BA 6th Semester History Question Answers
BA 6th Semester History Question Answers: इस पेज पर बीए 6th सेमेस्टर के छात्रों के लिए हिस्ट्री (इतिहास) का Question Answer, Short Format और MCQs Format में दिए गये हैं |
6th सेमेस्टर में दो पेपर पढाये जाते हैं, जिनमें से पहला “Era of Gandhi and Mass Movement (गांधी युग एवं जन आन्दोलन)” और दूसरा “History of Modern World (1815 AD – 1945 AD) – आधुनिक विश्व का इतिहास“ है | यहाँ आपको पहले पेपर के लिए टॉपिक वाइज प्रश्न उत्तर और नोट्स मिलेंगे |
BA 6th Semester History Online Test in Hindi
इस पेज पर बीए 6th सेमेस्टर के छात्रों के लिए हिस्ट्री के ऑनलाइन टेस्ट का लिंक दिया गया है | इस टेस्ट में लगभग 240 प्रश्न दिए गये हैं |
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Era of Gandhi and Mass Movement (गांधी युग एवं जन आन्दोलन)
अध्याय 1: गांधीजी का प्रवेश और असहयोग आंदोलन
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अध्याय 2: चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह के मुकदमे के विशेष संदर्भ में भारत में क्रांतिकारी आंदोलन का उदय
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अध्याय 3: भारत के बाहर क्रांतिकारी आंदोलन का उदय: ग़दर पार्टी के विशेष संदर्भ में
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अध्याय 4: साइमन कमीशन, नेहरू रिपोर्ट, सविनय अवज्ञा आंदोलन
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अध्याय 5: भारत छोड़ो आंदोलन
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अध्याय 6: संवैधानिक संकट: क्रिप्स और कैबिनेट मिशन
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अध्याय 7: सुभाष चन्द्र बोस एवं आजाद हिन्द फौज
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अध्याय 8: माउंटबेटन योजना, विभाजन और स्वतंत्रता
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BA 6th Semester History Important Question Answers
Era of Gandhi and Mass Movement (गांधी युग एवं जन आन्दोलन)
अध्याय 1: गांधीजी का प्रवेश और असहयोग आंदोलन
प्रश्न 1: किस प्रकार से मोहनदास करमचंद गांधी ने भारतीय राजनीति में अपना प्रभाव जमाया और उनके शुरुआती कार्यों का विश्लेषण कीजिए?
उत्तर: मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें बाद में महात्मा गांधी कहा जाने लगा, 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। उनकी सत्याग्रह की अवधारणा ने भारतीय राजनीति में एक नई दिशा दी। उन्होंने अपना प्रभाव जमाया:
I. चम्पारन: यहां उन्होंने किसानों के लिए सत्याग्रह किया जो नील की खेती के लिए जबरन मजबूर थे, जिससे ब्रिटिश सरकार की नीतियों में सुधार आया।
II. अहमदाबाद: मिल मजदूरों के लिए वेतन वृद्धि की मांग के लिए हड़ताल का नेतृत्व किया, जिसमें सफलता मिली।
III. खेड़ा: खेड़ा में अकाल के समय किसानों को लगान माफी दिलाने में सफल रहे, जिसने उन्हें राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया।
प्रश्न 2: चम्पारन, अहमदाबाद और खेड़ा में गांधी जी ने किस प्रकार सत्याग्रह का प्रयोग किया और इन आंदोलनों के परिणाम क्या रहे?
उत्तर: गांधी जी ने इन तीनों स्थानों पर सत्याग्रह का उपयोग इस प्रकार किया:
I. चम्पारन: सत्याग्रह के जरिये उन्होंने किसानों के लिए नील खेती के अन्यायपूर्ण नियमों को बदलवाया, जिससे किसानों की स्थिति सुधरी।
II. अहमदाबाद: मिल मजदूरों के लिए हड़ताल करवाई और उनकी मांग पूरी होने के बाद हड़ताल वापस ली, जिससे मजदूरों की वेतन वृद्धि हुई।
III. खेड़ा: अकाल के दौरान किसानों के लगान माफी की मांग के लिए सत्याग्रह किया, जिससे ब्रिटिश सरकार ने लगान माफी की घोषणा की।
इन आंदोलनों ने गांधी की सत्याग्रह की रणनीति की प्रभावशीलता साबित की और जन समर्थन बढ़ा।
प्रश्न 3: असहयोग आंदोलन के पीछे किन घटनाओं और सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों ने प्रेरणा दी?
