BA 6th Semester History Question Answers Paper 2
BA 6th Semester History Question Answers: इस पेज पर बीए 6th सेमेस्टर के छात्रों के लिए हिस्ट्री (इतिहास) का Question Answer, Short Format और MCQs Format में दिए गये हैं |
6th सेमेस्टर में दो पेपर पढाये जाते हैं, जिनमें से पहला “Era of Gandhi and Mass Movement (गांधी युग एवं जन आन्दोलन)” और दूसरा “History of Modern World (1815 AD – 1945 AD) – आधुनिक विश्व का इतिहास” है | यहाँ आपको second पेपर के लिए टॉपिक वाइज प्रश्न उत्तर और नोट्स मिलेंगे |
BA 6th Semester History Online Test in Hindi
इस पेज पर बीए 6th सेमेस्टर के छात्रों के लिए हिस्ट्री के ऑनलाइन टेस्ट का लिंक दिया गया है | इस टेस्ट में लगभग 200 प्रश्न दिए गये हैं |
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History of Modern World (1815 AD – 1945 AD) (आधुनिक विश्व का इतिहास)
Unit 1: Unification of Germany and Italy (जर्मनी और इटली का एकीकरण)
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Unit 2: First World War (प्रथम विश्व युद्ध)
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Unit 3: Paris Peace Convention and Treaty of Versailles (पेरिस शांति सम्मेलन और वर्साय की संधि)
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Unit 4: League of Nations- Organization, Achievements and Failure (राष्ट्र संघ- संगठन, उपलब्धियाँ और विफलता)
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Unit 5: Rise of Communism in Russia (रूस में साम्यवाद का उदय)
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Unit 6: Rise of Dictatorship: Mussolini and Hitler (अधिनायकतंत्र का उदय: मुसोलिनी और हिटलर)
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Unit 7: United States in World Affairs (वैश्विक मामलों में संयुक्त राज्य अमेरिका)
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Unit 8: Second World War and U.N.O. (द्वितीय विश्व युद्ध और संयुक्त राष्ट्र संघ)
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BA 6th Semester History Important Question Answers
History of Modern World (1815 AD – 1945 AD) (आधुनिक विश्व का इतिहास)
इकाई 1: जर्मनी और इटली का एकीकरण
प्रश्न 1: एकीकरण से पूर्व जर्मनी की स्थिति क्या थी?
उत्तर:
I. राजनीतिक विभाजन: 19वीं सदी की शुरुआत में जर्मनी कई छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों में विभाजित था, जिनमें प्रमुख राज्य प्रशा, ऑस्ट्रिया, बवारिया, सैक्सोनी, और एक दर्जन से अधिक छोटे राज्यों के साथ होली रोमन साम्राज्य के अवशेष थे। ये राज्य अपने-अपने राजनीतिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक प्रभाव के क्षेत्र में कार्य करते थे लेकिन एक सामान्य राष्ट्रीय पहचान के बिना रहते थे।
II. होली रोमन साम्राज्य का पतन: 1806 में होली रोमन साम्राज्य का विधिवत पतन हुआ, जिसने जर्मन राज्यों को और भी अधिक विभाजित कर दिया। इस पतन ने जर्मनी में राजनीतिक एकता की कमी को उजागर किया, हालांकि सांस्कृतिक और भाषाई एकता अभी भी मौजूद थी।
III. नेपोलियन का प्रभाव: नेपोलियन बोनापार्ट ने जर्मनी पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया, जिससे कई जर्मन राज्यों को उनके साम्राज्य में मिलाया गया। उनके सुधारों ने जर्मनी में व्यवस्थागत परिवर्तन लाए, जैसे कि नापेलियनिक कोड का कार्यान्वयन, जिसने कानूनी, प्रशासनिक और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा दिया। हालांकि, यह विदेशी शासन ने जर्मनों को अपनी राष्ट्रीय पहचान के प्रति और अधिक सचेत कर दिया।
IV. राष्ट्रीयता की बढ़ती भावना: नेपोलियन के विरुद्ध लड़ाइयों ने जर्मन लोगों में एक सामान्य दुश्मन के खिलाफ एकता की भावना जगाई। इस समय के दौरान, जर्मन रोमांटिकवाद और राष्ट्रवाद के विचारों ने जोर पकड़ा, जिससे जर्मनी में राष्ट्रीयता की भावना को बल मिला। फिर भी, एकीकरण के लिए एक मजबूत राजनीतिक नेतृत्व और रणनीति की कमी थी।
प्रश्न 2: क्या नेपोलियन को आधुनिक जर्मनी का जन्मदाता कहा जा सकता है?
उत्तर:
I. नेपोलियन के सुधार: नेपोलियन ने जर्मनी में कई सुधार लागू किए जैसे कि नापेलियनिक कोड, जिसने कानूनी एकरूपता और प्रशासनिक दक्षता लाई। यह कोड जर्मन राज्यों में नागरिक अधिकारों को स्थापित करने और फीडालिज्म को कम करने में महत्वपूर्ण था। इन सुधारों ने जर्मनी में आधुनिक राज्य के विकास की नींव रखी।
II. राष्ट्रीयता की जागृति: नेपोलियन के विरुद्ध संघर्ष ने जर्मनी में राष्ट्रीयता की जागृति को बढ़ाया। उनके शासन के विरोध में उठे प्रतिरोध ने जर्मन लोगों को एक साझा राष्ट्रीय भावना से जोड़ा, जो बाद में एकीकरण के प्रयासों का आधार बना।
III. प्रशासनिक और राजनीतिक परिवर्तन: नेपोलियन ने जर्मन राज्यों को एकीकृत करने की कोशिश की, और यह प्रयास, भले ही अस्थायी रूप से, ने जर्मनी में प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था को एकरूप करने की आवश्यकता को सामने लाया। उन्होंने जो राज्यों को मिलाया, उससे जर्मनी में बड़े राज्यों की संरचना की नींव पड़ी।
IV. विरोध और स्वतंत्रता की भावना: नेपोलियन के विरुद्ध संघर्ष ने जर्मनों में स्वतंत्रता और स्वाभिमान की भावना को उभारा, जो बाद में जर्मन राष्ट्रीयता के विकास में महत्वपूर्ण साबित हुई। इस प्रकार, नेपोलियन को आधुनिक जर्मनी का जन्मदाता कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि उनकी कार्यवाहियों ने जर्मनी में राष्ट्रीयता और राजनीतिक एकीकरण की प्रक्रिया को प्रेरित किया।
प्रश्न 3: वियना कांग्रेस (1815 ई.) ने जर्मनी की राष्ट्रीय भावना को किस प्रकार प्रभावित किया?
उत्तर:
I. राजनीतिक पुनर्व्यवस्था: वियना कांग्रेस ने नेपोलियन के बाद यूरोप की राजनीतिक सीमाओं को पुनर्परिभाषित किया, जिसमें जर्मनी को भी शामिल किया गया। इसने जर्मन राज्यों को एक ढीली संघीय संरचना, जर्मनी का जर्मनिक कनफेडरेशन (German Confederation), के अंतर्गत लाया जो 39 राज्यों और शहरों से बना था। इसने एक साझा प्रशासनिक ढांचा दिया, लेकिन यह राजनीतिक एकता की पूरी अभिलाषा को पूरा नहीं करता था।
II. राष्ट्रीयता की निराशा: वियना कांग्रेस के निर्णयों ने राष्ट्रीयता की भावना को अनदेखा करते हुए, जर्मन राज्यों को ऑस्ट्रिया और प्रशा के नियंत्रण में बांध दिया, जिससे राष्ट्रीय एकीकरण के सपने को धक्का लगा। इससे जर्मनी में राष्ट्रवादी विचारधाराओं को बढ़ावा मिला, जो बाद में 1848 के क्रांतिकारी आंदोलनों में दिखाई दिया।
III. सांस्कृतिक और भाषाई एकता: हालांकि, सांस्कृतिक और भाषाई एकता की भावना बरकरार रही। वियना कांग्रेस ने जर्मनी के भीतर एक सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित रखा, जिसने राष्ट्रीयता की भावना को पोषित किया। पुस्तकों, समाचार पत्रों, और साहित्य के माध्यम से जर्मन भाषा की एकता ने लोगों को एक साथ जोड़ा।
IV. राजनीतिक उत्तेजना: वियना कांग्रेस के निर्णयों ने जर्मनों के बीच राजनीतिक उत्तेजना को बढ़ाया, जिसने दीर्घकालिक में एकीकरण की आवश्यकता को उभारा। यह उत्तेजना और असंतोष ने बाद में ओटो वॉन बिस्मार्क जैसे नेताओं को सत्ता में लाने में मदद की, जिन्होंने एकीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।
प्रश्न 4: जर्मनी के एकीकरण में कौन से तत्व बाधक रहे हैं?
उत्तर:
I. राजनीतिक विभाजन: जर्मनी के छोटे-छोटे राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा और स्वार्थों का टकराव एकीकरण के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा था। हर राज्य अपनी स्वतंत्रता और सत्ता को बनाए रखना चाहता था, जो एकीकरण के विचार को कमजोर करता था।
II. ऑस्ट्रिया और प्रशा के बीच प्रतिद्वंद्विता: दोनों राज्यों के बीच जर्मनी के नेतृत्व को लेकर लंबे समय से चली आ रही प्रतिद्वंद्विता ने एकीकरण की कोशिशों को मुश्किल बना दिया। ऑस्ट्रिया की कंजर्वेटिव नीतियों ने भी राष्ट्रीय एकीकरण के विचार को हतोत्साहित किया।
III. विदेशी हस्तक्षेप: वियना कांग्रेस के बाद, यूरोपीय शक्तियों ने जर्मनी को विभाजित रखने में रुचि दिखाई ताकि इसकी एकीकरण की संभावना से उनकी सत्ता और प्रभुत्व को खतरा न हो। इसने एकीकरण की प्रक्रिया को और भी जटिल बना दिया।
IV. धार्मिक विभाजन: जर्मनी में प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक राज्यों के बीच धार्मिक विभाजन ने राष्ट्रीय एकता को कमजोर किया। यह धार्मिक विभाजन अक्सर राजनीतिक गठबंधनों को प्रभावित करता था, जिससे एक समग्र राष्ट्रीय आंदोलन का निर्माण कठिन हो गया।
V. सामाजिक और आर्थिक विभिन्नता: विभिन्न क्षेत्रों में सामाजिक और आर्थिक विकास का असंतुलन एकीकरण के लिए अन्य बाधा था। औद्योगिकीकरण के विभिन्न चरणों में होने के कारण, कुछ राज्यों के पास दूसरों की तुलना में अधिक आर्थिक शक्ति थी, जिससे एक समान आर्थिक नीति बनाना मुश्किल हो गया।
प्रश्न 5: जर्मनी के एकीकरण में सहायक तत्वों का क्या योगदान रहा है?
उत्तर:
I. राष्ट्रवादी विचारधारा: 19वीं सदी के दौरान, रोमांटिक राष्ट्रवाद ने जर्मनी में एक साझा जर्मन संस्कृति और भाषा के आधार पर एकीकरण का सपना दिखाया। लेखक, विद्वान, और कवि जैसे जोहान गोएथे और फ्रीडरिक शिलर ने जर्मन संस्कृति को प्रोत्साहित किया, जिसने एकीकरण की आकांक्षा को बल दिया।
II. आर्थिक एकीकरण: ज़ोलवेरिन (Zollverein) या कस्टम यूनियन का निर्माण, जिसमें प्रशा ने अग्रणी भूमिका निभाई, ने आर्थिक एकीकरण की दिशा में कदम बढ़ाया। यह संघ प्रशा के नेतृत्व में शुल्क-मुक्त व्यापार क्षेत्र स्थापित करता था, जिससे आर्थिक सहयोग के माध्यम से राजनीतिक एकीकरण के लिए मार्ग प्रशस्त हुआ।
III. रेलवे नेटवर्क: रेलवे का विस्तार ने जर्मनी के भीतर संचार और यातायात को बेहतर बनाया, जिससे विभिन्न क्षेत्रों के बीच संपर्क और एकता बढ़ी। यह न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा देता था बल्कि राष्ट्रीय एकीकरण के लिए भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
IV. सैन्य और राजनीतिक नेतृत्व: ओटो वॉन बिस्मार्क की कूटनीति और सैन्य रणनीति ने जर्मनी के एकीकरण को संभव बनाया। उनकी “रक्त और लौह” की नीति ने प्रशा को जर्मन राज्यों के नेता के रूप में स्थापित किया, जो युद्ध और कूटनीति के संयोजन से एकीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।
V. सांस्कृतिक और भाषाई एकता: जर्मन भाषा और सांस्कृतिक विरासत ने लोगों को एक साझा पहचान से जोड़ा। इस एकता ने राजनीतिक एकीकरण के लिए एक मजबूत आधार तैयार किया, क्योंकि लोगों में एक समान राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ।
प्रश्न 6: बिस्मार्क का जीवन परिचय और उनकी “रक्त और लौह” की नीति क्या थी?
उत्तर:
I. जीवन परिचय: ओटो वॉन बिस्मार्क (1815-1898) प्रशा के एक जमींदार परिवार में जन्मे, वे जर्मनी के एकीकरण के प्रमुख वास्तुकार बने। 1847 में राजनीति में प्रवेश करने से पहले वे एक वकील और प्रशासक के रूप में काम कर चुके थे। बिस्मार्क ने प्रशा के राजदूत के रूप में कार्य किया और बाद में 1862 में प्रशा के प्रधानमंत्री बने, जहां उन्होंने अपनी कूटनीतिक और सैन्य क्षमता का प्रदर्शन किया।
II. बिस्मार्क राजदूत के रूप में: बिस्मार्क ने पेरिस और सेंट पीटर्सबर्ग में राजदूत के रूप में कार्य किया, जहां उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक समझ और कूटनीतिक कौशल विकसित किया। उनके अनुभव ने उन्हें जर्मनी के एकीकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्थितियों का लाभ उठाने में सक्षम बनाया।
III. प्रशा के प्रधानमंत्री के रूप में: प्रधानमंत्री बनने के बाद, बिस्मार्क ने जर्मनी के एकीकरण के लिए ‘रक्त और लौह’ की नीति अपनाई। यह नीति यह दर्शाती है कि राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सैन्य शक्ति (‘रक्त’) और कड़ाई से नीति (‘लौह’) का उपयोग करना आवश्यक है।
IV. रक्त और लौह की नीति: इस नीति के तहत, बिस्मार्क ने डेनमार्क, ऑस्ट्रिया, और फ्रांस के साथ युद्धों का नेतृत्व किया, जिसने प्रशा को प्रधानता दिलाई और जर्मनी के एकीकरण का रास्ता साफ किया। उन्होंने राजनीतिक स्थितियों का माहौल बनाया जिसमें युद्ध के परिणामस्वरूप जर्मन राज्य एक हो सकें।
V. नीति के उद्देश्य: बिस्मार्क के उद्देश्य प्रशा को जर्मन राज्यों का नेता बनाना, ऑस्ट्रिया को जर्मन मामलों से बाहर करना, और फ्रांस को रोकना था। उन्होंने राजनीतिक गठबंधन बनाए, जिससे छोटे राज्यों को बड़े राज्यों के खिलाफ खड़ा किया जा सके, और अंततः एक संघीय जर्मन साम्राज्य की स्थापना की जा सके।
प्रश्न 7: जर्मनी के एकीकरण के विभिन्न चरण क्या थे?
