में लगाया जाता था।

गोत्र प्रणाली ने व्यक्ति की पारिवारिक परंपरा और वंशावली का प्रतिनिधित्व किया। गोत्र विशेष संगठन थे जो लोगों को उनके वंश की पहचान और संबंध को दिखाते थे। प्रत्येक गोत्र के पास अपना विशेष इतिहास और कथा होती थी, जो उस समाज की विरासत को प्रभावित करती थी।

इन दो प्रणालियों ने प्राचीन भारतीय समाज की संरचना और सामाजिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह सिस्टम लोगों के संबंधों, कर्मों, और परंपरागत संदर्भों को स्थायित करने में मदद करते थे, जिससे समाज में संरक्षण और संरचना की भावना बनी रहती।

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UOU BA 2nd Year History Solved Question Paper PDF (Second Paper)

💖 इस सेक्शन में उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी के छात्रों के लिए बीए फर्स्ट इयर हिस्ट्री (इतिहास) के सेकंड पेपर के क्वेश्चन (प्रश्नों) का आंसर (उत्तर) दिया गया है | 💖

Section – A (खंड – क)

Q1. Briefly Describe the Political and Social Condition of Northern India on the Eve of Arab Invasion.

(अरब आक्रमण की पूर्व संध्या पर उत्तरी भारत की राजनैतिक तथा सामाजिक दशा का संक्षिप्त विवरण दीजिए)

उत्तर –

अरब आक्रमण से पहले, उत्तरी भारत में राजनीतिक और सामाजिक स्थिति बहुत विविध थी। यहां प्राचीन भारतीय संस्कृति के कई शैलियां, संगठन, और समाजिक प्रथाओं के संगम होते थे। इस क्षेत्र में गुप्त साम्राज्य, पल और प्रतिहार राजवंश, और विभिन्न राज्यों के शासकों के साम्राज्य थे, जो राजनीतिक और सांस्कृतिक विकास के केंद्र थे।

उत्तरी भारतीय समाज में जाति व्यवस्था गहन रूप से स्थापित थी। इसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र जातियां थीं। हर जाति की अपनी समाजिक और आर्थिक स्थिति थी और उन्हें नियमों और धार्मिक आचरणों के अनुसार काम करना था। समाज में विवाह, परंपरागत संस्कार, और धार्मिक आचरणों को महत्व दिया जाता था।

उत्तरी भारत के इस समय में राजनीतिक स्थिति अस्थिर थी। स्थानीय राजा और महाराजा अपनी शक्ति को बनाए रखने के लिए प्रतिस्पर्धा करते थे। सामरिक संघर्ष, सामंतों के बीच समझौते और संघर्ष, और विभिन्न राज्यों के बीच संघर्ष और सहयोग दोनों देखे जा सकते थे।

अरब आक्रमण के समय, उत्तरी भारत की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति अधिकांशत: अस्थिर और अपरिष्कृत थी। उत्तरी भारत के सम्राटों के बीच विशेष रूप से अजीबोगरीब जंगली असमंजस थे, जो उन्हें अरब आक्रमण के समय में कमजोर कर दिया था। अरब आक्रमण ने उत्तरी भारत की सामाजिक और राजनीतिक संरचना पर भारी प्रभाव डाला और उत्तरी भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में मानी जाती है।

Q2. Discuss the Social Condition of India and the Eve of Mahmud Ghazani’s Invasion.

(महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की सामाजिक दशा की विवेचना कीजिए)

उत्तर –

महमूद गजनी के आक्रमण के पूर्व भारत की सामाजिक स्थिति का विस्तारपूर्वक वर्णन करने के लिए, हमें पहले भारत की सामाजिक संरचना और समाज के प्रमुख तत्वों को समझने की आवश्यकता है। इसके बाद हम उस समय के सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक दृष्टिकोण को विशेष रूप से विश्लेषण करेंगे जब महमूद गजनी ने भारत के संदर्भ में अपने आक्रमण की प्रारंभिक घटनाओं का आयोजन किया।

भारत की सामाजिक संरचना उस समय बहुत विविध और विकसित थी। वहाँ विभिन्न जातियां, समुदाय, और संस्कृतियां एक साथ निवास करती थीं, जिनमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र जातियां संज्ञान में लाई जाती थीं। इसके अलावा, अनेक उपजातियां भी थीं जो अपने-अपने सामाजिक और आर्थिक वर्गों में जीवन यापन करती थीं। समाज में विवाह, धर्म, और अन्य सामाजिक कार्यकलापों का महत्वपूर्ण स्थान था।