उत्तर: असहयोग आंदोलन के पीछे कई कारण थे:
I. जलियांवाला बाग हत्याकांड: 1919 में अमृतसर में हुई यह घटना ने भारतीयों के मन में ब्रिटिश शासन के खिलाफ गहरा आक्रोश भरा।
II. रोलेट एक्ट: यह कानून ब्रिटिश सरकार को बिना मुकदमा चलाए किसी को भी जेल में डालने का अधिकार देता था, जिसने असंतोष को बढ़ाया।
III. खिलाफत आंदोलन: मुस्लिमों की नाराजगी ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ किए गए ब्रिटिश कार्यों से थी, जिसे भारतीय राजनीति के साथ जोड़कर असहयोग आंदोलन को बल मिला।
IV. सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियाँ: बढ़ता राष्ट्रवाद, ब्रिटिश शासन के प्रति व्यापक असंतोष, और गांधी के नेतृत्व में जनता का विश्वास।
इन कारणों ने मिलकर असहयोग आंदोलन को जन्म दिया।
प्रश्न 4: गांधी ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव क्यों रखा और कैसे?
उत्तर: गांधी ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव इसलिए रखा क्योंकि:
I. ब्रिटिश शासन का विरोध: स्वतंत्रता की भावना को जगाने और ब्रिटिश शासन को कमजोर करने के लिए।
II. स्वराज की मांग: देश को स्वशासन की ओर ले जाने के लिए।
III. जनता का संगठन: सामाजिक और राजनीतिक सुधार के लिए जनता को एकजुट करना।
असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव निम्न तरीकों से रखा गया:
कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में (1920): इस अधिवेशन में गांधी ने आंदोलन की रूपरेखा प्रस्तुत की और इसे स्वीकार किया गया।
अहिंसा और सत्याग्रह का उपयोग: आंदोलन के लिए अहिंसक और शांतिपूर्ण तरीकों की वकालत की गई।
प्रश्न 5: असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव का विरोध किसने और क्यों किया?
उत्तर: असहयोग आंदोलन का विरोध कुछ लोगों ने किया:
I. बाल गंगाधर तिलक के अनुयायी: तिलक के निधन के बाद उनके कुछ अनुयायियों ने विरोध किया, मानते हुए कि आंदोलन अव्यवहारिक है।
II. मॉडरेट्स (मध्यमवादी): जैसे कि सुरेंद्रनाथ बनर्जी, जिन्होंने माना कि यह आंदोलन बहुत कट्टरपंथी है और ब्रिटिशों के साथ सहयोग जारी रखना चाहिए।
III. सरकारी समर्थक: जो ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग करना चाहते थे, उन्होंने इसे अराजकता की ओर बढ़ने वाला कदम माना।
विरोध का मुख्य कारण आंदोलन की व्यवहार्यता और क्रियान्वयन पर संदेह था।
प्रश्न 6: विद्यार्थियों ने असहयोग आंदोलन के दौरान क्या निर्णय लिया और किस प्रकार रचनात्मक कार्य किया?
उत्तर: विद्यार्थियों ने निम्न निर्णय लिए और रचनात्मक कार्य किए:
I. सरकारी संस्थाओं का बहिष्कार: विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में सरकारी स्कूलों और कॉलेजों को छोड़ा, जिससे शिक्षा की स्वदेशी व्यवस्था की मांग बढ़ी।
II. राष्ट्रीय शिक्षा संस्थानों की स्थापना: जैसे कि जामिया मिलिया इस्लामिया और काशी विद्यापीठ, राष्ट्रीय शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए।
III. रचनात्मक कार्य: विद्यार्थियों ने गांवों में शिक्षा, स्वच्छता, और स्वास्थ्य जैसे कार्यों को बढ़ावा दिया तथा खादी और हथकरघा उद्योग को प्रोत्साहित किया।
यह निर्णय और कार्य आंदोलन को व्यापक आधार प्रदान किया।
प्रश्न 7: असहयोग आंदोलन की प्रगति के दौरान शिक्षा संस्थाओं का बहिष्कार कैसे हुआ?