उत्तर:
I. पहला चरण – श्लेस्विग-होल्स्टीन युद्ध (1864 ई.): बिस्मार्क ने डेनमार्क के साथ श्लेस्विग-होल्स्टीन को लेकर युद्ध शुरू किया। इस युद्ध ने प्रशा और ऑस्ट्रिया को एक साथ लाया और डेनमार्क को हराकर इन प्रांतों को हासिल किया। यह प्रशा की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन था।
II. द्वितीय चरण – ऑस्ट्रिया से युद्ध (1866 ई.): सात सप्ताह के युद्ध में, प्रशा ने ऑस्ट्रिया को हराया, जिससे ऑस्ट्रिया को जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया। इस युद्ध के परिणामस्वरूप नार्थ जर्मन कनफेडरेशन की स्थापना हुई, जिसमें प्रशा प्रमुख था।
III. तीसरा चरण – फ्रांस-प्रशा युद्ध (1870 ई.) और फ्रैंकफर्ट की संधि: बिस्मार्क ने फ्रांस को उकसाया, जिससे जर्मन राज्यों को एक साथ लाने का अवसर मिला। फ्रांस की हार के बाद, फ्रैंकफर्ट की संधि के तहत, एल्सास और लोरेन प्रशा को हस्तांतरित किए गए, और यह जर्मनी के एकीकरण का अंतिम चरण था।
IV. जर्मन साम्राज्य की घोषणा (1871 ई.): फ्रांस-प्रशा युद्ध के बाद, 18 जनवरी 1871 को, वर्साय में जर्मन साम्राज्य की घोषणा हुई, जहां प्रशिया के राजा विल्हेम प्रथम को जर्मन सम्राट घोषित किया गया। यह जर्मनी के एकीकरण का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण कदम था।
प्रश्न 8: इटली के एकीकरण का क्रमिक विकास कैसे हुआ?
उत्तर:
I. प्रारंभिक आंदोलन: इटली के एकीकरण की प्रक्रिया 19वीं सदी के शुरुआती दशकों में कर्बोनारी और यंग इटली जैसे गुप्त समाजों के साथ शुरू हुई, जिन्होंने राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ावा दिया।
II. रिसोर्गिमेंटो: ‘रिसोर्गिमेंटो’ (Risorgimento) इटली के पुनर्जागरण के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जिसने एकीकरण की प्रक्रिया को संदर्भित किया। इसमें, राजनेता, क्रांतिकारी, और सैन्य नेता जैसे कैमिलो कैवूर, ग्यूसेपे गैरीबाल्डी, और विक्टर इमैनुएल द्वितीय की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
III. कैवूर और पीडमोंट-सार्डिनिया की भूमिका: कैमिलो कैवूर ने पीडमोंट-सार्डिनिया को इटली के एकीकरण का केंद्र बनाया, फ्रांस के साथ गठबंधन करके ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध लड़ा और कई इटालियन राज्यों को एकजुट करने में मदद की।
IV. गैरीबाल्डी के अभियान: ग्यूसेपे गैरीबाल्डी ने दक्षिण इटली में क्रांतिकारी अभियान चलाए, जिसमें उन्होंने सिसिली और नेपल्स को एकीकरण में शामिल किया। उनके स्वयंसेवक सेना ‘रेडशर्ट्स’ ने जनता का समर्थन प्राप्त कर इटली के एकीकरण में अहम भूमिका निभाई।
V. अंतिम एकीकरण: 1861 में विक्टर इमैनुएल द्वितीय को इटली का राजा घोषित किया गया, और 1870 में रोम का एकीकरण हुआ जब फ्रांस की सेना को वहां से हटाया गया। रोम को इटली की राजधानी बनाने के साथ ही इटली का एकीकरण लगभग पूरा हो गया।
प्रश्न 9: एकीकरण से पूर्व इटली की स्थिति क्या थी?
उत्तर:
I. राजनीतिक विभाजन: एकीकरण से पूर्व, इटली कई राज्यों में विभाजित था जिसमें ऑस्ट्रिया के अधीन क्षेत्र, पोप के राज्य, सार्डिनिया-पीडमोंट, और विभिन्न ड्यूची और शहर-राज्य शामिल थे। प्रत्येक क्षेत्र अपनी स्वतंत्र शासन प्रणाली के साथ था।
II. विदेशी शासन: इटली के विभिन्न हिस्से विदेशी शक्तियों के प्रभाव में थे, मुख्य रूप से ऑस्ट्रिया जिसने लोम्बार्डी और वेनेटो पर नियंत्रण रखा था। रोम और उसके आसपास के क्षेत्र पोप के अधीन थे, जो फ्रांस द्वारा समर्थित थे।
III. सामाजिक और आर्थिक विषमता: इटली के विभिन्न भागों में सामाजिक और आर्थिक विकास का स्तर बहुत अलग था, जिससे एकीकरण की प्रक्रिया को और जटिल बना दिया। उत्तरी इटली अधिक औद्योगिक और संपन्न थी, जबकि दक्षिण पिछड़ा हुआ था।
IV. राष्ट्रीयता की बढ़ती भावना: हालांकि राजनीतिक एकता का अभाव था, राष्ट्रीयता की भावना बढ़ रही थी। लेखकों, कलाकारों, और बुद्धिजीवियों ने एक साझा इटालियन पहचान को प्रोत्साहित किया, जो एकीकरण के लिए बीज बो रहा था।
V. क्रांतिकारी गतिविधियाँ: एकीकरण से पूर्व, इटली में क्रांतिकारी गतिविधियाँ जारी थीं, जो राजनीतिक परिवर्तन और स्वतंत्रता के लिए प्रयास कर रही थीं। यह असंतोष राष्ट्रीय एकता की आकांक्षा को दर्शाता था।
प्रश्न 10: इटली के एकीकरण के सहायक तत्व क्या थे?
उत्तर:
I. राष्ट्रवादी विचारधारा: राष्ट्रवादी भावना और रिसोर्गिमेंटो (Risorgimento) आंदोलन ने इटली में राष्ट्रीय एकता की भावना को जन्म दिया। लेखकों, कवियों, और दार्शनिकों ने इटली की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को प्रोत्साहित किया, जिसने एकीकरण के लिए मजबूत आधार तैयार किया।
II. नेतृत्व: कैमिलो कैवूर की राजनीतिक कुशलता, ग्यूसेपे गैरीबाल्डी का सैन्य नेतृत्व, और विक्टर इमैनुएल द्वितीय की राजनीतिक समर्थन ने एकीकरण को मूर्त रूप दिया। इन नेताओं ने अपने-अपने तरीके से इटली के एकीकरण को आगे बढ़ाया।
III. अंतर्राष्ट्रीय समर्थन: फ्रांस, विशेष रूप से नेपोलियन तृतीय के समय में, ने इटली के एकीकरण में मदद की, खासकर ऑस्ट्रिया के खिलाफ युद्ध में। इस समर्थन ने इटालियन राज्यों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
IV. आर्थिक विकास: उत्तरी इटली, विशेष रूप से पीडमोंट-सार्डिनिया, में औद्योगिक विकास ने आर्थिक ताकत प्रदान की, जिसने एकीकरण को संसाधन और वित्तीय समर्थन दिया।
V. जनता का समर्थन: जनता का व्यापक समर्थन, विशेष रूप से गैरीबाल्डी के अभियानों के दौरान, ने इटली के विभिन्न भागों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लोगों ने अपनी स्वतंत्रता और एकीकरण के लिए लड़ने की इच्छा दिखाई।
प्रश्न 11: इटली के एकीकरण के लिए प्रमुख विचारधाराएँ क्या थीं?
उत्तर:
I. राष्ट्रवाद: राष्ट्रवाद इटली के एकीकरण की प्रमुख विचारधारा थी। इसने इटालियनों को उनकी साझा भाषा, इतिहास, और संस्कृति के आधार पर एकजुट करने का प्रयास किया।
II. लिबरलिज्म: लिबरलिज्म ने मुक्त व्यापार, नागरिक स्वतंत्रता, और संवैधानिक सरकार को बढ़ावा दिया, जो इटली के एकीकरण के लिए आवश्यक माना जाता था। कैमिलो कैवूर इस विचारधारा के प्रतिनिधि थे।
III. रिपब्लिकनवाद: ग्यूसेपे माज़िनी और उनके अनुयायियों ने एक गणतंत्रीय इटली की कल्पना की। हालांकि, राजशाही के पक्ष में एकीकरण हुआ, लेकिन रिपब्लिकनवाद ने राष्ट्रीय एकता की भावना को प्रोत्साहित किया।
IV. रिसोर्गिमेंटो: यह विचारधारा इटली के पुनर्जन्म की प्रक्रिया को दर्शाती है, जिसमें राजनीतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक सुधार शामिल थे। यह एकीकरण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता था।
V. मज़िनी के विचार: ग्यूसेपे माज़िनी के विचारों ने राष्ट्रीय एकता, स्वतंत्रता, और लोकतंत्र को जोड़ा। उन्होंने “जंग इटलिया” (Young Italy) की स्थापना की, जिसने राजनीतिक चेतना को बढ़ावा दिया।
प्रश्न 12: इटली पर वियना कांग्रेस के निर्णयों का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
I. राजनीतिक विभाजन: वियना कांग्रेस ने इटली के राजनीतिक विभाजन को मजबूत किया। नेपोलियन के बाद की व्यवस्था ने इटली को कई छोटे राज्यों में बांट दिया, जिसमें ऑस्ट्रिया को लोम्बार्डी और वेनेटो का नियंत्रण मिला।
II. ऑस्ट्रियाई प्रभुत्व: ऑस्ट्रिया को उत्तरी इटली के महत्वपूर्ण हिस्से पर नियंत्रण दिया गया, जिसने ऑस्ट्रिया को इटली के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करने की शक्ति दी। यह एकीकरण के लिए एक बड़ी बाधा थी।
III. पोप के राज्य: पोप के राज्य को रोम और उसके आसपास के क्षेत्रों पर नियंत्रण दिया गया, जिसने धार्मिक और राजनीतिक सत्ता को एक साथ बांधा। यह व्यवस्था इटली के एकीकरण में एक अतिरिक्त जटिलता जोड़ती थी।
IV. राष्ट्रीयता की निराशा: वियना कांग्रेस के निर्णयों ने राष्ट्रीयता की भावना को कुचलने की कोशिश की, जिससे इटालियन राष्ट्रवादी आंदोलनों को बढ़ावा मिला। इसने इटली में क्रांतिकारी गतिविधियों को प्रेरित किया।
V. विदेशी हस्तक्षेप: वियना कांग्रेस की व्यवस्था ने विदेशी शक्तियों, विशेषकर ऑस्ट्रिया और फ्रांस, को इटली में हस्तक्षेप करने की अनुमति दी, जिसने एकीकरण के प्रयासों को प्रभावित किया। यह हस्तक्षेप इटली की राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए बाधा बना।
प्रश्न 13: इटली के एकीकरण में फ्रांसीसी क्रांति और नेपोलियन की भूमिका क्या थी?
उत्तर:
I. फ्रांसीसी क्रांति का प्रभाव: फ्रांसीसी क्रांति ने यूरोप में राष्ट्रीयता और लोकतंत्र के विचारों को फैलाया, जिसने इटालियन राष्ट्रवादियों को प्रभावित किया। क्रांति के विचारों ने एकीकरण के लिए एक आधार तैयार किया जिससे इटालियन लोगों में राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन की इच्छा जागृत हुई।
II. नेपोलियन का शासन: नेपोलियन ने इटली के कई क्षेत्रों को फ्रांसीसी साम्राज्य में मिलाया और इटालियन गणराज्य और बाद में इटालियन साम्राज्य की स्थापना की। उनके शासन ने नापेलियनिक कोड को लागू किया, जिसने कानूनी एकरूपता और नागरिक अधिकारों को बढ़ावा दिया।
III. सांस्कृतिक और राजनीतिक जागृति: नेपोलियन का प्रभाव इटली में सांस्कृतिक और राजनीतिक जागृति का कारण बना। उनके सुधारों ने इटालियन राज्यों में राष्ट्रीयता की भावना को मजबूत किया, भले ही उनका शासन विदेशी था।
IV. प्रशासनिक सुधार: नेपोलियन ने इटली में प्रशासनिक सुधार किए, जिससे आधुनिक प्रशासनिक व्यवस्था की नींव पड़ी। यह अनुभव बाद में एकीकरण के दौरान उपयोगी साबित हुआ, जब नए राष्ट्रीय राज्य के निर्माण की बात आई।
V. विरोध और प्रतिरोध: नेपोलियन के खिलाफ विरोध ने इटालियनों में एक साझा पहचान को जन्म दिया। फ्रांसीसी शासन के विरुद्ध लड़ाइयों ने इटालियन राष्ट्रवाद को प्रेरित किया, जो बाद में एकीकरण के लिए महत्वपूर्ण हुआ।
प्रश्न 14: वियना व्यवस्था (1815) के बाद इटली की स्थिति क्या थी?
उत्तर:
I. राजनीतिक विभाजन: वियना कांग्रेस ने नेपोलियन के पतन के बाद इटली को पुनर्विभाजित किया। इटली कई छोटे राज्यों में बंट गया, जिनमें ऑस्ट्रिया के नियंत्रण में क्षेत्र, पोप के राज्य, और स्वतंत्र ड्यूची और राज्य थे।
II. ऑस्ट्रिया का प्रभुत्व: ऑस्ट्रिया को लोम्बार्डी, वेनेटो, और अन्य क्षेत्रों पर नियंत्रण मिला, जिससे यह इटली के राजनीतिक मामलों में प्रमुख खिलाड़ी बन गया। ऑस्ट्रियाई हस्तक्षेप ने राष्ट्रीय एकता के प्रयासों को कमजोर किया।
III. पोप के राज्य: रोम और उसके आसपास के क्षेत्र पोप के अधीन रहे, जो फ्रांसीसी सैन्य सहायता प्राप्त कर रहे थे। यह धार्मिक और राजनीतिक सत्ता का केंद्र बना रहा।
IV. राजनीतिक स्थिरता का अभाव: वियना की व्यवस्था ने स्थिरता लाने की कोशिश की, लेकिन इसने इटालियनों में राष्ट्रीयता की भावना को दबाया, जिससे क्रांतिकारी गतिविधियों और स्वतंत्रता की मांग को प्रेरित किया।
V. सामाजिक और आर्थिक विषमता: इटली के विभिन्न क्षेत्रों के बीच सामाजिक और आर्थिक विकास का स्तर अलग-अलग था, जो एकीकरण की चुनौतियों को बढ़ाता था। उत्तर इटली में औद्योगिक प्रगति दक्षिण की तुलना में अधिक थी।
प्रश्न 15: इटली के एकीकरण के मार्ग में कौन सी बाधाएँ आईं?
उत्तर:
I. विदेशी हस्तक्षेप: ऑस्ट्रिया और फ्रांस जैसी विदेशी शक्तियों ने इटली में अपने हितों की रक्षा के लिए हस्तक्षेप किया, जो एकीकरण की प्रक्रिया को मुश्किल बनाता था। ऑस्ट्रिया का उत्तरी इटली पर नियंत्रण बड़ी बाधा थी।
II. धार्मिक विभाजन: पोप के राज्य और कैथोलिक चर्च की शक्ति ने राजनीतिक एकीकरण को जटिल बनाया, क्योंकि वे राजनीतिक परिवर्तन के खिलाफ थे जो उनकी सत्ता को कम कर सकते थे।
III. राजनीतिक विभाजन: इटली के अंदर विभिन्न राजनीतिक उद्देश्यों और विचारधाराओं का टकराव था। रिपब्लिकनवादी, लिबरल, और राजशाही-समर्थक समूहों के बीच संघर्ष ने एकीकरण की रणनीति को कमजोर किया।
IV. सामाजिक और आर्थिक विभिन्नता: उत्तर और दक्षिण इटली के बीच सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक विभिन्नता ने एक समान राष्ट्रीय पहचान के निर्माण को चुनौती दी। उत्तर अधिक विकसित था, जबकि दक्षिण पिछड़ा हुआ था।
V. राष्ट्रीयता की अधूरी भावना: भले ही राष्ट्रवाद बढ़ रहा था, राष्ट्रीयता की भावना पूरी तरह से जर्मनी के समान नहीं थी। अनेकता में एकता लाना एक बड़ी चुनौती थी, खासकर जब इटली के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग पहचानें थीं।
इकाई 2: प्रथम विश्व युद्ध
प्रश्न 1: प्रथम विश्व युद्ध का परिचय क्या है?