महमूद गजनी के आक्रमण से पहले, भारत की राजनीतिक स्थिति भी काफी विविध थी। उत्तर भारत में विभिन्न राज्य और साम्राज्य थे, जिनमें गुजरात, कानौज, कश्मीर, दिल्ली, अयोध्या, और प्रयाग शामिल थे। ये राज्य अपने-अपने संस्कृति, भाषा, और आर्थिक प्रणाली में विभिन्नता दिखाते थे। इन राज्यों के बीच सामरिक संघर्ष, राजनीतिक समझौते, और विपरीतता भी देखी जा सकती थी।

महमूद गजनी के आक्रमण की प्रारंभिक घटनाओं के समय, भारतीय समाज और राजनीति में कुछ गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा था। राज्यों के बीच संघर्ष और विपरीतता थी, और सम्राटों के अन्यायपूर्ण आचरणों के कारण समाज में अस्थिरता बढ़ रही थी। सम्राटों के अंधाधुंध करण, भ्रष्टाचार, और विपरीतता के कारण सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता बढ़ गई थी।

इस संदर्भ में, महमूद गजनी का आक्रमण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। वह न केवल भारत के आर्थिक संसाधनों को लूटने आया था, बल्कि उसका आक्रमण भारतीय समाज और राजनीति को भी पूरी तरह

से परिवर्तित कर दिया। उसके आक्रमण ने भारतीय समाज की अस्थिरता को और बढ़ा दिया और सामाजिक और आर्थिक दुर्बलता को व्यापक रूप से प्रभावित किया।

इस प्रकार, महमूद गजनी के आक्रमण से पहले की भारतीय सामाजिक और राजनीतिक स्थिति की विस्तृत चित्रण के आधार पर हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि भारत महमूद गजनी के आक्रमण से पहले एक विस्तृत, समृद्ध, और विविध समाज और राजनीतिक संरचना के साथ स्थित था, जिसमें विभिन्न राज्यों और समाजों के बीच सामरिक और आर्थिक संघर्ष और सहयोग दोनों हुआ करता था। महमूद गजनी के आक्रमण ने इस संरचना को पूरी तरह से परिवर्तित कर दिया और भारतीय समाज को एक नया युग में प्रवेश कराया।

Q3. Discuss Balban’s concept of kingship. How was it modified by Alauddin Khilji?

(बलबन के राजत्व की संकल्पना की विवेचना कीजिए | अलाउद्दीन खिलजी ने उस्मने क्या परिवर्तन किए थे?)

उत्तर –

बलबन का राजशाही विचार एक अत्यंत प्रभावशाली और कठोर था। उनकी राजशाही की धारा को “साम्राज्यवाद” कहा जाता है। उन्होंने राजा की अधिकारिता को प्राधान्य दिया और अपनी सत्ता को सुनिश्चित करने के लिए नेतृत्व की भूमिका को मजबूत किया। उन्होंने एक शक्तिशाली संगठन बनाया जिसमें सामंतों को सम्मान दिया गया, लेकिन उनके सत्ताधारी शक्ति को पूर्ण नियंत्रित किया गया। उन्होंने गुप्तवाद की परंपरा को अपनाया जिसमें राजा को दिव्यता का पात्र माना गया और उसकी सत्ता को अपरिमित और अविश्वसनीय माना गया।

अलाउद्दीन खिलजी ने बलबन के राजशाही विचारों को स्वीकार किया, लेकिन उन्होंने इसे और भी विकसित किया। वे राजा के सत्ताधारी अधिकारों को और भी बढ़ावा देने के लिए कठोर कदम उठाए। उन्होंने अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए नागरिकों पर भारी करों को लगाया, समाज में व्यापार और उद्योग को नियंत्रित किया, और समाज में संचार को नियंत्रित किया। उन्होंने अपने साम्राज्य की रक्षा के लिए एक शक्तिशाली सेना का गठन किया और उसे प्रतिरोधक शक्ति के रूप में प्रयोग किया। अलाउद्दीन खिलजी ने बलबन की राजशाही विचारधारा को विस्तार दिया और उसे और भी प्रभावशाली बनाया। उनका यह कठोर और निर्दयी राजशाही प्रकार भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण चरित्र बन गया।

Q4. Give a critical appreciation of the polity of Vijaynagar Empire.