उत्तर: असहयोग आंदोलन की प्रगति के दौरान शिक्षा संस्थाओं का बहिष्कार इस प्रकार हुआ:
I. विद्यार्थियों की भागीदारी: विद्यार्थियों ने महसूस किया कि ब्रिटिश सरकार की शिक्षा प्रणाली उन्हें उपनिवेशवादी मानसिकता में बांधे रखती है।
II. बड़े पैमाने पर निकास: हजारों विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूल और कॉलेज छोड़े, जिससे इन संस्थानों को भारी नुकसान हुआ।
III. स्वदेशी शिक्षा की मांग: शिक्षा को स्वदेशी और राष्ट्रीय आधार पर पुनर्गठित करने के लिए नई संस्थानों की स्थापना की गई जो भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर आधारित थीं।
IV. सरकारी प्रतिक्रिया: ब्रिटिश सरकार ने ऐसी कार्रवाइयों को दबाने की कोशिश की, लेकिन बहिष्कार का प्रभाव स्पष्ट था।
यह बहिष्कार आंदोलन के एक प्रमुख हिस्से के रूप में देखा गया।
प्रश्न 8: असहयोग आंदोलन की प्रगति के चरमोत्कर्ष क्या रहे?
उत्तर: असहयोग आंदोलन की प्रगति के चरमोत्कर्ष में शामिल थे:
I. बहिष्कार: सरकारी संस्थाओं, अदालतों, विद्यालयों, और विदेशी वस्तुओं का व्यापक बहिष्कार।
II. खिलाफत आंदोलन के साथ सहयोग: हिंदू-मुस्लिम एकता को प्रदर्शित करना जिसने आंदोलन को और अधिक ताकत दी।
III. स्वदेशी और खादी का प्रचार: स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देना और खादी का प्रयोग बढ़ाना।
IV. हड़ताल और जन आंदोलन: बड़े पैमाने पर हड़तालें, रैलियाँ और जनसभाएं जो सरकार के खिलाफ एक शक्तिशाली विरोध दिखाती थीं।
V. विदेशी कपड़ों की होली: विदेशी कपड़ों को जलाने की घटनाएं जिसने आंदोलन की तीव्रता प्रकट की।
ये चरमोत्कर्ष आंदोलन की व्यापक स्वीकार्यता और सफलता को दर्शाते हैं।
प्रश्न 9: चौरी-चौरा घटना क्या थी और इसने असहयोग आंदोलन को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर: चौरी-चौरा घटना:
I. विवरण: 4 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चौरी-चौरा नामक गांव में एक पुलिस थाने पर हमला हुआ, जिसमें पुलिसकर्मियों की हत्या हो गई।
II. प्रभाव: इस हिंसक घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया, क्योंकि उनका मानना था कि आंदोलन अब अहिंसा के पथ से उतर गया है।
III. नतीजे: आंदोलन की रद्दीकरण ने कई लोगों को निराश किया, लेकिन यह भी दिखाया कि गांधी के लिए अहिंसा सबसे पहले थी।
IV. नेताओं की गिरफ्तारी: इस घटना के बाद कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें गांधी जी भी शामिल थे।
चौरी-चौरा ने असहयोग आंदोलन को अचानक समाप्त कर दिया।
प्रश्न 10: असहयोग आंदोलन वापस लेने पर नेताओं का क्या विचार था?
उत्तर: असहयोग आंदोलन वापस लेने पर नेताओं के विचार:
I. गांधी जी: उन्होंने आंदोलन को वापस लेने का निर्णय लिया क्योंकि चौरी-चौरा घटना ने अहिंसा के सिद्धांत को चुनौती दी। उनका मानना था कि जनता अभी अहिंसा के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है।
II. सुभाष चंद्र बोस: उन्होंने इस फैसले का विरोध किया, मानते हुए कि आंदोलन को जारी रखा जाना चाहिए, क्योंकि यह जनता की भावनाओं के अनुरूप था।
III. मोतीलाल नेहरू: उन्होंने गांधी जी के निर्णय का समर्थन किया, हालांकि हताशा भी व्यक्त की, मानते हुए कि अहिंसा को प्राथमिकता देना आवश्यक था।
IV. जवाहरलाल नेहरू: नेहरू ने भी मिश्रित भावनाएं व्यक्त कीं, समझदारी से गांधी के निर्णय का समर्थन किया लेकिन स्वीकार किया कि यह मोर्चे पर लड़ने वालों के लिए निराशाजनक था।
विचारों में विभिन्नता के बावजूद, गांधी के नेतृत्व और अहिंसा के सिद्धांत का सम्मान किया गया।
प्रश्न 11: असहयोग आंदोलन का परिणाम क्या हुआ?