उत्तर:
I. युद्ध का प्रारंभ: प्रथम विश्व युद्ध 28 जुलाई 1914 से शुरू हुआ और 11 नवंबर 1918 तक चला, जिसे “महायुद्ध” भी कहा जाता है। यह युद्ध यूरोप में शुरू हुआ लेकिन जल्द ही विश्वव्यापी हो गया।
II. भागीदारी: यह युद्ध दो प्रमुख गठबंधनों – मित्र राष्ट्रों (Allied Powers) और केंद्रीय शक्तियों (Central Powers) के बीच लड़ा गया। मित्र राष्ट्रों में ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, और बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल थे, जबकि केंद्रीय शक्तियों में जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, ओटोमन साम्राज्य और बुल्गारिया थे।
III. युद्ध की प्रकृति: प्रथम विश्व युद्ध एक ट्रेंच वारफेयर के रूप में जाना गया, जिसमें लंबे समय तक स्थिर मोर्चे बने रहे। यह युद्ध आधुनिक हथियारों और तकनीकों के प्रयोग के लिए भी जाना जाता है जैसे कि मशीन गन, रासायनिक हथियार, और टैंक।
IV. व्यापक प्रभाव: इस युद्ध ने न केवल यूरोप बल्कि पूरी दुनिया की राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक संरचनाओं को बदल दिया। यह युद्ध पुरानी साम्राज्यों के पतन और नई राष्ट्रीयताओं के उदय का भी कारण बना।
प्रश्न 2: प्रथम विश्व युद्ध से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण बिंदु क्या हैं?
उत्तर:
I. साराजेवो की हत्या: युद्ध का सीधा कारण ऑस्ट्रिया-हंगरी के राजकुमार आर्चड्यूक फ्रांज फर्डिनेंड और उनकी पत्नी की साराजेवो में हत्या माना जाता है, जिसने एक कूटनीतिक संकट को जन्म दिया।
II. गठबंधन प्रणाली: यूरोप में व्याप्त गठबंधन प्रणाली ने युद्ध के व्यापक होने को सुनिश्चित किया। एक राज्य के युद्ध में शामिल होने पर उसके सहयोगी भी शामिल हो जाते थे।
III. युद्ध की नई तकनीकें: युद्ध ने नए विनाशकारी हथियारों का प्रयोग देखा, जैसे कि जहरीली गैस, टैंक, और विमान, जिन्होंने युद्ध की प्रकृति को बदल दिया।
IV. पूर्वी और पश्चिमी मोर्चे: युद्ध दो मुख्य मोर्चों पर लड़ा गया – पश्चिमी मोर्चा जहां फ्रांस और बेल्जियम में जर्मन और फ्रांसीसी सेनाएं लड़ रही थीं, और पूर्वी मोर्चा जहां रूस और जर्मनी के बीच संघर्ष था।
V. विश्व युद्ध की अवधारणा: यह युद्ध पहली बार विश्व स्तर पर युद्ध के रूप में मान्यता प्राप्त हुआ, जिसमें कई देश और उपनिवेशों के सैनिक शामिल थे।
प्रश्न 3: प्रथम विश्व युद्ध के कारण क्या थे?
उत्तर:
I. राष्ट्रीयता का उदय: राष्ट्रवाद ने यूरोपीय राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया, जिससे जातीय समूहों की स्वतंत्रता की मांग को हवा मिली।
II. सैन्यवाद: यूरोपीय शक्तियों ने अपनी सेनाओं का विस्तार किया और युद्ध की तैयारी की, जिससे एक अपरिहार्य युद्ध का वातावरण बना।
III. गठबंधन प्रणाली: त्रिप्लिस (Triple Alliance) और त्रिप्लांट (Triple Entente) जैसे गठबंधनों ने युद्ध के प्रसार को सुनिश्चित किया। एक राज्य के युद्ध में शामिल होने पर उसके सहयोगी भी शामिल होते गए।
IV. आर्थिक प्रतिद्वंद्विता: औद्योगिकीकरण ने नई आर्थिक प्रतियोगिता पैदा की, जिसमें उपनिवेशों के लिए होड़, बाजारों और संसाधनों का नियंत्रण शामिल था।
V. मोरक्को और बाल्कन संकट: मोरक्को और बाल्कन क्षेत्रों में प्रतिद्वंद्विता ने यूरोपीय शक्तियों के बीच तनाव को बढ़ाया, जिससे युद्ध की संभावना बढ़ी।
प्रश्न 4: प्रथम विश्व युद्ध के समय की घटनाओं का विवरण क्या है?
उत्तर:
I. शुरुआती झड़पें: युद्ध की शुरुआत ऑस्ट्रिया-हंगरी द्वारा सर्बिया पर युद्ध की घोषणा के साथ हुई, जिसने जल्द ही गठबंधनों को खींचा। जर्मनी ने रूस और फ्रांस पर युद्ध की घोषणा की, ब्रिटेन ने जर्मनी पर युद्ध की घोषणा की।
II. श्लीफेन योजना: जर्मनी की श्लीफेन योजना के अंतर्गत फ्रांस पर हमला किया गया, जिसमें बेल्जियम के माध्यम से आक्रमण किया गया, लेकिन मार्ने की लड़ाई में जर्मनी को रोक दिया गया।
III. ट्रेंच वारफेयर: युद्ध की प्रकृति बदलकर खाई युद्ध में तब्दील हो गई, जहां दोनों पक्षों ने खाइयों के पीछे से लड़ाई की, जिससे लंबे समय तक स्थिर मोर्चे बने रहे।
IV. पूर्वी मोर्चा: पूर्वी मोर्चे पर, जर्मनी ने रूस को हराया और ब्रेस्ट-लिटोव्स्क की संधि के माध्यम से रूस को युद्ध से बाहर निकाल दिया।
V. अमेरिका का प्रवेश: 1917 में, जर्मनी की असीमित पनडुब्बी युद्ध नीति और ज़िमरमैन टेलीग्राम के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका युद्ध में शामिल हुआ, जिसने युद्ध का प्रवाह बदल दिया।
प्रश्न 5: प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम क्या थे?
उत्तर:
I. आर्थिक परिणाम:
विनाश और ऋण: युद्ध ने विशाल आर्थिक विनाश किया, प्रमुख रूप से यूरोप में, जहां उद्योग, कृषि, और बुनियादी ढांचा नष्ट हुआ। जर्मनी को विजेता राष्ट्रों को भारी मुआवजा देना पड़ा।
अर्थव्यवस्थाओं का पुनर्निर्माण: युद्ध बाद के वर्षों में आर्थिक पुनर्निर्माण की आवश्यकता ने कई राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं को मुश्किलों से गुजारा।
II. सामाजिक परिणाम:
मानव हानि: युद्ध ने करोड़ों लोगों की जान ली, जिससे समाजों में बड़ा क्षति हुई। पूरे परिवार और पीढ़ियां खत्म हो गईं।
महिलाओं की भूमिका: युद्ध ने महिलाओं को कार्यबल में प्रवेश करने का अवसर दिया, जिसने सामाजिक संरचनाओं को बदल दिया।
III. राजनीतिक परिणाम:
साम्राज्यों का पतन: ऑस्ट्रिया-हंगरी, ओटोमन साम्राज्य, जर्मनी, और रूस में राजनीतिक क्रांति हुई, जिससे नए राष्ट्रों का उदय हुआ।
वर्साय संधि: वर्साय की संधि के माध्यम से जर्मनी को दंडित किया गया, जिसने बाद में द्वितीय विश्व युद्ध की नींव रखी।
लीग ऑफ नेशंस: युद्ध के बाद, लीग ऑफ नेशंस की स्थापना हुई, जिसका उद्देश्य शांति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना था।
प्रश्न 6: विश्वयुद्ध और भारत का संबंध क्या था?
उत्तर:
I. सैन्य योगदान: ब्रिटिश राज के तहत, भारत ने प्रथम विश्व युद्ध में लगभग 1.3 मिलियन सैनिकों का योगदान दिया। ये सैनिक मेसोपोटामिया, फ्रांस, और पूर्वी अफ्रीका में लड़े।
II. आर्थिक प्रभाव: युद्ध ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी असर डाला, क्योंकि ब्रिटेन ने भारतीय संसाधनों और माल को युद्ध प्रयासों में इस्तेमाल किया। इसने कुछ हद तक भारतीय उद्योगों को बढ़ावा दिया।
III. राजनीतिक जागृति: भारत ने युद्ध में ब्रिटेन का समर्थन किया थे, लेकिन इसके बदले में स्वतंत्रता की अपेक्षा की जाती थी। युद्ध के बाद, भारत में राजनीतिक चेतना बढ़ी, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन को तेज कर दिया।
IV. सामाजिक परिवर्तन: भारतीय सैनिकों के विदेशों में जाने से उन्हें नई विचारधाराओं और सामाजिक प्रथाओं का सामना करना पड़ा, जिसने उनकी सोच को प्रभावित किया।
प्रश्न 7: प्रथम विश्व युद्ध के प्रभाव क्या थे?
उत्तर:
I. वैश्विक राजनीतिक परिवर्तन: युद्ध ने यूरोप के राजनीतिक नक्शे को बदल दिया, जिससे नए राज्यों का उदय हुआ और पुराने साम्राज्यों का पतन हुआ।
II. सामाजिक बदलाव: युद्ध ने समाजों को अस्थिर कर दिया, महिलाओं को अधिक सार्वजनिक भूमिकाएं दीं, और राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ाया।
III. आर्थिक परिवर्तन: युद्ध के बाद की अवधि ने आर्थिक मंदी, मुद्रास्फीति, और पुनर्निर्माण की चुनौतियों को जन्म दिया।
IV. अंतर्राष्ट्रीय संबंध: युद्ध ने लीग ऑफ नेशंस की स्थापना की, जिसने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया, लेकिन इसकी अप्रभावशीलता ने भविष्य की समस्याओं की नींव रखी।
V. तकनीकी प्रगति: युद्ध ने तकनीकी नवाचारों को प्रोत्साहित किया, जो बाद में नागरिक समाज में उपयोगी साबित हुए, जैसे कि विमानन और रेडियो संचार।
प्रश्न 8: प्रथम विश्व युद्ध का अंत कैसे हुआ?
उत्तर:
I. सैन्य और राजनीतिक परिस्थितियाँ: युद्ध के अंतिम वर्षों में, केंद्रीय शक्तियाँ, विशेष रूप से जर्मनी, सैन्य और राजनीतिक रूप से कमजोर हो रही थीं। अमेरिका का प्रवेश और बुल्गारिया, ऑस्ट्रिया-हंगरी, और ओटोमन साम्राज्य की हार ने जर्मनी को अलग-थलग कर दिया।
II. घरेलू असंतोष: जर्मनी में, युद्ध की थकान, खाद्यान्न की कमी, और क्रांतिकारी गतिविधियों ने सरकार को शांति की ओर धकेला।
III. युद्धविराम: 11 नवंबर 1918 को, जर्मनी ने युद्धविराम स्वीकार किया, जिसने युद्ध को औपचारिक रूप से समाप्त किया।
IV. वर्साय संधि: 1919 में, वर्साय की संधि ने युद्ध के औपचारिक समापन को निश्चित किया, जिसमें जर्मनी के खिलाफ कड़े प्रावधान थे।
V. नई यूरोपीय व्यवस्था: युद्ध के अंत ने यूरोप में नई सीमाएं और राज्य बनाए, जो वर्साय और अन्य संधियों के माध्यम से निर्धारित हुए।
प्रश्न 9: अमेरिका का विश्व शक्ति के रूप में उदय कैसे हुआ?
उत्तर:
I. युद्ध में प्रवेश: अमेरिका का 1917 में युद्ध में प्रवेश ने युद्ध का रुख बदल दिया। अमेरिकी सैन्य और आर्थिक सहायता ने युद्ध को मित्र राष्ट्रों के पक्ष में मोड़ा।
II. आर्थिक शक्ति: युद्ध के बाद, यूरोपीय शक्तियों की आर्थिक कमजोरी के विपरीत, अमेरिका की अर्थव्यवस्था मजबूत रही, जिससे वह यूरोप के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सका।
III. राजनीतिक प्रभाव: वर्साय संधि के बाद, अमेरिका ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका को मजबूत किया, हालांकि लीग ऑफ नेशंस में शामिल नहीं हुआ।
IV. वैश्विक सहायता: अमेरिका ने युद्धोत्तर पुनर्निर्माण में सहायता प्रदान की, जैसे कि मार्शल प्लान, जो हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आया, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी अमेरिकी प्रभुत्व की नींव रखी।
V. सांस्कृतिक प्रभाव: अमेरिकी संस्कृति और जीवन शैली ने विश्व स्तर पर प्रभाव डालना शुरू किया, जिससे अमेरिका की वैश्विक छवि मजबूत हुई।
प्रश्न 10: प्रथम विश्व युद्ध में रसायनिक हथियारों का उपयोग कैसे हुआ?
उत्तर:
I. शुरुआत: प्रथम विश्व युद्ध में रसायनिक हथियारों का प्रयोग पहली बार 1915 में जर्मनी द्वारा क्लोरीन गैस के रूप में किया गया, जिससे यप्रेस की लड़ाई में भारी विनाश हुआ।
II. विभिन्न प्रकार की गैसें: समय के साथ, दोनों पक्षों ने मस्टर्ड गैस, फोस्जीन, और अन्य रासायनिक एजेंटों का उपयोग किया, जो या तो घातक थे या बेहोश करने वाले।
III. रक्षात्मक उपाय: गैस हमलों से बचाव के लिए गैस मास्क, प्रशिक्षण, और रासायनिक हमले की चेतावनी प्रणालियां विकसित की गईं।
IV. मानवीय और नैतिक प्रभाव: रसायनिक हथियारों ने युद्ध की भयावहता को बढ़ाया, जिससे लंबे समय तक चलने वाली चोटें और मानसिक आघात हुए। इसने बाद में रसायनिक हथियारों के उपयोग पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध की मांग को जन्म दिया।
V. युद्ध के बाद की व्यवस्था: प्रथम विश्व युद्ध के बाद, रसायनिक हथियारों के उपयोग को सीमित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौतों जैसे जिनेवा प्रोटोकॉल (1925) की शुरुआत हुई।
प्रश्न 11: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सैन्य रणनीतियों में क्या बदलाव आए?
उत्तर:
I. खाई युद्ध: युद्ध की सबसे महत्वपूर्ण रणनीति खाई युद्ध थी, जहां दोनों पक्षों ने लंबी खाइयों के पीछे से लड़ाई की, जिससे स्थिर मोर्चे बने और लंबे समय तक टकराव जारी रहा।
II. मशीन गन और आर्टिलरी: मशीन गनों और भारी तोपखाने के उपयोग ने रणनीतियों को बदल दिया, जिससे सामने से हमला करना बहुत मुश्किल हो गया।
III. टैंक और विमान: टैंकों का उपयोग खाइयों को तोड़ने के लिए और विमानों का इस्तेमाल मानचित्रण और बमबारी के लिए किया गया, जिसने युद्ध के आयाम को बदल दिया।
IV. युद्धविराम और प्रतिद्वंद्विता: दोनों पक्षों ने अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाने के लिए संसाधनों का उपयोग किया, लेकिन युद्धविराम के समय भी नई रणनीतियों और हथियारों का विकास जारी रहा।
V. सैन्य नेतृत्व: युद्ध ने सैन्य नेतृत्व की प्रकृति को बदला, जहां रणनीतिकारों को अधिक सोच-समझकर और नवीनता के साथ युद्ध को संचालित करना पड़ा।
प्रश्न 12: प्रथम विश्व युद्ध के प्रचार की भूमिका क्या थी?
उत्तर:
I. मोराल बढ़ाना: प्रचार का प्रमुख उद्देश्य घरेलू मोराल को बढ़ाना था, सैनिकों को प्रेरित करना और नागरिकों को युद्ध प्रयासों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना।
II. दुश्मन को बदनाम करना: प्रचार अभियानों ने दुश्मन को अमानवीय और खतरनाक दिखाने की कोशिश की, जो युद्ध के समर्थन में जनता की भावनाओं को प्रभावित करता था।
III. सरकारी नियंत्रण: सरकारें ने प्रचार के माध्यम से मीडिया पर नियंत्रण स्थापित किया, जिससे सूचना का प्रवाह नियंत्रित किया जा सके।
IV. वित्तीय समर्थन: बॉन्ड जारी करने और स्वयंसेवी कार्यों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रचार का उपयोग किया गया, जिससे युद्ध के लिए आवश्यक धन जुटाया जा सके।
V. मनोवैज्ञानिक युद्ध: प्रचार ने मनोवैज्ञानिक युद्ध का एक रूप लिया, जहां झूठी या अतिरंजित जानकारी से दुश्मन के मनोबल को कमजोर किया जाता था।
प्रश्न 13: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान महिलाओं की भूमिका क्या रही?