(विजयनगर साम्राज्य की राजव्यवस्था का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए)

उत्तर –

विजयनगर साम्राज्य की राजनीति को मूल्यांकन करते समय, हमें इसकी महत्वाकांक्षा, संगठन, और प्रशासनिक प्रणाली की विशेषताओं को समझने की आवश्यकता होती है।

पहले तो, विजयनगर साम्राज्य की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को उच्च और समृद्ध साम्राज्य की स्थापना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसने भारतीय उपमहाद्वीप के बहुत से क्षेत्रों को एकत्रित किया और एक सशक्त साम्राज्य की नींव रखी।

दूसरे, विजयनगर साम्राज्य का संगठन व्यापक और प्रभावशाली था। इसने विभिन्न राज्यों, सम्राटों, और साम्राज्यों के साथ व्यापारिक और राजनीतिक संबंध स्थापित किए। इसका प्रशासन प्रभावी तरीके से संचालित किया जाता था, जो समय-समय पर विभिन्न प्रदेशों की आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित होता था।

तीसरे, विजयनगर साम्राज्य की प्रशासनिक प्रणाली अत्यंत कुशल थी। यहां एक स्थिर और सक्रिय प्रशासनिक व्यवस्था की विकास की गई थी, जिसमें विभिन्न स्तरों के अधिकारी और मंत्रियों का नियुक्ति एवं प्रशिक्षण संबंधित था।

इन सभी पक्षों के संयोजन से, विजयनगर साम्राज्य ने एक व्यापक, सशक्त, और समृद्ध साम्राज्य के रूप में अपनी विशेष पहचान बनाई। इसकी राजनीतिक प्रणाली ने सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास को भी बढ़ावा दिया और भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण योगदान किया।

Q5. Discuss the nature and significance of the mansab system under the Mughals.

(मुगलों के अंतरगर्त मनसब व्यवस्था के स्वरूप एवं महत्त्व की विवेचना कीजिए)

उत्तर –

मुग़ल साम्राज्य के अधीन मनसब प्रणाली की प्रकृति और महत्व को समझने के लिए हमें मुग़ल साम्राज्य के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संरचना की समझ की आवश्यकता है। मनसब प्रणाली एक व्यावसायिक और संघर्षपूर्ण तंत्र था, जो मुग़ल साम्राज्य के शक्ति और संगठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।

मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने इस प्रणाली को अपनाया, और उसके पोते अकबर ने इसे स्थायित किया। मनसब प्रणाली का मुख्य उद्देश्य था साम्राज्य की सेना को संगठित रखना, सामाजिक और आर्थिक संरचना को स्थापित करना, और राजकीय समर्थता को बढ़ाना।

मनसब प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण विशेषता था कि इसमें अधिकार, सम्मान, और संबल का प्रतिपादन किया जाता था। मनसब एक पद होता था, जिसमें एक व्यक्ति को सेना, सामाजिक स्थिति और आर्थिक स्थिति के आधार पर नियुक्त किया जाता था। हर मनसबदार को एक विशेष राज्य, तंत्र, या सेना के प्रभार का दायित्व था।

मनसब प्रणाली के अंतर्गत, मनसबदारों को विशिष्ट संख्या में सेनाओं का प्रभार और संगठन किया जाता था। ये सेनाएं आमतौर पर लड़ाई में भाग लेती थीं और राज्य की रक्षा और सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं। सेनाओं के प्रमुख कार्यों में राज्य के सामाजिक और आर्थिक संरचना को सुरक्षित रखना, विदेशी हमलों से रक्षा करना, और साम्राज्य की बड़ी संपत्ति की सुरक्षा करना शामिल था।

मनसब प्रणाली में मनसबदारों के स्तरों की हियरार्की थी, जिसमें हर व्यक्ति को अपने दायित्वों और प्रभारों के आधार पर उच्चतम स्तर तक पहुंचने की आशा थी। सामाजिक और आर्थिक प्रगति के साथ-साथ, मनसबदारों के स्तर को भी बढ़ाया जाता था, जिससे सम्राट और सेनापति के बीच अधिकार का प्रतिस्थापन होता था।

मनसब प्रणाली का महत्व था इसलिए कि इसने साम्राज्य को अधिक संगठित और सुरक्षित बनाए रखने में मदद की।

Section – B (खंड – ख)

Q1. Influence of Arab culture on India.