उत्तर: असहयोग आंदोलन के परिणाम थे:
I. जन जागरण: इसने भारतीय जनता को राजनीतिक रूप से जागरूक किया और स्वराज की मांग को तीव्र किया।
II. ब्रिटिश शक्ति को चुनौती: आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को एक महत्वपूर्ण चुनौती दी, जिससे उन्हें अपनी नीतियों में बदलाव करना पड़ा।
III. हिंदू-मुस्लिम एकता: आंदोलन ने हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच एकता को बढ़ावा दिया, हालांकि यह एकता बाद में कमजोर हुई।
IV. राष्ट्रीय शिक्षा और स्वदेशी का उदय: सरकारी शिक्षा संस्थाओं के बहिष्कार ने नई राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाओं को जन्म दिया और स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को प्रोत्साहित किया।
V. नेताओं की गिरफ्तारी: कई नेता गिरफ्तार हुए जिससे राजनीतिक कैदियों की संख्या बढ़ी और आंदोलन के प्रति सहानुभूति भी।
VI. अहिंसा की पुष्टि: हिंसा के प्रति गांधी के रुख ने अहिंसा के राजनीतिक उपयोग को पुष्ट किया।
हालांकि आंदोलन को रोक दिया गया, लेकिन इसके परिणामस्वरूप भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव और मजबूत हुई।
प्रश्न 12: असहयोग आंदोलन का महत्व क्या था?
उत्तर: असहयोग आंदोलन का महत्व निम्नलिखित है:
I. राजनीतिक जागरूकता: यह एक ऐसा मंच था जिसने भारतीयों को राजनीतिक रूप से जागृत किया और उन्हें स्वतंत्रता के लिए एकजुट किया।
II. स्वराज का विचार: इसने स्वराज का विचार जन-जन तक पहुंचाया और इसकी मांग को तीव्र किया।
III. ब्रिटिश साम्राज्य का क्षरण: यह आंदोलन ने ब्रिटिश शासन के आधार को हिलाया और उन्हें अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया।
IV. गांधी के नेतृत्व की स्वीकार्यता: असहयोग आंदोलन ने गांधी को राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया और उनके अहिंसक संघर्ष के तरीकों की प्रभावशीलता को दर्शाया।
V. सामाजिक और आर्थिक प्रभाव: स्वदेशी और खादी का प्रचार ने भारतीय उत्पादों को प्रोत्साहित किया और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा दिया।
VI. एकता और सहयोग: हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने में मदद की, हालांकि यह एकता लंबे समय तक न चल सकी।
इस प्रकार, असहयोग आंदोलन केवल एक आंदोलन नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण मोड़ था जिसने भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई को नई दिशा दी।
प्रश्न 13: गांधी जी के आगमन के बाद भारतीय राजनीति की दिशा में कैसे बदलाव आया?
उत्तर: गांधी जी के आगमन के बाद भारतीय राजनीति में निम्न बदलाव आए:
I. अहिंसा की राजनीति: गांधी ने अहिंसा को राजनीतिक संघर्ष का मूल मंत्र बनाया, जिसने आंदोलनों को जन-समर्थन दिलाया।
II. जन आंदोलन: राजनीति जनता केन्द्रित हो गई, जहां आम लोगों की भागीदारी व्यापक हुई।
III. स्वदेशी और सत्याग्रह: इन दोनों सिद्धांतों ने राष्ट्रीय आत्मनिर्भरता और नैतिक संघर्ष को प्रोत्साहित किया।
IV. सामाजिक सुधार: राजनीति के साथ-साथ सामाजिक सुधारों को भी प्राथमिकता मिली, जैसे कि जाति-प्रथा का उन्मूलन, महिला अधिकार, और शिक्षा का प्रसार।
V. हिंदू-मुस्लिम एकता: गांधी ने इस एकता को बढ़ावा दिया, जो राजनीतिक आंदोलनों की सफलता के लिए महत्वपूर्ण था।
इन बदलावों ने भारतीय राजनीति को अधिक जन-सम्मत और समावेशी बनाया।
प्रश्न 14: असहयोग आंदोलन ने किस प्रकार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को आकार दिया?