उत्तर:
I. कार्यबल में प्रवेश: युद्ध के कारण पुरुषों के सैनिक बनने से महिलाओं को पारंपरिक रूप से पुरुषों के कार्यों में प्रवेश मिला, जैसे कि कारखानों में काम, खेती, और प्रशासनिक नौकरियाँ।
II. नर्सिंग और चिकित्सा: महिलाओं ने युद्ध के दौरान नर्सिंग और चिकित्सा सेवाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो घायल सैनिकों की देखभाल करती थीं।
III. घरेलू मोर्चा: महिलाएँ राशनिंग, खाद्य उत्पादन, और स्वयंसेवी कार्यों में शामिल थीं, जो युद्ध प्रयास के लिए महत्वपूर्ण थे।
IV. सामाजिक परिवर्तन: युद्ध के बाद, महिलाओं की भूमिका और उनके अधिकारों के प्रति समाज का नजरिया बदला, जिससे मताधिकार और अन्य सामाजिक सुधारों का मार्ग प्रशस्त हुआ।
V. युद्धोत्तर प्रभाव: युद्ध ने महिलाओं की क्षमताओं को दिखाया, जिससे उनके सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों में वृद्धि हुई।
प्रश्न 14: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कला और साहित्य कैसे प्रभावित हुए?
उत्तर:
I. युद्ध की वास्तविकता: कला और साहित्य ने युद्ध की क्रूरता और वास्तविकता को कैद किया, जिससे युद्ध के विरुद्ध भावनाओं को व्यक्त किया गया।
II. नई कला शैलियाँ: युद्ध के बाद, डैडाइज्म और सर्रेयलिज्म जैसी कला शैलियाँ उभरीं, जो युद्ध के बाद के विघटन और अर्थहीनता की भावना को दर्शाती थीं।
III. साहित्यिक कृतियाँ: साहित्य में, युद्ध के अनुभवों को व्यक्त करने वाले उपन्यास और कविताएँ जैसे “All Quiet on the Western Front” और विल्फ्रेड ओवेन की कविताएँ प्रमुख हुईं, जिन्होंने युद्ध की भयावहता को उजागर किया।
IV. प्रचार कला: युद्ध के दौरान, कला का उपयोग प्रचार के लिए भी किया गया, जिसमें पोस्टर और चित्रों से जनता को प्रेरित किया जाता था।
V. सांस्कृतिक परिवर्तन: युद्ध ने सांस्कृतिक परिवर्तन को प्रेरित किया, जहां कला और साहित्य ने समाज की नई वास्तविकताओं को दर्शाया, जिसमें मृत्यु, नुकसान, और पुनर्निर्माण के विषय प्रमुख थे।
प्रश्न 15: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान और बाद में भारत में क्या राजनीतिक परिवर्तन हुए?
उत्तर:
I. स्वतंत्रता की उम्मीद: भारत ने युद्ध में ब्रिटेन का समर्थन किया था, जिससे स्वतंत्रता की उम्मीद जगी, हालांकि यह उम्मीद पूरी नहीं हुई।
II. राजनीतिक जागृति: युद्ध के अनुभव ने भारत में राजनीतिक जागृति को बढ़ावा दिया, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन को गति मिली। महात्मा गांधी का उदय इस दौरान हुआ।
III. मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार: 1919 में, मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के माध्यम से भारत में सीमित स्वशासन की शुरुआत हुई, जो युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया थी।
IV. रौलेट एक्ट और जलियांवाला बाग: रौलेट एक्ट का विरोध और जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय राजनीतिक संघर्ष को तीव्र किया, जिससे असहयोग आंदोलन की नींव पड़ी।
V. राष्ट्रीय आंदोलन: युद्ध ने भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ाया, जिसने बाद में भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इकाई 3: पेरिस शांति सम्मेलन और वर्साय की संधि
प्रश्न 1: पेरिस शांति सम्मेलन का परिचय क्या है?
उत्तर:
I. उद्देश्य: पेरिस शांति सम्मेलन (1919-1920) का मुख्य उद्देश्य प्रथम विश्व युद्ध के बाद शांति स्थापित करना और एक नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का निर्माण करना था।
II. समय और स्थान: यह सम्मेलन 18 जनवरी 1919 से शुरू हुआ और पेरिस, फ्रांस में आयोजित किया गया था।
III. महत्वपूर्ण परिणाम: इस सम्मेलन से वर्साय की संधि और अन्य कई शांति संधियाँ उभरीं, जिन्होंने यूरोप के राजनीतिक नक्शे को पुनर्निर्धारित किया।
IV. वैश्विक प्रभाव: सम्मेलन ने लीग ऑफ नेशंस की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया, जो पहला वैश्विक संगठन था जिसका उद्देश्य शांति की रक्षा थी।
V. अन्तर्विरोध: सम्मेलन विभिन्न राष्ट्रीय हितों, प्रतिशोध, और आदर्शवाद के बीच संतुलन बनाने का एक प्रयास था, जिसमें कई बार समझौते और विवाद उभरे।
प्रश्न 2: पेरिस शांति सम्मेलन के लिए स्थल का चयन कैसे हुआ?
उत्तर:
I. ऐतिहासिक महत्व: पेरिस को सम्मेलन का स्थल चुना गया क्योंकि यह यूरोप का राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र था, और फ्रांस एक प्रमुख मित्र राष्ट्र था।
II. युद्ध का प्रभाव: फ्रांस को प्रथम विश्व युद्ध में भारी क्षति उठानी पड़ी थी, इसलिए पेरिस में सम्मेलन आयोजित करने से फ्रांस के पुनर्निर्माण और मनोबल को बहाल करने में मदद मिली।
III. लॉजिस्टिक सुविधाएँ: पेरिस में बड़ी संख्या में प्रतिनिधियों को समायोजित करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा और संचार सुविधाएं उपलब्ध थीं।
IV. प्रतीकात्मकता: पेरिस को चुनना एक सांकेतिक कार्य भी था, जो युद्ध के बाद शांति और यूरोपीय एकता के नए युग की शुरुआत का प्रतिनिधित्व करता था।
V. राजनीतिक विचार: चूंकि फ्रांस के प्रधानमंत्री क्लेमांशु एक मुख्य वार्ताकार थे, यह फ्रांस के लिए अपने उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाने का एक तरीका था।
प्रश्न 3: पेरिस शांति सम्मेलन के प्रतिनिधि कौन थे?
उत्तर:
I. अमेरिका का राष्ट्रपति वुडरो विल्सन: विल्सन ने “14 बिंदु” का प्रस्ताव रखा, जो युद्ध के बाद शांति के लिए उनका दृष्टिकोण था। वे लीग ऑफ नेशंस के समर्थक थे।
II. ब्रिटेन का प्रधानमंत्री डेविड लायड जार्ज: लायड जार्ज ने जर्मनी को नियंत्रित करने और अपने साम्राज्य के हितों की रक्षा करने की नीति अपनाई, लेकिन उन्होंने विल्सन के कुछ विचारों का भी समर्थन किया।
III. फ्रांस का प्रधानमंत्री जार्ज यूजने बेंजामिन क्लेमांशु: क्लेमांशु जर्मनी के खिलाफ बहुत कठोर थे, उन्होंने जर्मनी को कमजोर करने और मुआवजे की मांग की।
IV. इटली का विटारियो इमैनुअल ओरलैंडो: ओरलैंडो ने इटली के लिए युद्ध के बाद की प्रतिज्ञाओं को पूरा करने की मांग की, विशेष रूप से फियुमे और दलमेशिया को लेकर।
V. अन्य प्रतिनिधि: सम्मेलन में जापान, बेल्जियम, और अन्य मित्र देशों के प्रतिनिधि भी शामिल थे, हालांकि निर्णयों पर मुख्य प्रभाव “बिग फोर” (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, और इटली) ने डाला।
प्रश्न 4: पेरिस शांति सम्मेलन की शुरुआत कैसे हुई?
उत्तर:
I. आयोजन: सम्मेलन की शुरुआत 18 जनवरी 1919 को पेरिस में हुई, जहाँ 32 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
II. प्रारंभिक बैठक: पहली बैठक वर्साय में हुई, जहाँ सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में सभी प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
III. वुडरो विल्सन का भाषण: अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन ने अपने “14 बिंदु” का प्रस्ताव रखा, जिसने शांति स्थापना के लिए एक आदर्शवादी ढांचा प्रदान किया।
IV. समितियों का गठन: शुरुआत में, विभिन्न समितियों और आयोगों का गठन किया गया ताकि विभिन्न मुद्दों जैसे क्षेत्रों का पुनर्वितरण, मुआवजे, और शांति की संधियों के मसौदे पर काम किया जा सके।
V. मुख्य वार्ताकारों की बैठकें: “बिग फोर” (विल्सन, लायड जार्ज, क्लेमांशु, और ओरलैंडो) ने प्रमुख निर्णयों पर चर्चा की, जो अक्सर बाकी प्रतिनिधियों से अलग होकर होती थीं।
प्रश्न 5: पेरिस शांति सम्मेलन में परिषदों का गठन कैसे हुआ?
उत्तर:
I. सुप्रीम काउंसिल (Supreme Council): यह “बिग फोर” और बाद में “बिग फाइव” (जब जापान शामिल हुआ) द्वारा बनाया गया, जो मुख्य निर्णय लेने वाली संस्था थी।
II. काउंसिल ऑफ फोर (Council of Four): इसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, और इटली के मुख्य प्रतिनिधि शामिल थे, जो मुख्य मुद्दों पर चर्चा और निर्णय करते थे।
III. काउंसिल ऑफ टेन (Council of Ten): इसमें मित्र राष्ट्रों के विदेश मंत्री और प्रमुख शामिल थे, जो एक बड़ा समूह था लेकिन जल्द ही अधिक छोटे समूहों में विभाजित हो गया।
IV. कमीशन: विशेष मुद्दों जैसे कि क्षेत्रीय दावे, मुआवजे, और जनमत संग्रह के लिए कमीशन बनाए गए, जिनमें विशेषज्ञ और प्रतिनिधि काम करते थे।
V. आर्थिक और वित्तीय परिषद: आर्थिक मुद्दों, युद्ध की लागत और मुआवजे की गणना करने के लिए एक अलग परिषद का गठन किया गया।
प्रश्न 6: पेरिस शांति सम्मेलन की समस्याएँ क्या थीं?
उत्तर:
I. अलग-अलग राष्ट्रीय हित: प्रमुख देशों के बीच उनके स्वार्थों का टकराव, जैसे कि फ्रांस की जर्मनी को कमजोर करने की इच्छा और विल्सन का आदर्शवादी दृष्टिकोण।
II. अंतरराष्ट्रीय सीमाओं का पुनर्निर्धारण: क्षेत्रों का पुनर्वितरण और नए राज्यों का निर्माण एक जटिल और विवादास्पद प्रक्रिया थी, जिससे कई सांस्कृतिक और जातीय समस्याएँ उत्पन्न हुईं।
III. मुआवजा और दंड: जर्मनी को कितना मुआवजा देना चाहिए, और किस रूप में, इस पर सहमति न बनना एक बड़ी समस्या थी।
IV. राष्ट्रीयता की भावना: राष्ट्रीयता के आधार पर सीमाएँ तय करने से नए तनाव उत्पन्न हुए, जैसे कि पोलैंड और जर्मनी के बीच।
V. अप्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व: कई प्रभावित क्षेत्रों या राष्ट्रों को सीधे प्रतिनिधित्व नहीं मिला, जिससे उनकी आवाजें और हित संरक्षित नहीं हुए।
प्रश्न 7: पेरिस की शांति संधियाँ कौन सी थीं?
उत्तर:
I. वर्साय की संधि: जर्मनी के साथ हुई, यह सबसे महत्वपूर्ण संधि थी, जिसने जर्मनी को कई प्रतिबंध और मुआवजे के लिए बाध्य किया।
II. सेंट जर्मन की संधि (10 सितम्बर 1919): ऑस्ट्रिया के साथ, इसने ऑस्ट्रिया-हंगरी के विभाजन को मान्यता दी और ऑस्ट्रिया के क्षेत्रों को फिर से वितरित किया।
III. न्यूली की संधि (27 नवम्बर 1919): बुल्गारिया के साथ, इसने बुल्गारिया को क्षेत्रीय नुकसान और मुआवजा भरने के लिए कहा।
IV. त्रियानों की संधि: हंगरी के साथ, इसने हंगरी के क्षेत्रों को पड़ोसी राज्यों में विभाजित किया।
V. सेव्रेस की संधि (10 अगस्त 1920): ओटोमन साम्राज्य के साथ, इसने ओटोमन साम्राज्य को विभाजित किया और नए राज्यों के निर्माण की नींव रखी; हालांकि, इसे बाद में लौसान्ने की संधि से प्रतिस्थापित किया गया।
प्रश्न 8: वर्साय संधि के प्रावधान क्या थे?
उत्तर:
I. क्षेत्रीय नुकसान: जर्मनी ने एल्सास-लोरेन को फ्रांस को, पोलिश कोरिडोर और डांजिग को पोलैंड को, और अन्य क्षेत्रों को खोया।
II. सैन्य प्रतिबंध: जर्मन सेना को 100,000 सैनिकों तक सीमित कर दिया गया, हवाई सेना का निषेध, और राइनलैंड को विसैन्यीकरण किया गया।
III. मुआवजा: जर्मनी को युद्ध के नुकसान के लिए मुआवजा देना था, जिसकी राशि बाद में निर्धारित की गई।
IV. युद्ध अपराध: जर्मनी को युद्ध शुरू करने का दोष स्वीकार करना पड़ा (वार गिल्ट क्लॉज), जिसने उन्हें आर्थिक और नैतिक दंड के लिए उत्तरदायी बनाया।
V. अंतर्राष्ट्रीय संगठन: लीग ऑफ नेशंस की स्थापना का प्रावधान, जिसमें जर्मनी की सदस्यता नहीं थी।
प्रश्न 9: वर्साय की संधि का महत्व क्या था?
उत्तर:
I. यूरोप का पुनर्निर्माण: यह संधि यूरोप के राजनीतिक नक्शे को फिर से तय करती थी, नए राज्यों के निर्माण और पुराने साम्राज्यों के विभाजन से।
II. शांति की नींव: संधि ने अंतर्राष्ट्रीय कानून और शांति की स्थापना के लिए एक नया ढांचा प्रदान किया, जिसमें लीग ऑफ नेशंस की स्थापना शामिल है।
III. जर्मनी का नियंत्रण: जर्मनी की सैन्य और आर्थिक क्षमता को कम करके, यह संधि भविष्य में युद्ध की संभावना को कम करने का प्रयास था।
IV. राष्ट्रीयता की पहचान: राष्ट्रीयता के सिद्धांत पर सीमाओं को निर्धारित करने का प्रयास, जिसने राष्ट्रीय आंदोलनों को प्रोत्साहित किया।
V. वैश्विक प्रभाव: इसने एक नई वैश्विक व्यवस्था की शुरुआत की, जिसके प्रभाव ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों और राजनीति पर लंबे समय तक प्रभाव डाला।
प्रश्न 10: वर्साय संधि का मूल्यांकन कैसे किया जा सकता है?
उत्तर:
I. शांति की स्थापना: यह संधि प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त करने में सफल रही, लेकिन यह शांति टिकाऊ नहीं रही, जिसने बाद में द्वितीय विश्व युद्ध की नींव रखी।
II. आर्थिक प्रभाव: जर्मनी पर लगाये गए मुआवजे ने उसकी अर्थव्यवस्था को कमजोर किया, जिससे राजनीतिक अस्थिरता और राष्ट्रवादी भावना बढ़ी।
III. राजनीतिक परिवर्तन: यह संधि नए राज्यों के निर्माण में मददगार रही, लेकिन क्षेत्रीय विवादों को जन्म दिया, जो बाद में यूरोप में अशांति का कारण बना।
IV. अंतर्राष्ट्रीय संबंध: लीग ऑफ नेशंस की स्थापना ने अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा दिया, लेकिन इसकी कमियों ने भविष्य में संघर्ष को रोकने में असफलता दर्ज की।
V. न्याय और प्रतिशोध: कुछ ने इसे न्याय के रूप में देखा, जबकि दूसरों ने फ्रांस के प्रतिशोधी रुख की आलोचना की, जिसने जर्मनी को अपमानित महसूस कराया।
प्रश्न 11: वर्साय संधि का औचित्य क्या है?