(अरब संस्कृति का भारत पर प्रभाव)

उत्तर –

हजार साल की गहरी इतिहास के दौरान, अरब संस्कृति ने भारतीय समाज, संस्कृति, और जीवन पर अपना व्यापक प्रभाव डाला है। इस प्रभाव को समझने के लिए हमें इतिहास के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखने की आवश्यकता है।

प्राथमिक रूप से, अरब संस्कृति ने भारतीय समाज में धार्मिक और आध्यात्मिक धाराओं को प्रभावित किया। इसका उत्पादन बहुत से धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथों के माध्यम से हुआ, जैसे कि कुरान और हदीस। इन ग्रंथों के प्रसार के कारण, भारतीय समाज में इस्लामी धर्म के विभिन्न पहलुओं का प्रवेश हुआ, जिनमें जीवन शैली, भोजन, और सामाजिक व्यवहार शामिल हैं।

द्वितीय रूप में, अरब संस्कृति ने भारतीय भाषाओं, विज्ञान, और साहित्य को भी प्रभावित किया। अरबी भाषा का अध्ययन और अरबी के ग्रंथों का अनुवाद भारत में होने लगा, जिससे भारतीय भाषाओं में अरबी शब्दों का प्रयोग और उनका प्रभाव देखने को मिला। साथ ही, अरबी गणित, ज्योतिष, तथा वैज्ञानिक ग्रंथों का भारत में प्रसार होना भी हुआ, जिससे भारतीय ज्ञान को विश्वस्तरीय रूप में उन्नति मिली।

तृतीय रूप में, अरब संस्कृति ने भारतीय कला, वास्तुकला, और संस्कृति को भी प्रभावित किया। इस्लामी स्थापत्यकला के तकनीकों का प्रसार और उनका अभ्यास भारत में हुआ, जिससे मस्जिदों, मकबरों, और ख्वाबगाहों का निर्माण हुआ, जिनमें अरबी और तुर्की कला के प्रभाव का पता चलता है।

इन सभी प्रभावों के संयोजन से, अरब संस्कृति ने भारतीय समाज, संस्कृति, और जीवन को एक नए दृष्टिकोण और दिशा दी। इसने विविधता को बढ़ाया और भारतीय समाज को एक और विश्वस्तरीय रूप में समृद्धि और विकास की दिशा में आगे बढ़ाया।

Q2. Second Battle of Tarain.

(तराइन का द्वितीय युद्ध)

उत्तर –

तराइन की दूसरी लड़ाई (Second Battle of Tarain) भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसका महत्व भारतीय राजनीति और साम्राज्यों की स्थिति पर असर डाला। इस लड़ाई का महत्व तब और भी बढ़ गया क्योंकि यह एक महान योद्धा प्रिथ्वीराज चौहान के और मुहम्मद गोरी के बीच लड़ी गई थी।

तराइन की दूसरी लड़ाई ने भारतीय इतिहास में विपरीत परिणामों का संघर्ष प्रस्तुत किया। प्रिथ्वीराज चौहान की हार इसलिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि इससे मुहम्मद गोरी ने दिल्ली के उस्ताद बनने का मार्ग खोल दिया। इस लड़ाई के परिणामस्वरूप, गोरी ने दिल्ली सुलतनत की स्थापना की, जिसने भारतीय इतिहास को एक नया मोड़ दिया।

प्रिथ्वीराज चौहान की हार के बाद, उनका साम्राज्य दिल्ली सुल्तानत की शासनकाल में अंत हो गया। मुहम्मद गोरी ने अपने शासनकाल में भारत में तंत्रशास्त्र और अरबी भाषा का प्रसार किया और भारतीय सामाजिक संरचना को बदल दिया।

तराइन की दूसरी लड़ाई का प्रभाव अब भी भारतीय इतिहास में महसूस किया जाता है। इसलिए, यह लड़ाई भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसने भारतीय समाज और साम्राज्यों के नवनिर्माण में गहरा प्रभाव डाला।

Q3. Sena dynasty of Bengal.