उत्तर: असहयोग आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को निम्नलिखित तरीकों से आकार दिया:
I. जन आंदोलन का प्रतिमान: यह पहली बार था जब स्वतंत्रता संग्राम में जनता की व्यापक भागीदारी देखी गई।
II. अहिंसा की शक्ति: यह दिखाया कि अहिंसा कितनी प्रभावी हो सकती है, जो बाद के आंदोलनों के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत बना।
III. ब्रिटिश शासन की कमजोरी: आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की कमजोरियों को उजागर किया, जिससे आगे के आंदोलनों को रणनीतिक लाभ मिला।
IV. राष्ट्रीय एकता: हिंदू-मुस्लिम एकता को प्रोत्साहित किया, जिसने संयुक्त संघर्ष की भावना को बढ़ावा दिया।
V. स्वदेशी और आत्मनिर्भरता: इसने स्वदेशी उत्पादों के उपयोग और आर्थिक आत्मनिर्भरता की बुनियाद रखी।
VI. राजनीतिक शिक्षा: इसने लोगों को राजनीतिक रूप से शिक्षित किया और स्वराज के विचार को प्रोत्साहित किया।
इस प्रकार, असहयोग आंदोलन ने स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा और गति प्रदान की।
प्रश्न 15: चौरी-चौरा की घटना के बाद असहयोग आंदोलन के वापस लेने के प्रभाव क्या रहे?
उत्तर: चौरी-चौरा के बाद असहयोग आंदोलन को वापस लेने के प्रभाव:
I. जनता की निराशा: कई लोगों में निराशा फैली, जो मानते थे कि आंदोलन को जारी रखना चाहिए था।
II. आंदोलन की समीक्षा: इसने एकता और अनुशासन की आवश्यकता पर पुनर्विचार करने को मजबूर किया।
III. गांधी की अहिंसा का परीक्षण: इसने गांधी के अहिंसा के सिद्धांत की सख्ती को प्रकट किया, जो आगे चलकर उनकी रणनीति का मुख्य आधार बना।
IV. कांग्रेस के भीतर विभाजन: कुछ नेताओं ने गांधी के निर्णय का विरोध किया, जिससे कांग्रेस के भीतर विचारधारा का विभाजन स्पष्ट हुआ।
V. ब्रिटिश सरकार की राहत: निश्चित रूप से ब्रिटिश सरकार को इससे राहत मिली, हालांकि यह अस्थायी थी क्योंकि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम जारी रहा।
VI. अगले आंदोलन की तैयारी: आंदोलन के वापस लेने ने नेताओं को अगले चरणों की रणनीति के लिए समय दिया, जैसे कि सविनय अवज्ञा आंदोलन।
इसने स्वतंत्रता आंदोलन को अगले चरण की ओर मोड़ दिया, जहां नए रणनीतियों और संगठन की आवश्यकता थी।
अध्याय 2: चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह के मुकदमे के विशेष संदर्भ में भारत में क्रांतिकारी आंदोलन का उदय
प्रश्न 1: भारत में क्रांतिकारी आंदोलन की उत्पत्ति एवं विकास का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर: भारत में क्रांतिकारी आंदोलन की उत्पत्ति और विकास:
I. उत्पत्ति: यह आंदोलन 19वीं शताबदी के अंत और 20वीं शताबदी के प्रारंभ में उभरा, जब ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष बढ़ा।
II. विकास: शुरुआती क्रांतिकारी समूहों ने सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्त करने का प्रयास किया, जिससे यह आंदोलन व्यापक और संगठित रूप लेने लगा।
III. प्रभाव: राजनीतिक उत्पीड़न, असहयोग आंदोलन की असफलता, और जन-जागरण ने इसे प्रेरणा दी।
प्रश्न 2: क्रांतिकारियों की कार्यप्रणाली क्या थी?