उत्तर:
I. युद्ध का अंत: इसने प्रथम विश्व युद्ध को औपचारिक रूप से समाप्त किया, जिससे यूरोप में तत्काल हत्या और विनाश रुका।
II. प्रतिशोध की आवश्यकता: मित्र राष्ट्रों की दृष्टि में, जर्मनी को दंडित करना और उसकी आक्रामकता को कम करना जरूरी था।
III. राजनीतिक स्थिरता: नए राज्यों के निर्माण और सीमाओं के पुनर्निर्धारण के द्वारा, इसने कुछ राजनीतिक स्थिरता की उम्मीद जगाई।
IV. अंतर्राष्ट्रीय कानून: संधि ने अंतर्राष्ट्रीय कानून और संगठनों की प्रासंगिकता को बढ़ाया, जिससे वैश्विक समस्याओं का समाधान हो सके।
V. नैतिक और ऐतिहासिक संदर्भ: युद्ध के अत्याचारों के बाद, इसे नैतिक रूप से जर्मनी को जिम्मेदार ठहराने और पुनरावृत्ति रोकने के लिए उचित माना गया।
प्रश्न 12: वर्साय की संधि की विफलता और द्वितीय विश्व युद्ध का क्या संबंध है?
उत्तर:
I. जर्मनी का अपमान: संधि ने जर्मनी को अपमानित किया, जिससे राष्ट्रवादी और प्रतिशोध की भावना बढ़ी, जिसने नाजीवाद को जन्म दिया।
II. आर्थिक अस्थिरता: मुआवजे का बोझ ने जर्मनी की अर्थव्यवस्था को अस्थिर किया, जिससे राजनीतिक अस्थिरता और हिटलर के उदय की स्थिति बनी।
III. सैन्य प्रतिबंधों का उल्लंघन: जर्मनी ने धीरे-धीरे सैन्य प्रतिबंधों को तोड़ा, जिसने उसके आक्रामक विस्तार के लिए रास्ता खोला।
IV. अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की कमजोरी: लीग ऑफ नेशंस की अप्रभावशीलता और मित्र राष्ट्रों की आपसी सहमति की कमी ने हिटलर को अपनी कार्रवाइयों को जारी रखने का मौका दिया।
V. शांति की अस्थिरता: वर्साय संधि के उपाय शांति को स्थायी रूप से स्थापित करने में विफल रहे, जिससे यूरोप में तनाव बना रहा, जिसने अंततः द्वितीय विश्व युद्ध को जन्म दिया।
प्रश्न 13: सेंट जर्मन की संधि, 10 सितम्बर 1919 ई. के बारे में बताएँ।
उत्तर:
I. उद्देश्य: यह संधि ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के विघटन के बाद ऑस्ट्रिया के साथ हुई, जिसका उद्देश्य नई सीमाएं तय करना और ऑस्ट्रिया के राजनीतिक भविष्य को निर्धारित करना था।
II. क्षेत्रीय पुनर्वितरण: ऑस्ट्रिया ने अपने कई क्षेत्रों को खोया, जैसे कि बोहेमिया और मोराविया जो चेकोस्लोवाकिया को मिले, और ट्रायस्टे जो इटली को दिया गया।
III. सैन्य प्रतिबंध: ऑस्ट्रिया को अपनी सेना को 30,000 सैनिकों तक सीमित करने की आवश्यकता थी, और उसे सैन्य संधियाँ करने से भी रोका गया।
IV. आर्थिक प्रभाव: ऑस्ट्रिया को मुआवजे के भुगतान के लिए कहा गया, हालांकि यह राशि वर्साय संधि में जर्मनी के मुकाबले कम थी।
V. राजनीतिक परिणाम: यह संधि ने ऑस्ट्रिया को एक स्वतंत्र राज्य बनाया, हालांकि जर्मनी के साथ संघ को प्रतिबंधित किया गया, जिसने ऑस्ट्रिया की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति को कमजोर किया।
प्रश्न 14: न्यूली की संधि, 27 नवम्बर 1919 ई. के बारे में बताएँ।
उत्तर:
I. उद्देश्य: यह संधि बुल्गारिया और मित्र राष्ट्रों के बीच हुई, जिसका उद्देश्य प्रथम विश्व युद्ध के बाद बुल्गारिया की स्थिति को निर्धारित करना था।
II. क्षेत्रीय हानि: बुल्गारिया ने वेस्टर्न थ्रेस को यूनान को, डोब्रुजा को रोमानिया को, और कुछ क्षेत्र यूगोस्लाविया को खोया।
III. सैन्य प्रतिबंध: बुल्गारिया को अपनी सेना को 20,000 सैनिकों तक सीमित करना पड़ा, और उसे युद्धपोतों और वायु सेना की अनुमति नहीं थी।
IV. मुआवजा: बुल्गारिया को युद्ध के नुकसान के लिए मुआवजा देना पड़ा, हालांकि यह राशि कम थी।
V. राजनीतिक प्रभाव: संधि ने बुल्गारिया को राजनीतिक और आर्थिक रूप से कमजोर किया, जिससे देश में असंतोष और राष्ट्रवादी भावनाएं बढ़ीं।
प्रश्न 15: त्रियानों की संधि के बारे में बताएँ।
उत्तर:
I. उद्देश्य: यह संधि हंगरी और मित्र राष्ट्रों के बीच 4 जून 1920 को हुई, जिसका उद्देश्य ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के विघटन के बाद हंगरी के क्षेत्र का पुनर्निर्धारण करना था।
II. क्षेत्रीय विभाजन: हंगरी ने लगभग दो-तिहाई क्षेत्र खोया, जिसमें स्लोवाकिया, ट्रांसिल्वेनिया, क्रोएशिया, और स्लोवेनिया को पड़ोसी राज्यों को दिया गया।
III. सैन्य प्रतिबंध: हंगरी की सेना को 35,000 सैनिकों तक सीमित किया गया, और उसे वायु सेना और भारी हथियारों के निर्माण से रोका गया।
IV. आर्थिक प्रभाव: हंगरी को मुआवजा देना था, जिसने उसकी पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था को और कमजोर किया।
V. राजनीतिक परिणाम: त्रियानों की संधि हंगरी के इतिहास में एक दुखद घटना के रूप में देखी जाती है, जिसने राष्ट्रीयतावादी भावनाओं को जन्म दिया और देश में लंबे समय तक असंतोष को बढ़ावा दिया।
इकाई 4: राष्ट्र संघ- संगठन, उपलब्धियाँ और विफलता
प्रश्न 1: राष्ट्र संघ का संगठन कैसा था?
उत्तर:
I. स्थापना: प्रथम विश्व युद्ध के बाद, 1920 में।
II. संरचना: सभा, परिषद, सचिवालय, और स्थायी न्यायालय से बना था।
III. सदस्यता: 58 देशों की अधिकतम सदस्यता।
IV. मुख्यालय: जेनेवा, स्विट्जरलैंड में।
V. कार्यप्रणाली: सर्वसम्मति से निर्णय लेना।
प्रश्न 2: राष्ट्रसंघ का संविधान क्या था?
उत्तर:
I. कवेनेंट: राष्ट्र संघ के संविधान को कवेनेंट कहा जाता था।
II. वर्साय की संधि: कवेनेंट वर्साय की संधि का हिस्सा था।
III. सिद्धांत: शांति, सहयोग, और आर्थिक स्थिरता पर आधारित।
IV. सदस्यों के अधिकार और कर्तव्य: सदस्य राष्ट्रों की जिम्मेदारियाँ।
V. संशोधन: संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया।
प्रश्न 3: राष्ट्रसंघ का उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
I. शांति स्थापना: युद्ध को रोकना और विवादों का शांतिपूर्ण समाधान करना।
II. अर्मामेंट नियंत्रण: सैन्य हथियारों को कम करना।
III. आर्थिक सहयोग: देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाना।
IV. मानवाधिकार: मानवाधिकारों की रक्षा और उन्नति करना।
V. स्वास्थ्य: सार्वजनिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना।
प्रश्न 4: राष्ट्रसंघ की सदस्यता क्या थी?
उत्तर:
I. संस्थापक सदस्य: 42 देश जिन्होंने वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर किए।
II. नई सदस्यता: बाद में शामिल होने वाले देशों की सदस्यता।
III. अमेरिका की अनुपस्थिति: अमेरिका ने संधि को स्वीकार नहीं किया।
IV. समाप्ति: सदस्यता की समाप्ति की प्रक्रिया।
V. अनिवार्य कर्तव्य: सदस्य राष्ट्रों के लिए अनिवार्य कर्तव्य।
प्रश्न 5: राष्ट्रसंघ के अंग कौन से थे?
उत्तर:
I. सभा: सभी सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व।
II. परिषद: प्रमुख देशों का समूह जो नीतियाँ तय करता था।
III. सचिवालय: प्रशासनिक कार्यों का प्रबंधन।
IV. स्थायी न्यायालय: अंतर्राष्ट्रीय विवादों का न्यायिक समाधान।
V. विशेष समितियाँ: विशेष मुद्दों पर काम करने वाली समितियाँ।
प्रश्न 6: राष्ट्र संघ की उपलब्धियाँ क्या थीं?
उत्तर:
I. शांति रक्षा: कुछ संघर्षों को शांत करने में सफलता।
II. स्वास्थ्य: डब्ल्यूएचओ के पूर्वज, स्वास्थ्य संगठन की स्थापना।
III. मानवीय कार्य: शरणार्थियों के लिए कार्य।
IV. श्रम मानक: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना।
V. निरस्त्रीकरण: कुछ हद तक हथियार नियंत्रण की दिशा में।
प्रश्न 7: राष्ट्र संघ की विफलताएँ क्या थीं?
उत्तर:
I. जापानी आक्रमण: जापान का मांचूरिया पर कब्जा, राष्ट्र संघ ने रोक नहीं पाया।
II. इटली का आक्रमण: इथियोपिया पर इतालवी आक्रमण को रोकने में विफल।
III. हिटलर की नीतियाँ: जर्मनी के पुनर्सशस्त्रीकरण को रोकने में असफल।
IV. आर्थिक समस्याएँ: आर्थिक मंदी को संभालने में नाकाम रहा।
V. संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका की अनुपस्थिति एक बड़ा कमजोर बिंदु।
प्रश्न 8: राष्ट्रसंघ का मूल्यांकन कैसे किया जाता है?
उत्तर:
I. असफलता: विश्व युद्ध को रोकने में असफल।
II. सीख: संयुक्त राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण सीख।
III. सफलता: कुछ सीमित सफलताएँ शांति और सहयोग में।
IV. संस्थागत विकास: अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के विकास में योगदान।
V. आलोचना: निर्णय लेने की प्रक्रिया और प्रभावहीनता की आलोचना।
प्रश्न 9: राष्ट्र संघ के सभा का कार्य क्या था?
उत्तर:
I. सदस्यता: सभी सदस्य राष्ट्रों का प्रतिनिधित्व।
II. बहस और नीति निर्धारण: अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस और नीतियां बनाना।
III. बजट अनुमोदन: राष्ट्र संघ के बजट का अनुमोदन।
IV. संधि प्रस्ताव: नई संधियों के प्रस्ताव।
V. सलाह देना: परिषद को सलाह देना और रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
प्रश्न 10: राष्ट्र संघ के परिषद का कार्य क्या था?
उत्तर:
I. शांति और सुरक्षा: अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का प्रबंधन।
II. विवाद समाधान: देशों के बीच विवादों का समाधान करना।
III. सदस्यता: स्थायी और गैर-स्थायी सदस्यों से बना था।
IV. निरस्त्रीकरण: हथियारों के नियंत्रण की नीतियाँ।
V. कार्यान्वयन: राष्ट्र संघ के निर्णयों का कार्यान्वयन।
प्रश्न 11: राष्ट्र संघ के सचिवालय की भूमिका क्या थी?
उत्तर:
I. प्रबंधन: संगठन के दैनिक कार्यों का प्रबंधन।
II. संचार: सदस्य देशों के बीच संचार को सुगम बनाना।
III. संगठन: बैठकों की व्यवस्था और रिकॉर्ड रखना।
IV. सहायता: सभा और परिषद को तकनीकी और प्रशासनिक सहायता।
V. सूचना: विवरण और रिपोर्ट तैयार करना।
प्रश्न 12: राष्ट्र संघ के स्थायी न्यायालय की भूमिका क्या थी?
उत्तर:
I. न्यायिक समाधान: अंतर्राष्ट्रीय विवादों का न्यायिक समाधान।
II. राय: कानूनी मामलों पर सलाहकारी राय देना।
III. स्वतंत्रता: निर्णयों में निष्पक्षता और स्वतंत्रता।
IV. स्थापना: 1922 में स्थापित, हेग में स्थित।
V. प्रभाव: अंतर्राष्ट्रीय कानून के विकास में योगदान।
प्रश्न 13: राष्ट्र संघ ने मानवाधिकारों के लिए क्या किया?
उत्तर:
I. श्रम मानक: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना।
II. मानव प्रबंधन: मानव तस्करी और दास प्रथा के खिलाफ कार्य।
III. स्वास्थ्य: स्वास्थ्य संगठन के माध्यम से मानव स्वास्थ्य का ध्यान।
IV. शरणार्थी: शरणार्थियों की सहायता।
V. जागरूकता: मानवाधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
प्रश्न 14: राष्ट्र संघ ने निरस्त्रीकरण के लिए क्या प्रयास किए?
उत्तर:
I. सम्मेलन: निरस्त्रीकरण सम्मेलनों का आयोजन।
II. समझौते: हथियारों के नियंत्रण पर समझौते।
III. प्रस्ताव: हथियारों की सीमा पर प्रस्ताव।
IV. निगरानी: हथियार उत्पादन की निगरानी की कोशिश।
V. विफलता: वास्तविक निरस्त्रीकरण में सफलता नहीं मिली।
प्रश्न 15: राष्ट्र संघ के पतन के कारण क्या थे?
उत्तर:
I. विश्व युद्ध की विफलता: द्वितीय विश्व युद्ध को रोकने में असफलता।
II. प्रवर्तन की कमी: निर्णयों को लागू करने की शक्ति का अभाव।
III. आर्थिक मंदी: विश्व आर्थिक मंदी के प्रभाव।
IV. राजनीतिक विरोध: सदस्य देशों का विरोध और अलगाव।
V. संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका की अनुपस्थिति और समर्थन की कमी।
इकाई 5: रूस में साम्यवाद का उदय
प्रश्न 1: बोल्शेविक क्रांति का अर्थ क्या है?
उत्तर:
I. परिभाषा: 1917 में रूस में हुई क्रांति जिसने साम्यवादी शासन लाया।
II. उद्देश्य: राजशाही को उखाड़ फेंकना और श्रमिक शासन स्थापित करना।
III. संदर्भ: अक्टूबर क्रांति के रूप में भी जाना जाता है।
IV. प्रभाव: रूस में सामाजिक और राजनीतिक संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन।
V. वैश्विक प्रभाव: विश्व समाजवादी आंदोलन के लिए प्रेरणा स्रोत।
प्रश्न 2: बोल्शेविक क्रांति का नेता कौन था?
उत्तर:
I. नाम: व्लादिमीर लेनिन।
II. भूमिका: बोल्शेविक पार्टी के अध्यक्ष और क्रांति के मुख्य नेता।
III. विचारधारा: मार्क्सवाद-लेनिनवाद।
IV. नेतृत्व: क्रांति के दौरान कार्य योजना और संगठन का नेतृत्व।
V. प्रभाव: सोवियत संघ की नींव रखने वाला।
प्रश्न 3: बोल्शेविक क्रांति में लेनिन की भूमिका क्या थी?