(बंगाल के सेन राज्य वंश)

उत्तर –

बंगाल की सेना वंश भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण राजवंश था, जो बंगाल क्षेत्र में 11वीं से 12वीं शताब्दी तक शासन करता रहा। इस राजवंश का मूल आधार पूर्व बंगाल क्षेत्र में स्थित विजय सेतुपति के पुत्र होने के बारे में विवाद है। सेना वंश के उदय से संबंधित कई लोक कथाएं हैं, जिनमें सर्वप्रथम मूलचन्द्र नामक व्यक्ति का उल्लेख है, जो विजय सेतुपति के पुत्र के रूप में माना जाता है।

सेना वंश ने अपने प्रारंभिक शासनकाल में पूर्व बंगाल क्षेत्र में अपनी शक्ति का विस्तार किया। इसके प्रमुख केंद्र थे गौड़ और विक्रमपुर। इस वंश के प्रमुख शासक थे विजय सेतुपति, लक्ष्मण सेन, विश्वपति, वल्लल सेन, वल्लभ सेन, लक्ष्मण सेन द्वितीय, राम पाल और मधुशंकर।

सेना वंश के शासकों ने विजय सेतुपति समय से लेकर परियाप्त राजनीतिक और सामाजिक संगठन का विकास किया। उन्होंने बंगाल के समाज, शैक्षणिक संस्थानों, और सांस्कृतिक धारा को बढ़ावा दिया। सेन राजाओं ने गौड़ और विक्रमपुर में शैक्षिक संस्थानों का समर्थन किया और कला, संगीत, साहित्य, और विज्ञान में प्रगति को बढ़ावा दिया।

सेना वंश का शासन शून्यकाल से लड़ने में मुश्किल हुआ और उसकी शक्ति कम हो गई। इसके बावजूद, वह 12वीं शताब्दी में बंगाल क्षेत्र की शासन की अधिकांश प्रांतों में अपनी प्राधान्य बनाए रखा।

सेन राजाओं के शासनकाल के दौरान, बंगाल के सांस्कृतिक और शैक्षिक क्षेत्र में विकास हुआ। इसके अलावा, उन्होंने बंगाल की राजनीति और आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे अपने शासनकाल में बंगाल को एक महत्वपूर्ण शैक्षिक, सांस्कृतिक, और आर्थिक केंद्र बनाने के लिए प्रयासरत रहे। इस प्रकार, सेन राजाओं का शासन बंगाल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण युग के रूप में स्थान बना।

Q4. Administrative work of Iltutmish.

(इल्तुतमिश के प्रशासनिक कार्य)

उत्तर –

इल्तुतमिश द्वितीय, दिल्ली सल्तनत के प्रमुख शासकों में से एक थे जो 13वीं सदी में शासन करते थे। उनके शासनकाल में वे प्रशासन के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण परिवर्तन करते रहे।

पहले तो, इल्तुतमिश ने सिकंदरी मंजिल का निर्माण किया, जो उस समय की सबसे ऊँची इमारत थी। यह मंजिल इल्तुतमिश की अद्वितीय कला और वास्तुकला का प्रतीक बन गई।

दूसरे, इल्तुतमिश ने अपने प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार किया और उसे मजबूत किया। उन्होंने दिल्ली सुल्तनत का प्रशासनिक संगठन पुनर्विचार किया और शासन क्षेत्र में विभाजन किया, जिससे प्रशासन की प्रभावी गतिविधियों को सुनिश्चित किया गया।

तीसरे, इल्तुतमिश ने सिकंदरी सिक्के का प्रचलन किया, जो उस समय का मुद्रा था। इसके माध्यम से, वह अपने सत्ताधारी प्रशासन का प्रशंसकों के बीच प्रचार किया और अपने सिक्के को एक संबोधित मुद्रा बनाने में सफल रहे।

इल्तुतमिश के प्रशासन में अन्य महत्वपूर्ण बदलाव भी हुए, जैसे कि उन्होंने अपने प्रशासनिक विभागों को संगठित किया, और उन्होंने भारतीय साम्राज्य की सीमाओं को बढ़ाया। इसके अलावा, उन्होंने विभिन्न धर्मों के समर्थन किया और भारतीय संस्कृति को समर्थन किया।

संक्षेप में, इल्तुतमिश के प्रशासनिक कार्यों का महत्व था कि उन्होंने दिल्ली सुल्तनत के प्रशासन में विभिन्न क्षेत्रों में सुधार किया और संगठित किया। उनका योगदान भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है, जिसने समाज और प्रशासन के विभिन्न पहलुओं में सुधार किया।

Q5. Nayakar and Ayagar System.