उत्तर: क्रांतिकारियों की कार्यप्रणाली में शामिल था:
I. सशस्त्र विद्रोह: बैंक डकैती, डाका और अन्य हिंसक कृत्य जिनका उद्देश्य धन जुटाना और ब्रिटिश शासन को चुनौती देना था।
II. गुप्त संगठन: गोपनीयता के साथ काम करना ताकि सरकारी कार्रवाई से बचा जा सके।
III. प्रचार: पत्रिकाएं और पुस्तकें प्रकाशित करना जिससे क्रांतिकारी विचारों का प्रसार हो।
प्रश्न 3: क्रांतिकारी आंदोलन का लक्ष्य क्या था?
उत्तर: क्रांतिकारी आंदोलन का मुख्य लक्ष्य था:
I. स्वतंत्रता प्राप्ति: ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता की प्राप्ति, अक्सर हिंसक साधनों द्वारा।
II. राजनीतिक और सामाजिक उद्धार: एक गणतंत्रात्मक राज्य की स्थापना जो सामाजिक न्याय पर आधारित हो।
III. जन जागरण: जनता में राष्ट्रीयता और आत्म-सम्मान की भावना जगाना।
प्रश्न 4: भारत में क्रांतिकारी आंदोलन के उदय के कारण क्या थे?
उत्तर: क्रांतिकारी आंदोलन के उदय के कारण:
I. ब्रिटिश उत्पीड़न: रोलेट एक्ट, जलियांवाला बाग नरसंहार जैसी घटनाओं ने युवाओं में असंतोष जगाया।
II. असहयोग आंदोलन का प्रभाव: असहयोग आंदोलन की असफलता ने कुछ युवाओं को हिंसक साधनों की ओर धकेला।
III. विदेशी प्रभाव: रूसी क्रांति जैसी घटनाओं ने क्रांतिकारी विचारों को प्रोत्साहित किया।
प्रश्न 5: क्रांतिकारी आंदोलन की तात्कालिक असफलता के कारण क्या थे?
उत्तर: तात्कालिक असफलता के कारण:
I. सरकारी कार्रवाई: ब्रिटिश सरकार की कठोर नीतियों और दमन ने क्रांतिकारियों को पकड़ा या मार दिया।
II. आंतरिक विभाजन: क्रांतिकारी समूहों में विचारधारा के मतभेद और नेतृत्व की कमी।
III. सीमित समर्थन: जनता का सीमित समर्थन, क्योंकि बहुत से लोग अहिंसा को प्राथमिकता देते थे।
प्रश्न 6: हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की पृष्ठभूमि क्या थी?
उत्तर: हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) की पृष्ठभूमि:
I. स्थापना: 1924 में स्थापित, HRA का उद्देश्य भारत को गणतंत्र बनाना था।
II. प्रेरणा: रूसी क्रांति और आयरिश स्वतंत्रता संघर्ष से प्रेरित।
III. सदस्य: युवा क्रांतिकारी जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष करना चाहते थे।
प्रश्न 7: हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन कैसे हुआ?
उत्तर: HRA का गठन:
I. संस्थापक: सचिन्द्रनाथ सान्याल, राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान ने इसकी नींव रखी।
II. लक्ष्य: भारत को स्वतंत्र गणतंत्र बनाना और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना।
III. गुप्तता: संगठन की गतिविधियाँ गुप्त रखी गईं ताकि ब्रिटिश सरकार के दमन से बचा जा सके।
प्रश्न 8: हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के उद्देश्य क्या थे?
उत्तर: HRA के उद्देश्य:
I. स्वतंत्रता: ब्रिटिश शासन से मुक्ति प्राप्त करना।
II. गणतांत्रिक समाज: एक ऐसा समाज जहां सभी को समान अधिकार मिलें।
III. आर्थिक समानता: धन के समान वितरण के लिए सामाजिक-आर्थिक नीतियों का समर्थन।
प्रश्न 9: क्रांतिकारी घोषणापत्र ‘दि रिवोल्युशनरी’ का प्रकाशन क्यों महत्वपूर्ण था?