उत्तर:
I. विचारधारा: मार्क्सवादी सिद्धांतों को रूसी संदर्भ में अनुकूलित किया।
II. नेतृत्व: क्रांति की योजना और कार्यान्वयन का नेतृत्व।
III. संगठन: बोल्शेविक पार्टी का संगठन और प्रचार।
IV. रणनीति: ‘एप्रिल थीसिस’ और अन्य महत्वपूर्ण रणनीतियों का निर्माता।
V. शासन: क्रांति के बाद सरकार की स्थापना और नीतियों का निर्धारण।
प्रश्न 4: क्रांति का विस्फोट कैसे हुआ?
उत्तर:
I. अक्टूबर 1917: विंटर पैलेस पर बोल्शेविकों का कब्जा।
II. फरवरी क्रांति: पहले फरवरी क्रांति ने राजशाही को कमजोर किया।
III. युद्ध की थकान: प्रथम विश्व युद्ध की थकान और असंतोष।
IV. सैनिकों का विद्रोह: सैन्य विद्रोह और पीट्रोग्रेड सोवियत की भूमिका।
V. आम जनता का समर्थन: श्रमिकों और किसानों का समर्थन।
प्रश्न 5: बोल्शेविक क्रांति के मुख्य कारण क्या थे?
उत्तर:
I. राजनीतिक कारण: राजशाही का दमन और कमजोर नेतृत्व।
II. सामाजिक कारण: वर्ग संघर्ष, श्रमिकों और किसानों की असंतुष्टि।
III. आर्थिक कारण: युद्ध के कारण आर्थिक संकट और भुखमरी।
IV. वैचारिक प्रभाव: मार्क्सवाद का प्रसार और जनता में जागरूकता।
V. युद्ध की हानि: प्रथम विश्व युद्ध का लंबा समय और हानि।
प्रश्न 6: बोल्शेविक सरकार का कार्यक्रम क्या था?
उत्तर:
I. शांति: ब्रेस्ट-लिटोव्स्क संधि के माध्यम से युद्ध को समाप्त करना।
II. भूमि सुधार: कृषि भूमि का पुनर्वितरण।
III. उद्योगों का राष्ट्रीयकरण: उद्योगों को सरकारी नियंत्रण में लेना।
IV. श्रमिकों के अधिकार: श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा।
V. शिक्षा और स्वास्थ्य: शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार।
प्रश्न 7: बोल्शेविक सरकार के समक्ष क्या चुनौतियाँ थीं?
उत्तर:
I. गृह युद्ध: रेड्स बनाम व्हाइट्स का गृह युद्ध।
II. आर्थिक संकट: वार कम्युनिज्म और आर्थिक विध्वंस।
III. अंतर्राष्ट्रीय विरोध: विदेशी हस्तक्षेप।
IV. भुखमरी: व्यापक भुखमरी और आपूर्ति संकट।
V. राजनीतिक विरोध: विभिन्न राजनीतिक दलों का विरोध।
प्रश्न 8: बोल्शेविक क्रांति का प्रभाव क्या हुआ?
उत्तर:
I. साम्यवाद का उदय: रूस में पहला साम्यवादी राज्य।
II. वैश्विक प्रेरणा: विश्व के कई देशों में साम्यवादी आंदोलन।
III. अंतर्राष्ट्रीय संबंध: नई अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था।
IV. सामाजिक परिवर्तन: सामाजिक समानता के प्रयास।
V. शीत युद्ध की नींव: पूर्व और पश्चिम के बीच तनाव की शुरुआत।
प्रश्न 9: बोल्शेविक सरकार की शांति पहल क्या थी?
उत्तर:
I. ब्रेस्ट-लिटोव्स्क संधि: जर्मनी के साथ शांति संधि, 1918।
II. युद्ध की समाप्ति: प्रथम विश्व युद्ध से रूस की वापसी।
III. नई शांति नीति: शांति के सिद्धांतों को बढ़ावा देना।
IV. प्रचार: शांति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का प्रचार।
V. विरोध: कुछ शर्तों के कारण विरोध का सामना।
प्रश्न 10: बोल्शेविकों द्वारा पड़ोसी देशों में विशेषाधिकार का त्याग किस प्रकार से हुआ?
उत्तर:
I. साम्राज्यवाद का विरोध: उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ।
II. अनुबंधों का अस्वीकार: पूर्व रूसी साम्राज्य के अनुचित अनुबंधों का त्याग।
III. स्वायत्तता का समर्थन: पड़ोसी देशों की स्वायत्तता को समर्थन।
IV. समानता: राष्ट्रों के बीच समानता की नीति।
V. प्रभाव: क्षेत्रीय राजनीति में नई गतिशीलता।
प्रश्न 11: पूर्व में समाजवादी विचारों का प्रसार कैसे हुआ?
उत्तर:
I. कम्युनिस्ट इंटरनेशनल: कॉमिन्टर्न के माध्यम से वैश्विक प्रसार।
II. प्रचार: समाजवादी विचारधारा का व्यापक प्रचार और शिक्षा
III. राजनीतिक आंदोलन: एशियाई देशों में स्वतंत्रता और समाजवाद के आंदोलन।
IV. साहित्य: मार्क्सवादी लेखन का अनुवाद और प्रकाशन।
V. क्रांतिकारी उदाहरण: रूस की क्रांति का उदाहरण के रूप में उपयोग।
प्रश्न 12: पूर्व में राष्ट्रवादी और समाजवादी शक्तियों की एकता कैसे हुई?
उत्तर:
I. साझा लक्ष्य: उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष।
II. राजनीतिक सहयोग: राष्ट्रवादी और समाजवादी नेताओं का सहयोग।
III. बौद्धिक आदान-प्रदान: विचारों का आदान-प्रदान।
IV. संगठन: संयुक्त संगठनों और आंदोलनों का गठन।
V. प्रेरणा: रूसी क्रांति से प्रेरणा लेना।
प्रश्न 13: कम्युनिस्ट इंटरनेशनल क्या था?
उत्तर:
I. स्थापना: 1919 में मास्को में स्थापित।
II. उद्देश्य: समाजवादी क्रांति को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देना।
III. सदस्यता: विभिन्न देशों की कम्युनिस्ट पार्टियां।
IV. गतिविधियाँ: क्रांतिकारी गतिविधियों का समर्थन और संचालन।
V. प्रभाव: वैश्विक साम्यवादी आंदोलनों पर प्रभाव।
प्रश्न 14: बोल्शेविक क्रांति के बाद रूस और पश्चिम के संबंधों में क्या बदलाव आया?
उत्तर:
I. शीत युद्ध की नींव: पूंजीवाद और साम्यवाद के बीच तनाव।
II. आर्थिक नाकाबंदी: पश्चिमी देशों द्वारा आर्थिक नाकाबंदी।
III. राजनीतिक अलगाव: सोवियत रूस का राजनीतिक अलगाव।
IV. वैचारिक युद्ध: वैचारिक प्रभाव और प्रतिद्वंद्विता।
V. गठबंधन: नए राजनीतिक गठबंधनों का उदय।
प्रश्न 15: बोल्शेविक क्रांति ने उपनिवेश-विरोधी संघर्षों को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर:
I. प्रेरणा: उपनिवेशी देशों में स्वतंत्रता संघर्ष की प्रेरणा।
II. समर्थन: सोवियत समर्थन और सहायता।
III. विचारधारा: समाजवादी विचारधारा का प्रसार।
IV. एकता: विभिन्न उपनिवेश-विरोधी आंदोलनों की एकता।
V. रणनीति: रणनीतियों का आदान-प्रदान और सीखना।
इकाई 6: अधिनायकतंत्र का उदय: मुसोलिनी और हिटलर
प्रश्न 1: अधिनायकतंत्र का अर्थ एवं परिभाषा क्या है?
उत्तर:
I. अर्थ: एक ऐसी शासन प्रणाली जहां एक व्यक्ति की असीमित शक्ति हो।
II. परिभाषा: अधिनायकतंत्र को एक ऐसी सरकार के रूप में परिभाषित किया जाता है जहां एक व्यक्ति या समूह नियंत्रण रखता है और नागरिकों के अधिकारों की अवहेलना करता है।
III. स्वरूप: शक्ति का केंद्रीकरण, नियंत्रित मीडिया, और विरोध की कमी।
IV. ऐतिहासिक उदाहरण: मुसोलिनी और हिटलर जैसे नेता।
V. वर्तमान संदर्भ: आधुनिक उदाहरण और अधिनायकतंत्र का विश्लेषण।
प्रश्न 2: अधिनायक तंत्र की विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
I. एकाधिकार शक्ति: शासक की असीमित शक्ति।
II. राजनीतिक स्वतंत्रता का अभाव: विरोध को दबाना।
III. सेना का महत्व: सैन्य शक्ति और नियंत्रण।
IV. प्रचार: व्यापक प्रचार और मीडिया नियंत्रण।
V. व्यक्तित्व की पूजा: शासक की व्यक्तित्व पूजा।
प्रश्न 3: अधिनायक तंत्र के लक्षण क्या हैं?
उत्तर:
I. निरंकुश नियंत्रण: शासक का अपार नियंत्रण।
II. विरोध की दमन: विरोधी आवाजों का दमन।
III. मीडिया सेंसरशिप: जनमत को प्रभावित करने के लिए मीडिया पर नियंत्रण।
IV. राजनीतिक अधिकारों का हनन: नागरिक स्वतंत्रताओं का उल्लंघन।
V. संवैधानिक सुधार: संविधान में शक्ति को बढ़ाने वाले बदलाव।
प्रश्न 4: अधिनायक तंत्र के प्रकार कौन से हैं?
उत्तर:
I. सैन्य अधिनायकतंत्र: सेना द्वारा सत्ता पर कब्जा।
II. राजनीतिक अधिनायकतंत्र: एक पार्टी या नेता का पूर्ण नियंत्रण।
III. आर्थिक अधिनायकतंत्र: आर्थिक शक्ति के आधार पर शासन।
IV. धार्मिक अधिनायकतंत्र: धार्मिक नेतृत्व द्वारा शासन।
V. फासीवादी अधिनायकतंत्र: राष्ट्रवाद और नियंत्रण पर आधारित।
प्रश्न 5: अधिनायक तंत्र के गुण क्या हैं?
उत्तर:
I. दक्ष निर्णय: त्वरित और प्रभावी निर्णय लेना।
II. राष्ट्रीय एकता: एक विचारधारा के चारों ओर एकता।
III. आपातकालीन प्रबंधन: आपात स्थितियों में प्रभावी प्रबंधन।
IV. विकास की गति: कुछ क्षेत्रों में विकास की तेज गति।
V. व्यवस्था: सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था की संभावना।
प्रश्न 6: अधिनायकतंत्र के दोष क्या हैं?
उत्तर:
I. मानवाधिकारों का हनन: नागरिक स्वतंत्रताओं का उल्लंघन।
II. भ्रष्टाचार: पारदर्शिता की कमी से भ्रष्टाचार।
III. विचारों की स्वतंत्रता का अभाव: सृजनात्मकता और नवीनता का दमन।
IV. दमन: विरोध और अभिव्यक्ति का दमन।
V. अस्थिरता: दीर्घकालिक में राजनीतिक अस्थिरता।
प्रश्न 7: फासिस्ट नेता मुसोलिनी कौन थे?
उत्तर:
I. नाम: बेनिटो मुसोलिनी।
II. विचारधारा: फासीवाद का संस्थापक।
III. इटली: इटली में 1922 से 1943 तक शासन।
IV. नेतृत्व: फासीवादी पार्टी का नेतृत्व और मार्च ऑन रोम।
V. प्रभाव: यूरोप में अधिनायकतंत्र का प्रेरणा स्रोत।
प्रश्न 8: फासीवाद का अर्थ क्या है?
उत्तर:
I. परिभाषा: राष्ट्रवाद, प्राधिकारवाद, और सामाजिक डार्विनवाद पर आधारित राजनीतिक विचारधारा।
II. लक्षण: राज्य की सर्वोच्चता, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभाव।
III. विचारधारा: समूह की पहचान से व्यक्तिगत पहचान का महत्व।
IV. संगठन: एक पार्टी का प्रभुत्व और नियंत्रण।
V. प्रचार: राष्ट्रीय गौरव और युद्ध का प्रचार।
प्रश्न 9: फासीवाद के उदय की पृष्ठभूमि क्या थी?
उत्तर:
I. प्रथम विश्व युद्ध: इटली की हार और असंतोष।
II. आर्थिक संकट: मुद्रा स्थिरता और बेरोजगारी की समस्याएं।
III. राजनीतिक अस्थिरता: सरकारी अस्थिरता और विभाजन।
IV. सामाजिक टकराव: वर्ग संघर्ष और राष्ट्रवाद का उदय।
V. मुसोलिनी का नेतृत्व: मुसोलिनी का करिश्माई नेतृत्व और प्रचार।
प्रश्न 10: फासिस्ट कौन थे?
उत्तर:
I. परिभाषा: फासीवादी विचारधारा के अनुयायी।
II. सदस्यता: मुसोलिनी की फासीवादी पार्टी के सदस्य।
III. विचारधारा: राष्ट्रवाद, प्राधिकारवाद, और एंटी-सोशलिज्म।
IV. कार्य: सामाजिक व्यवस्था को मजबूत करने के लिए हिंसक कार्य।
V. संगठन: सैन्य-शैली के संगठन और युवा प्रशिक्षण।
प्रश्न 11: फासीवाद के सिद्धांत क्या थे?
उत्तर:
I. राज्य की सर्वोच्चता: व्यक्ति के हितों से ऊपर राज्य का हित।
II. राष्ट्रवाद: जातीय और राष्ट्रीय गौरव का समर्थन।
III. प्राधिकारवाद: प्राधिकार का सम्मान और अनुसरण।
IV. एंटी-लिबरलिज्म: व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं का विरोध।
V. सैन्यवाद: सैन्य शक्ति और युद्ध की प्रशंसा।
प्रश्न 12: मुसोलिनी की गृह नीति क्या थी?
उत्तर:
I. कॉर्पोरेटिज्म: श्रम और प्रबंधन को एक साथ जोड़ना।
II. भूमि सुधार: कृषि क्षेत्र में सुधार।
III. शिक्षा: फासीवादी शिक्षा और युवा का प्रशिक्षण।
IV. प्रचार: मीडिया और सार्वजनिक प्रचार का व्यापक उपयोग।
V. सामाजिक नियंत्रण: विरोध और असंतोष का दमन।
प्रश्न 13: मुसोलिनी की विदेश नीति क्या थी?
उत्तर:
I. राष्ट्रीय पुनरुत्थान: इटली की राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाना।
II. साम्राज्यवाद: अफ्रीका में उपनिवेशों का विस्तार।
III. एथियोपिया आक्रमण: 1935 में एथियोपिया पर हमला।
IV. धुरी राष्ट्र: जर्मनी के साथ साझेदारी और धुरी शक्ति बनना।
V. युद्ध की तैयारी: द्वितीय विश्व युद्ध के लिए सैन्य तैयारी।
प्रश्न 14: मुसोलिनी का फासीवाद क्या था?
उत्तर:
I. विचारधारा: राष्ट्रवाद, प्राधिकारवाद, और समूह की पहचान।
II. शासन: एक पार्टी का शासन और विरोध का दमन।
III. सामाजिक नियंत्रण: समाज का पुनर्गठन और नियंत्रण।
IV. सैन्य शक्ति: सैन्य शक्ति का उपयोग और बढ़ावा।
V. प्रचार: व्यापक प्रचार और राष्ट्रीय गौरव का प्रचार।
प्रश्न 15: फासीवाद की आलोचना क्या है?
उत्तर:
I. मानवाधिकार: व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अधिकारों का हनन।
II. अर्थव्यवस्था: केंद्रीय नियंत्रण की अक्षमता।
III. राजनीतिक दमन: विरोधी विचारों का दमन।
IV. युद्ध की प्रवृत्ति: युद्ध और आक्रामकता को बढ़ावा।
V. सामाजिक समता का अभाव: सामाजिक विभाजन और वर्ग संघर्ष।
इकाई 7: वैश्विक मामलों में संयुक्त राज्य अमेरिका
प्रश्न 1: 1929-30 की आर्थिक मंदी के कारण क्या थे?