(नायकर और आयगर प्रणाली)

उत्तर –

नायकार और आयागर प्रणाली दक्षिण भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं में से दो विभाजन प्रणालियों हैं।

1. **नायकार प्रणाली**: नायकार एक प्रकार का समाजवादी व्यवस्था थी जो दक्षिण भारत के तमिल नाडु और उसके आसपास क्षेत्रों में प्रचलित थी। इस प्रणाली में, जमींदारों को भूमि का मालिकाना अधिकार नहीं होता था, बल्कि वे भूमि का केवल उत्तरदायी थे और उसे कृषि कराने वाले ग्रामीणों को सेवा के लिए अपने सेवाएं प्रदान करते थे। नायकार अर्थात नायक या नेता की भूमिका महत्वपूर्ण थी, जो स्थानीय समुदाय के आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक विकास में सहायक था।

2. **आयागर प्रणाली**: आयागर प्रणाली के अनुसार, भूमि के मालिक जमींदार थे जो किसानों को भूमि का मालिकाना अधिकार देते थे। उन्हें कृषि के लिए भूमि का किराया चुकाना पड़ता था। इस प्रणाली में, जमींदारों की सत्ता और प्रभाव अधिक था, जो किसानों के ऊपर अधिक नियंत्रण रखते थे।

इन दोनों प्रणालियों में अंतर होता है कि नायकार प्रणाली में जमींदारों की सत्ता कम थी और उनका मुख्य ध्यान ग्रामीण समुदायों के विकास पर था, जबकि आयागर प्रणाली में जमींदारों की सत्ता और नियंत्रण अधिक था।

दक्षिण भारत के इतिहास में, नायकार प्रणाली ने सामाजिक समृद्धि को प्रो

त्साहित किया, जबकि आयागर प्रणाली ने जमींदारों की सत्ता और नियंत्रण को बढ़ावा दिया। यह दोनों प्रणालियाँ दक्षिण भारतीय समाज के संरचनात्मक पहलुओं का अध्ययन करने में महत्वपूर्ण हैं।

Q6. Sher Shah’s empire expansion policy.

(शेरशाह की साम्राज्य विस्तार निति)

उत्तर –

शेर शाह सूरी, भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण शासकों में से एक थे, जिनकी सत्ता काल 1540 से 1545 तक थी। उनकी राजनीतिक और सामर्थ्यवर्धन नीति भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण रही।

शेर शाह की राजनीतिक नीति का एक प्रमुख घटक था उनका साम्राज्य का विस्तार करने का प्रयास। उन्होंने अपने शासनकाल में विभिन्न क्षेत्रों में अपना राज्य विस्तार किया।

पहले तो, शेर शाह ने बिहार और बंगाल क्षेत्र में अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उन्होंने बहुत सारे युद्धों और अभियानों के माध्यम से इन क्षेत्रों को जीता और अपने सम्राटीय अधिकार को स्थायित किया।

दूसरे, शेर शाह ने उत्तर भारतीय क्षेत्र में भी अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उन्होंने दिल्ली, आगरा, और कानपुर जैसे प्रमुख शहरों को जीता और अपने प्रभुत्व को वहां स्थापित किया।

तीसरे, शेर शाह ने आजमेर और मालवा क्षेत्रों में भी अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उन्होंने इन क्षेत्रों की रणनीति के माध्यम से वहां के राजा और साम्राज्यों को पराजित किया और अपना साम्राज्य विस्तार किया।

शेर शाह की यह राजनीतिक नीति उन्हें भारतीय इतिहास के महान शासकों में गिनाती है। उनका साम्राज्य विस्तार करने का प्रयास और सफलता उन्हें भारतीय इतिहास के विशेष स्थान पर लाता है।

Q7. Rajputana Policy of Akbar. 