उत्तर: ‘दि रिवोल्युशनरी’ का महत्व:
I. प्रचार: इसने क्रांतिकारी विचारों को जनता तक पहुंचाया।
II. विचारधारा: HRA के लक्ष्य और सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया।
III. प्रेरणा: युवाओं को क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न 10: हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य कौन थे?
उत्तर: HRA के प्रमुख सदस्यों में शामिल थे:
I. राम प्रसाद बिस्मिल: एक प्रमुख नेता, जिन्होंने काकोरी ट्रेन डकैती का नेतृत्व किया।
II. अशफाक उल्ला खान: बिस्मिल के साथी, हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक।
III. चंद्रशेखर आजाद: बाद में HSRA के नेता, प्रारंभ में HRA से जुड़े।
प्रश्न 11: हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की गतिविधियाँ क्या थीं?
उत्तर: HRA की गतिविधियाँ:
I. काकोरी ट्रेन डकैती: धन जुटाने के लिए 1925 में की गई प्रसिद्ध घटना।
II. हथियारों का संग्रह: सशस्त्र विद्रोह के लिए हथियारों का जमा करना।
III. प्रचार और प्रकाशन: क्रांतिकारी साहित्य का प्रकाशन जिससे विचारधारा का प्रसार हो।
प्रश्न 12: हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की आलोचना क्या रही?
उत्तर: HRA की आलोचना:
I. हिंसा का प्रयोग: हिंसक तरीकों के उपयोग की आलोचना गांधीवादी नेताओं ने की।
II. संगठनात्मक कमियाँ: कमजोर संगठनात्मक ढांचा और योजना की कमी।
III. सीमित सफलता: तात्कालिक सफलता की कमी के कारण सरकारी दमन का शिकार होना।
प्रश्न 13: हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन कैसे हुआ?
उत्तर: HSRA का गठन:
I. उदय: HRA के विघटन के बाद, 1928 में इसका गठन हुआ।
II. नेतृत्व: चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और अन्य ने इसका नेतृत्व किया।
III. सिद्धांत: समाजवादी विचारधारा के साथ गणतंत्र की स्थापना।
प्रश्न 14: हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की गतिविधियाँ क्या थीं?
उत्तर: HSRA की गतिविधियाँ:
I. लाहौर षड्यंत्र: जिसमें सांडर्स की हत्या शामिल थी।
II. असेंबली बम कांड: 1929 में दिल्ली असेंबली में बम फेंकना।
III. प्रचार: विचारधारा का प्रसार और जन जागरण।
प्रश्न 15: भगत सिंह का मुकदमा क्या था और उसका परिणाम क्या हुआ?
उत्तर: भगत सिंह का मुकदमा:
I. मुकदमा: भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर षड्यंत्र और असेंबली बम कांड के लिए गिरफ्तार किया गया।
II. मुकदमा प्रक्रिया: एक लंबी और विवादित मुकदमा जिसमें भगत सिंह ने अपनी विचारधारा का प्रचार किया।
III. परिणाम: उन्हें फांसी की सजा दी गई और 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई।
यह मुकदमा और उसके परिणाम ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में कार्य किया।
अध्याय 3: भारत के बाहर क्रांतिकारी आंदोलन का उदय: ग़दर पार्टी के विशेष संदर्भ में
प्रश्न 1: गदर पार्टी की पृष्ठभूमि क्या थी?
उत्तर: गदर पार्टी की पृष्ठभूमि:
I. उद्भव: गदर पार्टी 1913 में सैन फ्रांसिस्को में स्थापित हुई, जहां भारतीय प्रवासी मजदूर और छात्र इकट्ठा हुए।
II. प्रेरणा: ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह की भावना और विश्व में चल रहे राष्ट्रवादी आंदोलनों से प्रेरित।
III. संस्थापक: लाला हरदयाल, तरक नाथ दास, और सोहन सिंह भाकना जैसे नेताओं ने इसकी स्थापना की।
प्रश्न 2: गदर क्रांतिकारी कौन थे?