उत्तर:
I. औद्योगिक उत्पादन में असंतुलन: उत्पादन क्षमता की तुलना में उपभोग में कमी।
II. कृषि क्षेत्र की समस्याएं: कृषि उत्पादन की अतिवृद्धि और कीमतों में गिरावट।
III. बैंकिंग प्रणाली की कमजोरियाँ: बैंकों का दिवालिया होना और विश्वास की कमी।
IV. शेयर बाजार का दुर्घटनाग्रस्त होना: 1929 का शेयर बाजार दुर्घटना (The Great Crash)।
V. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की गिरावट: वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट से अमेरिकी निर्यात प्रभावित।
प्रश्न 2: 1929-30 की आर्थिक मंदी का प्रसार कैसे हुआ?
उत्तर:
I. बैंक दिवालियापन: बैंकों का एक के बाद एक दिवालिया होना।
II. उपभोक्ता की क्रय शक्ति में कमी: लोगों की आय में कमी से खपत में गिरावट।
III. अमेरिकी उद्योगों का पतन: उद्योगों का बंद होना और बेरोजगारी।
IV. अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव: स्मूट-हॉले टैरिफ अधिनियम का वैश्विक प्रभाव।
V. वैश्विक व्यापार में कमी: विश्व के अन्य देशों में भी मंदी फैलना।
प्रश्न 3: 1929-30 की आर्थिक मंदी के परिणाम क्या थे?
उत्तर:
I. बेरोजगारी का उच्च स्तर: कई लोगों के बेरोजगार होने से सामाजिक और आर्थिक समस्याएं।
II. वित्तीय संकट: बैंक दिवालियापन, निवेश की हानि और विश्वास की कमी।
III. गरीबी का प्रसार: जीवन स्तर में गिरावट, आश्रय और भोजन की कमी।
IV. सामाजिक अशांति: व्यापक बेरोजगारी और आर्थिक तनाव से सामाजिक विद्रोह और हिंसा।
V. राजनीतिक परिवर्तन: मंदी से निपटने के लिए नई नीतियों और नेतृत्व की आवश्यकता।
प्रश्न 4: आर्थिक मंदी से निपटने के लिए कौन से प्रयास किए गए?
उत्तर:
I. हूवर के प्रयास: राष्ट्रपति हूवर के द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों का प्रारंभ जैसे RFC (Reconstruction Finance Corporation)।
II. सार्वजनिक कार्य: सार्वजनिक कार्य कार्यक्रमों को बढ़ावा देना जिससे रोजगार के अवसर पैदा हों।
III. बैंकिंग सुधार: बैंकों को पुनर्जीवित करने के लिए कदम जैसे बैंकों की मदद करना।
IV. कृषि सहायता: कृषि क्षेत्र को सहायता प्रदान करने के लिए कदम, जैसे अनाज की कीमतों को स्थिर करना।
V. व्यापार नीति: व्यापार नियमों को संशोधित करना और व्यापार को पुनर्जीवित करने का प्रयास।
प्रश्न 5: रूजवेल्ट और न्यू डील के बीच क्या संबंध है?
उत्तर:
I. रूजवेल्ट की विचारधारा: फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने एक सक्रिय सरकार की विचारधारा को बढ़ावा दिया।
II. न्यू डील का जन्म: रूजवेल्ट ने आर्थिक मंदी से निपटने के लिए न्यू डील नीतियों को लागू किया।
III. “हंड्रेड डेज़”: उनके कार्यकाल के पहले 100 दिनों में अनेक न्यू डील कानून पारित हुए।
IV. जनमत का समर्थन: न्यू डील ने रूजवेल्ट को जनता के बीच लोकप्रिय बनाया।
V. राजनीतिक विरोध: हालांकि, कुछ लोगों ने न्यू डील को बहुत अधिक सरकारी हस्तक्षेप के रूप में देखा।
प्रश्न 6: न्यू डील नीति की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर:
I. रोजगार सृजन: विभिन्न कार्यक्रम जैसे WPA (Works Progress Administration)।
II. बैंकिंग सुधार: बैंकिंग कानून जैसे ग्लास-स्टीगल अधिनियम।
III. कृषि सहायता: AAA (Agricultural Adjustment Act) जिसने कृषि क्षेत्र को सहायता दी।
IV. सामाजिक सुरक्षा: सामाजिक सुरक्षा अधिनियम जिसने पेंशन और बेरोजगारी बीमा शुरू किया।
V. औद्योगिक विनियमन: NRA (National Recovery Administration) के माध्यम से उद्योगों की विनियमन।
प्रश्न 7: न्यू डील का कार्यान्वयन किस प्रकार से हुआ?
उत्तर:
I. तत्काल कार्रवाई: रूजवेल्ट ने “हंड्रेड डेज़” में कई कानून पारित किए।
II. संघीय एजेंसियाँ: नई एजेंसियों जैसे CCC (Civilian Conservation Corps) का गठन।
III. कार्यक्रमों की विस्तार: WPA, PWA (Public Works Administration) जैसे कार्यक्रमों का विस्तार।
IV. कानूनी और नीतिगत परिवर्तन: बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में सुधार के लिए कानून।
V. जनता की भागीदारी: जनता को कार्यक्रमों में शामिल करने के उपाय।
प्रश्न 8: न्यू डील नीति का क्रियान्वयन कितना सफल रहा?
उत्तर:
I. रोजगार में वृद्धि: न्यू डील ने बहुत से लोगों को काम दिया।
II. बैंकिंग स्थिरता: बैंकों को पुनर्स्थापित करने में मदद मिली।
III. सामाजिक सुधार: सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों से सामाजिक सुरक्षा बढ़ी।
IV. विवादास्पद पक्ष: कुछ कार्यक्रमों की कार्यक्षमता पर सवाल उठे।
V. दीर्घकालिक प्रभाव: आर्थिक सुधार की दिशा में कुछ स्थायी परिवर्तन आए।
प्रश्न 9: न्यू डील के कार्यान्वयन में क्या चुनौतियाँ आईं?
उत्तर:
I. राजनीतिक विरोध: कांग्रेस और सर्वोच्च न्यायालय से विरोध।
II. वित्तीय मुद्दे: नए कार्यक्रमों के लिए धन जुटाने की चुनौती।
III. कार्यक्रम की दक्षता: कुछ कार्यक्रमों की दक्षता पर सवाल।
IV. संघीय और राज्य सरकार की समन्वय: विभिन्न स्तरों के बीच समन्वय की समस्या।
V. सामाजिक विरोध: कुछ समुदायों में नई नीतियों के प्रति विरोध।
प्रश्न 10: क्या न्यू डील ने स्थायी आर्थिक सुधार लाया?
उत्तर:
I. तत्काल राहत: बेरोजगारी और गरीबी को कम करने में सहायता।
II. संस्थागत परिवर्तन: सामाजिक सुरक्षा और बैंकिंग नियमों की स्थापना।
III. आर्थिक वृद्धि: कुछ हद तक आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित किया।
IV. दीर्घकालिक चुनौतियाँ: द्वितीय विश्व युद्ध तक पूर्ण आर्थिक सुधार नहीं आया।
V. मिश्रित सफलता: न्यू डील ने कुछ स्थायी सुधार लाए लेकिन सभी समस्याओं का समाधान नहीं किया।
प्रश्न 11: न्यू डील के प्रभाव को कैसे महसूस किया जा सकता है?
उत्तर:
I. बुनियादी ढांचे का विकास: सड़कें, पुल, डैम आदि का निर्माण।
II. सामाजिक सुरक्षा की स्थापना: पेंशन, बेरोजगारी बीमा जैसे कार्यक्रम।
III. श्रम अधिकार: श्रमिकों के अधिकारों में सुधार।
IV. पर्यावरण संरक्षण: CCC जैसे कार्यक्रमों से पर्यावरणीय सुधार।
V. जनमत: आम लोगों में सरकार के प्रति विश्वास की बहाली।
प्रश्न 12: न्यू डील की विभिन्न आलोचनाएं क्या थीं?
उत्तर:
I. सरकारी हस्तक्षेप: बाजार के नियंत्रण में सरकार की भूमिका का विरोध।
II. व्यय का बोझ: सरकारी ऋण और खर्च की आलोचना।
III. न्यायपालिका का विरोध: सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ न्यू डील कानूनों को असंवैधानिक घोषित किया।
IV. कार्यक्रमों की प्रभावशीलता: कुछ कार्यक्रमों को अप्रभावी या अक्षम माना गया।
V. समता का मुद्दा: कुछ समुदायों में भेदभाव की शिकायतें।
प्रश्न 13: न्यू डील की प्रमुख एजेंसियाँ कौन सी थीं?
उत्तर:
I. CCC (Civilian Conservation Corps): युवाओं को रोजगार देना और पर्यावरणीय कार्य।
II. WPA (Works Progress Administration): बेरोजगारों के लिए काम के अवसर।
III. TVA (Tennessee Valley Authority): बिजली उत्पादन और आर्थिक विकास।
IV. NRA (National Recovery Administration): उद्योगों का विनियमन।
V. SSA (Social Security Administration): सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम।
प्रश्न 14: न्यू डील के बाद के आर्थिक प्रभाव क्या रहे?
उत्तर:
I. आर्थिक सुधार: बेरोजगारी कम होना, लेकिन मंदी पूरी तरह से समाप्त नहीं।
II. सरकार की भूमिका: सरकार की आर्थिक नियंत्रण में वृद्धि।
III. वित्तीय सुरक्षा: बैंकिंग और वित्तीय सुधारों से स्थिरता।
IV. सामाजिक कल्याण: सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों का दीर्घकालिक प्रभाव।
V. द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव: युद्ध की तैयारी ने आर्थिक सुधार को गति दी।
प्रश्न 15: न्यू डील का मूल्यांकन कैसे किया जाता है?
उत्तर:
I. सकारात्मक प्रभाव: जन कल्याण कार्यक्रमों से बेरोजगारी में कमी।
II. आर्थिक स्थिरता: बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली की पुनर्स्थापना।
III. सामाजिक सुरक्षा: सामाजिक सुरक्षा अधिनियम से सामाजिक सुरक्षा प्रदान।
IV. नकारात्मक प्रभाव: कुछ कार्यक्रमों में दक्षता की कमी।
V. विवादास्पद मुद्दे: सरकारी नियंत्रण की वृद्धि और नवाचार पर प्रभाव।
इकाई 8: द्वितीय विश्व युद्ध और संयुक्त राष्ट्र संघ
प्रश्न 1: द्वितीय विश्व युद्ध का परिचय क्या है?
उत्तर:
I. समय अवधि: 1939 से 1945 तक चला युद्ध।
II. वैश्विक संघर्ष: इसे अब तक का सबसे बड़ा और व्यापक युद्ध माना जाता है।
III. पक्ष: मित्र राष्ट्र और धुरी राष्ट्र के बीच संघर्ष।
IV. प्रभाव: वैश्विक राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज पर गहरा प्रभाव।
V. युद्ध की शुरुआत: जर्मनी के पोलैंड पर हमले से युद्ध की शुरुआत।
प्रश्न 2: द्वितीय विश्व युद्ध के महत्वपूर्ण बिंदु क्या हैं?
उत्तर:
I. होलोकॉस्ट: यहूदियों का नरसंहार।
II. परमाणु बम: हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमले।
III. पीर्ल हार्बर: जापान का अमेरिका पर आक्रमण।
IV. डी-डे: नॉर्मंडी आक्रमण।
V. विश्व व्यवस्था का परिवर्तन: युद्ध के बाद की नई वैश्विक व्यवस्था।
प्रश्न 3: द्वितीय विश्व युद्ध के चरण कौन से थे?
उत्तर:
I. यूरोपीय चरण: 1939 से 1941, जर्मनी का पूर्वी यूरोप में विस्तार।
II. वैश्विक चरण: 1941 के बाद, जब जापान ने पीर्ल हार्बर पर हमला किया।
III. पश्चिमी मोर्चा: डी-डे के बाद पश्चिम से जर्मनी के खिलाफ मोर्चा।
IV. पूर्वी मोर्चा: सोवियत संघ के खिलाफ जर्मन अभियान, ऑपरेशन बारबारोसा।
V. युद्ध का अंत: 1944-45 में जर्मनी और जापान का आत्मसमर्पण।
प्रश्न 4: द्वितीय विश्व युद्ध के कारण क्या थे?
उत्तर:
I. वर्साय की संधि: जर्मनी के प्रति कठोर शर्तें।
II. आर्थिक समस्याएं: विश्व मंदी और मुद्रा संकट।
III. राष्ट्रवाद: जर्मनी और इटली में राष्ट्रवाद का उदय।
IV. शांति की असफलता: लीग ऑफ नेशंस की असफलता।
V. शक्ति संतुलन: यूरोप में शक्ति संतुलन का बिगड़ना।
प्रश्न 5: द्वितीय विश्व युद्ध की प्रमुख घटनाएँ क्या थीं?
उत्तर:
I. पोलैंड पर हमला: युद्ध की शुरुआत, 1939।
II. पीर्ल हार्बर: जापान का अमेरिका पर हमला, 1941।
III. डी-डे: नॉर्मंडी में मित्र राष्ट्र का आक्रमण, 1944।
IV. होलोकॉस्ट: यहूदियों का नरसंहार।
V. हिरोशिमा और नागासाकी: परमाणु बम गिराए जाने।
प्रश्न 6: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत की स्थिति कैसी थी?
उत्तर:
I. ब्रिटिश शासन: भारत अभी भी ब्रिटिश उपनिवेश था।
II. सैनिक भागीदारी: भारत ने मित्र राष्ट्रों को सैन्य समर्थन दिया।
III. आर्थिक प्रभाव: युद्ध ने भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया।
IV. राजनीतिक उठापटक: स्वतंत्रता आंदोलन की गतिविधियाँ जारी रहीं।
V. बंगाल का अकाल: युद्ध के दौरान बंगाल में भयानक अकाल।
प्रश्न 7: द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम क्या हुए?
उत्तर:
I. वैश्विक शक्ति का हस्तांतरण: यूरोप की शक्ति कम होना और अमेरिका, सोवियत संघ का उदय।
II. संयुक्त राष्ट्र की स्थापना: विश्व शांति के लिए नया संगठन।
III. नुकसान और मृत्यु: व्यापक मानवीय और संपत्ति का नुकसान।
IV. राजनीतिक परिवर्तन: नई सरकारें और राजनीतिक व्यवस्थाएं।
V. शीत युद्ध: पूर्व और पश्चिम के बीच तनाव की शुरुआत।
प्रश्न 8: संयुक्त राष्ट्र संघ का परिचय क्या है?
उत्तर:
I. स्थापना: 1945 में स्थापित, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद।
II. उद्देश्य: शांति और सुरक्षा, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।
III. सदस्यता: वर्तमान में 193 सदस्य देश।
IV. मुख्यालय: न्यूयॉर्क में है।
V. कार्यान्वयन: संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार कार्य करता है।
प्रश्न 9: संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देश कौन से हैं?
उत्तर:
I. वर्तमान सदस्य: 193 देश।
II. संस्थापक सदस्य: जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, सोवियत संघ, चीन, फ्रांस।
III. नए सदस्य: हाल में शामिल देश जैसे दक्षिण सूडान।
IV. निलंबन: कुछ देशों की सदस्यता निलंबित हुई है।
V. सुरक्षा परिषद: 5 स्थायी सदस्य और 10 चुने हुए सदस्य।
प्रश्न 10: संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य एवं सिद्धांत क्या हैं?
उत्तर:
I. शांति और सुरक्षा: अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखना।
II. सहयोग: आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, और मानवीय सहयोग।
III. मानवाधिकार: मानवाधिकारों की रक्षा और उन्नयन।
IV. कानून का शासन: अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार कार्य करना।
V. संप्रभुता का सम्मान: सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान।
प्रश्न 11: संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्माण की पृष्ठभूमि क्या थी?
उत्तर:
I. द्वितीय विश्व युद्ध: युद्ध के बाद शांति सुनिश्चित करने की आवश्यकता।
II. लीग ऑफ नेशंस की असफलता: पहले अंतर्राष्ट्रीय संगठन की कमियाँ।
III. याल्टा और सान फ्रांसिस्को सम्मेलन: नई संस्था की रूपरेखा तैयार करना।
IV. वैश्विक समर्थन: व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समर्थन से संयुक्त राष्ट्र की स्थापना।
V. चार्टर: 1945 में चार्टर की स्वीकृति।
प्रश्न 12: संयुक्त राष्ट्र संघ के अंग कौन से हैं?