(अकबर की राजपुताना निति)

उत्तर –

अकबर की राजपूताना नीति उनके शासनकाल के दौरान एक महत्वपूर्ण रणनीति थी जिसने राजपूत राजाओं के साथ उनके संबंधों को समाप्त किया। यह नीति उनकी सत्ता की मजबूती का माध्यम बनी और उन्हें उत्तर भारत में अपने साम्राज्य को स्थायित करने में मदद मिली।

अकबर की राजपूताना नीति का एक महत्वपूर्ण पहलु यह था कि उन्होंने राजपूत राजाओं को अपने सामंजस्य और विश्वास के आधार पर शासन करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने राजपूत राजाओं को अपने दरबार में सम्मिलित किया और उन्हें अपनी सेना में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया। इससे राजपूत राजाओं का भरोसा अकबर के प्रति मजबूत हुआ और उनके साथ एक मित्रतापूर्ण रिश्ता बना।

दूसरा पहलू यह था कि अकबर ने विविध राजपूत राज्यों के बीच विवादों और घमासान को निष्पेष किया। उन्होंने विभिन्न राजपूत राजाओं को अपने आदर्शों के प्रति सम्मानित किया और उनके बीच एक विशाल संगठन की स्थापना की। इससे राजपूताना क्षेत्र में एक सामाजिक और राजनीतिक स्थिति बनी जिसमें शांति और सौहार्द का वातावरण था।

तृतीय और महत्वपूर्ण पहलू यह था कि अकबर ने राजपूताना के विभिन्न भू-स्वामित्व और आयात क्षेत्रों को संघर्ष और विरोध से दूर रखा। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि राजपूत राजाओं को उनकी स्वतंत्रता और स्वामित्व का पूरा अधिकार रहे और उनकी संस्थाओं को सम्मानित किया।

इस तरह, अकबर की राजपूताना नीति उनके शासनकाल के दौरान एक विशेष धार्मिक, सामाजिक, और राजनीतिक एकता का आधार बनी। यह नीति उनके साम्राज्य के सामाजिक एवं राजनीतिक एकीकरण को मजबूत किया और उनके शासनकाल को एक साम्राज्यिक एवं सांस्कृतिक उच्चाधिकार के रूप में याद किया जाता है।

Q8. Deccan policy of Aurangzeb.

(औरंगजेब की दक्कन नीति)

उत्तर –

औरंगजेब की डेक्कन नीति उनके शासनकाल के दौरान एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामर्थ्य दिखाती थी। औरंगजेब की पहली प्राथमिकता वहाँ के राज्य को प्रभाव के तहत रखना था। वह डेक्कन को मुग़ल साम्राज्य के संरक्षित क्षेत्र के रूप में देखता था और उसके प्रशासन में अपनी सत्ता को स्थायी बनाने का प्रयास करता था।

औरंगजेब की डेक्कन नीति का एक मुख्य तंत्र उसका प्रशासनिक संरचना को स्थायी बनाना था। उन्होंने अपने अधिकारों का प्रसार किया और स्थानीय सत्ताधारियों को अपने प्रशासन में शामिल किया। उनकी डेक्कन नीति में उनकी सत्ता को बढ़ाने के लिए स्थानीय राजा और नवाबों के साथ संधि और शांति समझौते का प्रमुख साधन था।

औरंगजेब की डेक्कन नीति का दूसरा पहलू धर्मनिरपेक्षता था। वह डेक्कन में इस्लाम के प्रसार का प्रयास किया, और वहाँ के हिंदू राजाओं और नवाबों को मुस्लिम धर्म की शासन की नीति का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया।

इसके अलावा, औरंगजेब ने डेक्कन के मराठा साम्राज्य के खिलाफ युद्ध किया और उन्हें अपने शासन के अधीन करने की कोशिश की। यह उनकी डेक्कन नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू था, जिसका मुख्य उद्देश्य डेक्कन में स्थायी साम्राज्य की स्थापना था।

औरंगजेब की डेक्कन नीति ने मुग़ल साम्राज्य को डेक्कन में अपनी सत्ता को स्थायी बनाने में सफलता प्राप्त की, लेकिन इसके साथ ही उनकी धर्मनिरपेक्ष नीति और मराठा साम्राज्य के खिलाफ युद्ध ने भी कई समस्याओं को उत्पन्न किया।

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