उत्तर:
I. महासभा: सभी सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व।
II. सुरक्षा परिषद: शांति और सुरक्षा की जिम्मेदारी।
III. आर्थिक और सामाजिक परिषद: विकास और मानवाधिकार को बढ़ावा।
IV. ट्रस्टीशिप काउंसिल: उपनिवेशों के स्वतंत्र होने की देखरेख।
V. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय: विवादों का न्यायिक समाधान।
VI. सचिवालय: दैनिक कार्यों का प्रबंधन।
प्रश्न 13: संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्य क्या हैं?
उत्तर:
I. शांति रक्षा: शांति मिशनों का आयोजन।
II. मानवीय सहायता: आपदा और संकट की स्थिति में सहायता।
III. विकास कार्यक्रम: गरीबी उन्मूलन और विकास कार्य।
IV. मानवाधिकार: मानवाधिकार की निगरानी और प्रोत्साहन।
V. पर्यावरण संरक्षण: जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय मुद्दों का समाधान।
प्रश्न 14: संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व शांति के लिए कौन से कदम उठाए हैं?
उत्तर:
I. शांति रक्षा बल: विभिन्न देशों में शांति सेना भेजना।
II. संवाद और मध्यस्थता: संघर्ष के हल के लिए वार्ता और मध्यस्थता।
III. प्रतिबंध: शांति के खतरे को दूर करने के लिए प्रतिबंध लगाना।
IV. निरस्त्रीकरण: परमाणु और अन्य हथियारों के नियंत्रण के लिए प्रयास।
V. शिक्षा और जागरूकता: शांति संस्कृति को बढ़ावा देना।
प्रश्न 15: संयुक्त राष्ट्र संघ का महत्व क्या है?
उत्तर:
I. शांति और सुरक्षा: विश्व शांति को बनाए रखने के लिए प्रयास।
II. मानवाधिकार: मानवाधिकारों की रक्षा और प्रोत्साहन।
III. आर्थिक और सामाजिक सहयोग: वैश्विक समस्याओं के समाधान में सहयोग।
IV. अंतर्राष्ट्रीय कानून: अंतर्राष्ट्रीय कानून को मजबूत करना।
V. वैश्विक संवाद: देशों के बीच संवाद और सहयोग का मंच प्रदान करना।
BA 6th Semester History Important Question Answers
History of Modern World (1815 AD – 1945 AD) (आधुनिक विश्व का इतिहास)
Unit 1: Unification of Germany and Italy
1.1 Unification of Germany (जर्मनी का एकीकरण)
1.1.1 Germany Before Unification (एकीकरण से पूर्व जर्मनी)
1.1.2 Napoleon, Father of Modern Germany (आधुनिक जर्मनी का जन्मदाता नेपोलियन)
1.1.3 Congress of Vienna (वियना कांग्रेस (1815 ई.) और जर्मनी की राष्ट्रीय भावना)
1.1.4 Elements Hindering the Unification of Germany (जर्मनी के एकीकरण में बाधक तत्व)
1.1.5 Contribution of Auxiliary Elements in the Unification of Germany (जर्मनी के एकीकरण में सहायक तत्वों का योगदान)
1.1.6 Bismarck’s Biography and Policy of Blood and Iron (बिस्मार्क का जीवन परिचय और बिस्मार्क की रक्त और लौह की नीति)
1.1.6.1 Bismarck as Ambassador (बिस्मार्क राजदूत के रूप में)
1.1.6.2 Bismarck as Prime Minister of Prussia (बिस्मार्क प्रशा के प्रधानमंत्री के रूप में)
1.1.6.3 Bismarck’s Policy of ‘Blood and Iron’ (बिस्मार्क की ‘रक्त और लौह’ की नीति)
1.1.6.4 Objectives of Bismarck’s Policy (बिस्मार्क की नीति के उद्देश्य)
1.1.7 Stages of Unification of Germany (जर्मनी के एकीकरण के विभिन्न चरण)
1.1.7.1 Phase II – War with Austria (द्वितीय चरण- ऑस्ट्रिया से युद्ध)
1.1.7.2 Third Phase: France-Prussia War (1870 ई) and Treaty of Frankfort (फ्रांस-प्रशा युद्ध (1870 ई) एवं फ्रैंकफर्ट की संधि)
1.1.8 Declaration of the German Empire (जर्मन साम्राज्य की घोषणा)
1.2 Unification of Italy (इटली का एकीकरण)
1.2.1 Gradual Development of Italian Unification (इटली के एकीकरण का क्रमिक विकास)
1.2.2 Status of Italy Before Unification (एकीकरण से पूर्व इटली की स्थिति)
1.2.3 Auxiliaries of Integration (एकीकरण के सहायक तत्व)
1.2.4 Major Ideologies for Unification of Italy (इटली के एकीकरण के लिए प्रमुख विचारधाराएँ)
1.2.5 Impact of the Decision of Vienna Congress on Italy (इटली पर वियना काँग्रेस के निर्णयों का प्रभाव)
1.2.6 French Revolution and Napoleon’s Role in the Unification of Italy (इटली के एकीकरण में फ्रांसीसी क्रांति एवं नेपोलियन की भूमिका)
1.2.7 Italy After Vienna Settlement 1815 (वियना व्यवस्था (1815) के उपरांत इटली)
1.2.8 Obstacles in the way of Unification of Italy (इटली के एकीकरण के मार्ग में बाधाएँ)
Unit 2: First World War (प्रथम विश्व युद्ध)
2.1. First World War (प्रथम विश्व युद्ध)
2.1.1. Introduction (परिचय)
2.1.2. Important Points (महत्वपूर्ण बिन्दु)
2.1.3. Causes of First World War (प्रथम विश्वयुद्ध के कारण)
2.1.4. Description of the Events of the First World War (प्रथम विश्व युद्ध के समय की घटनाओं का विवरण)
2.1.5. Consequences of First World War (प्रथम विश्वयुद्ध के परिणाम)
2.1.5.1. Economic Consequences (आर्थिक परिणाम)
2.1.5.2. Social Consequences (सामाजिक परिणाम)
2.1.5.3. Political Consequences (राजनीतिक परिणाम)
2.1.6. World War and India (विश्वयुद्ध और भारत)
2.1.7. Effects of World War I (प्रथम विश्व युद्ध के प्रभाव)
2.1.8. End of First World War (प्रथम विश्व युद्ध का अन्त)
2.1.9. America’s Rise as World Power (अमेरिका का विश्व शक्ति के रूप में उदय)
Unit 3: Paris Peace Convention and Treaty of Versailles
3.1 Paris Peace Convention (पेरिस शांति सम्मेलन)
3.1.1 Introduction (परिचय)
3.1.2 Convention Venue Selection (सम्मेलन स्थल का चयन)
3.1.3 Convention Delegates (सम्मेलन के प्रतिनिधि)
3.1.3.1 American President Woodrow Wilson (अमेरिका का राष्ट्रपति वुडरो विल्सन)
3.1.3.2 British Prime Minister David Lloyd George (ब्रिटेन का प्रधानमंत्री डेविड लायड जार्ज)
3.1.3.3 France Prime Minister George Eugene Benjamin Clemenshu (फ्रांस का प्रधानमंत्री जार्ज यूजने बेंजामिन क्लेमांशु)
3.1.3.4 Vitario Emmanuel Orlando of Italy (इटली का विटारियो इमैनुअल ओरलैंडो)
3.1.4 Beginning of Convention (सम्मेलन की शुरुआत)
3.1.5 Formation of Councils (परिषदों का गठन)
3.1.6 Problems of the Paris Peace Convention (पेरिस शांति सम्मेलन की समस्याएँ)
3.1.7 Peace Treaties of Paris (पेरिस की शांति संधियाँ)
3.2 Treaty of Versailles (वर्साय की संधि)
3.2.1 Provisions of Versailles Treaty (वर्साय संधि के प्रावधान)
3.2.2 Importance of Treaty of Versailles (वर्साय की संधि का महत्व)
3.2.3 Evaluation of Versailles Treaty (वर्साय संधि का मूल्यांकन)
3.2.4 वर्साय संधि का औचित्य (Appropriateness of Versailles Treaty)
3.2.5 वर्साय की संधि की विफलता और द्वितीय विश्वयुद्ध (Defeat of Versailles Treaty and Second World War)
3.2.6 सेंट जर्मन की संधि, 10 सितम्बर 1919 ई. (Treaty of St. Germans, 10 September 1919 AD)
3.2.7 न्यूली की संधि, 27 नवम्बर 1919 ई. (Treaty of Neuilly, 27 November 1919 AD)
3.2.8 त्रियानों की संधि (Treaty of Crynas)
3.2.9 सेव्रेस की संधि, 10 अगस्त 1920 ई. (Treaty of Sevres, 10 August 1920 AD)
Unit 4: League of Nations- Organization, Achievements and Failure
4.1 राष्ट्र संघ (League of Nations)
4.1.1 राष्ट्र संघ का संगठन (Organization of League of Nations)
4.1.1.1 राष्ट्रसंघ का संविधान (Constitution of League of Nations)
4.1.1.2 राष्ट्रसंघ का उद्देश्य (Purpose of League of Nations)
4.1.1.3 राष्ट्रसंघ की सदस्यता (League of Nations Membership)
4.1.1.4 राष्ट्रसंघ के अंग (Organs of the League of Nations)
4.1.2 राष्ट्र संघ की उपलब्धियाँ (Achievements of League of Nations)
4.1.3 राष्ट्र संघ की विफलता (Failure of the League of Nations)
4.1.4 राष्ट्रसंघ का मूल्यांकन (Assessment of the League of Nations)
Unit 5: Rise of Communism in Russia (रूस में साम्यवाद का उदय)
5.1 बोल्शेविक क्रांति (Bolshevik Revolution)
5.1.1. बोल्शेविक क्रांति का अर्थ (Meaning of Bolshevik Revolution)
5.1.2. बोल्शेविक क्रांति का नेता कौन था? (Who Was the Leader of Bolshevik Revolution)
5.1.3. बोल्शेविक क्रांति में लेनिन की भूमिका (Role of Lenin in Bolshevik Revolution)
5.1.4. क्रांति का विस्फोट (Explosion of Revolution)
5.1.5. बोल्शेविक क्रांति के मुख्य कारण (Reasons of Bolshevik Revolution)
5.1.5.1. राजनीतिक कारण (Political Reasons)
5.1.5.2. सामाजिक कारण (Social Causes)
5.1.5.3. आर्थिक कारण (Economic Reason)
5.1.6. बोल्शेविक सरकार का कार्यक्रम (Program of the Bolshevik Government)
5.1.7. बोल्शेविक सरकार के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges Before Bolshevik Government)
5.1.8. Effects of Bolshevik Revolution (बोल्शेविक क्रांति का प्रभाव)
5.2. Bolshevik and the New System of International Relations (बोल्शेविक और अंतर्राष्ट्रीय संबंध की नवीन प्रणाली)
5.2.1. Peace Initiative of the Bolshevik Government (बोल्शेविक सरकार की शांति पहल)
5.2.2. Renunciation of Privileges by the Bolsheviks in Neighbouring Countries (बोल्शेविकों द्वारा पड़ोसी देशों में विशेषाधिकार का त्याग)
5.3. Bolsheviks and the Anti-Colonial Struggle (बोल्शेविक और उपनिवेश-विरोधी संघर्ष)
5.3.1. Spread of Socialist Ideas in the East (पूर्व में समाजवादी विचारों का प्रसार)
5.3.2. Unity of Nationalist and Socialist Forces in the East (पूर्व में राष्ट्रवादी और समाजवादी शक्तियों की एकता)
5.3.3. Communist International (कम्युनिस्ट इंटरनेशनल)
Unit 6: Rise of Dictatorship: Mussolini and Hitler
6.1. अधिनायकतंत्र (Dictatorship)
6.1.1. अधिनायकतंत्र का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definitions of Dictatorship)
6.1.2. अधिनायक तंत्र की विशेषताएँ (Characteristics of Dictatorship)
6.1.3. अधिनायक तंत्र के लक्षण (Symptoms of Dictatorship)
6.1.4. अधिनायक तंत्र के प्रकार (Types of Dictatorship)
6.1.5. अधिनायक तंत्र के गुण (Merits of Dictatorship)
6.1.6. अधिनायकतंत्र के दोष (Demerits of Dictatorship)
6.2. मुसोलिनी (Mussolini)
6.2.1. फासिस्ट नेता मुसोलिनी (Fascist leader Mussolini)
6.2.2. फासीवाद का अर्थ (Meaning of Fascism)
6.2.3. फासीवाद के उदय की पृष्ठभूमि (Background of the rise of Fascism)
6.2.4. फासिस्ट कौन थे (Who were Fascists)
6.2.5. फासीवाद के सिद्धांत (Principles of Fascism)
6.2.6. मुसोलिनी की गृह नीति (Mussolini’s Home Policy)
6.2.7. मुसोलिनी की विदेश नीति (Foreign Policy of Mussolini)
6.2.8. मुसोलिनी का फासीवाद (Fascism of Mussolini)
6.2.9. फासीवाद की आलोचना (Criticism of Fascism)
6.3. हिटलर (Hitler)
6.3.1. हिटलर का परिचय (Introduction of Hitler)
6.3.2. नाजीवाद (Nazism)
Unit 7: United States in World Affairs (वैश्विक मामलों में संयुक्त राज्य अमेरिका)
7.1. Economic Depression (आर्थिक मंदी)
7.1.1. Causes of the Economic Recession of 1929-30 (1920-30 की आर्थिक मंदी के कारण)
7.1.2. Spread of Economic Depression of 1929-30 (1929-30 की आर्थिक मंदी का प्रसार)
7.1.3. Consequences of Economic Recession (आर्थिक मंदी के परिणाम)
7.1.4. Effort to deal with Economic Recession (आर्थिक मंदी से निपटने के प्रयास)
7.2. New Deal Policy of F.D. Roosevelt (एफ.डी. रूजवेल्ट की नई डील नीति)
7.2.1. Roosevelt and New Deal (रूजवेल्ट और न्यू डील)
7.2.2. Special features of New Deal Policy (न्यू डील नीति की प्रमुख विशेषताएँ)
7.2.3. Implementation of New Deal (न्यू डील का कार्यान्वयन)
7.2.4. An Evaluation of the New Deal (न्यू-डील का मूल्यांकन)
Unit 8: Second World War and U.N.O.
8.1 द्वितीय विश्व युद्ध (Second World War)
8.1.1 परिचय (Introduction)
8.1.2 महत्वपूर्ण बिंदु (Important Points)
8.1.3 द्वितीय विश्व युद्ध के चरण (Phases of Second World War)
8.1.4 द्वितीय विश्व युद्ध के कारण (Causes of Second World War)
8.1.5 द्वितीय विश्व युद्ध की प्रमुख घटनाएँ (Main Events of Second World War)
8.1.6 द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भारत की स्थिति (India’s Position during Second World War)
8.1.7 द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम (Consequences of Second World War)
8.2 संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations Organisation)
8.2.1 परिचय (Introduction)
8.2.2 सदस्य देश (Member Countries)
8.2.3 संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य एवं सिद्धांत (Aims and Principles of the United Nations Organisation)
8.2.4 संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्माण की पृष्ठभूमि (Background of the Formation of U.N.O.)
8.2.5 संयुक्त राष्ट्र संघ के अंग (Parts of United Nations Organisations)
8.2.6 संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्य (Functions of the U.N.O.)
8.2.7 संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व शांति के लिए उठाए गए कदम (Steps Taken by U.N.O. for World Peace)
8.2.8 संयुक्त राष्ट्र संघ की उपलब्धियाँ (Achievements of U.N.O.)
8.2.9 संयुक्त राष्ट्र संघ की असफलताएँ (Failures of U.N.O.)
8.2.10 मूल्यांकन (Evaluation of U.N.O.)
8.2.11 संयुक्त राष्ट्र संघ का महत्व (Importance of the United Nations)
thanks!
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