उत्तर: गदर क्रांतिकारी:
I. पृष्ठभूमि: मुख्य रूप से पंजाब से आए भारतीय प्रवासी जो अमेरिका और कनाडा में काम कर रहे थे।
II. विचारधारा: इन्होंने हिंसक विद्रोह के जरिये ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने की कसम खाई थी।
III. प्रमुख नाम: करतार सिंह सराभा, वीरेंद्रनाथ चट्टोपाध्याय, और भगवान सिंह जैसे नेता।
प्रश्न 3: गदर पार्टी की विशेषताएँ क्या थीं?
उत्तर: गदर पार्टी की विशेषताएँ:
I. वैश्विक दृष्टिकोण: यह पार्टी विदेशी भारतीयों को एकजुट करने पर केंद्रित थी।
II. क्रांतिकारी विचारधारा: सशस्त्र विद्रोह और ब्रिटिश शासन के उखाड़ फेंकने का लक्ष्य।
III. सामाजिक समता: जाति और धर्म के बंधनों को तोड़ते हुए समानता की बात करती थी।
प्रश्न 4: गदर साप्ताहिक पत्र की भूमिका क्या थी?
उत्तर: गदर साप्ताहिक पत्र:
I. प्रचार: यह पत्रिका क्रांतिकारी विचारों के प्रसार का मुख्य माध्यम थी।
II. सूचना प्रसार: भारत में और बाहर चल रहे राजनीतिक घटनाक्रमों की जानकारी देती थी।
III. प्रेरणा: यह युवाओं को क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के लिए प्रेरित करती थी।
प्रश्न 5: गदर क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध स्वतंत्रता की तैयारी कैसे की?
उत्तर: स्वतंत्रता की तैयारियाँ:
I. सैन्य प्रशिक्षण: विदेश में रहते हुए हथियारों का प्रशिक्षण लेना।
II. धन संग्रह: धन इकट्ठा करना जो विद्रोह के लिए इस्तेमाल हो सके।
III. संचार नेटवर्क: एक व्यापक संचार नेटवर्क की स्थापना जो भारत और विदेशों को जोड़ता था।
प्रश्न 6: गदर पार्टी की गतिविधियाँ क्या थीं?
उत्तर: गदर पार्टी की गतिविधियाँ:
I. हथियारों की खरीद: अमेरिका और जर्मनी से हथियार खरीदना।
II. विद्रोह का प्रयास: प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत में सशस्त्र विद्रोह की कोशिशें।
III. प्रचार: साहित्य और पत्रिकाओं के जरिये क्रांति का प्रचार करना।
प्रश्न 7: गदर आंदोलन की मुख्य घटनाएँ क्या थीं?
उत्तर: मुख्य घटनाएँ:
I. कोमागाटा मारू घटना: 1914 में जहाज के यात्रियों के साथ हुई हिंसा।
II. लाहौर षड्यंत्र: 1915 में लाहौर में हुई विद्रोह की कोशिश।
III. हिंगोली क्रांति: महाराष्ट्र में हुई क्रांतिकारी गतिविधियाँ।
प्रश्न 8: गदर आंदोलन का दमन कैसे हुआ?
उत्तर: दमन:
I. ब्रिटिश खुफिया: ब्रिटिश खुफिया विभाग ने क्रांतिकारियों को पकड़ने के लिए व्यापक अभियान चलाया।
II. गिरफ्तारियाँ और फांसी: कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया और फांसी दी गई।
III. नेतृत्व की कमी: अनेक नेताओं की गिरफ्तारी ने आंदोलन को कमजोर किया।
प्रश्न 9: गदर पार्टी की उपलब्धियाँ क्या थीं?
उत्तर: उपलब्धियाँ:
I. विदेश में आंदोलन: भारत के बाहर क्रांतिकारी आंदोलन को प्रेरित किया।
II. जन जागरण: विशेष रूप से पंजाब में जनता को राजनीतिक रूप से जागृत किया।
III. क्रांतिकारी विचारधारा: अन्य क्रांतिकारी समूहों को प्रेरित करने में अहम योगदान।
प्रश्न 10: गदर पार्टी की असफलता के कारण क्या थे?
उत्तर: असफलताएँ:
I. संगठनात्मक कमियाँ: ढीला संगठन और योजना की कमी।
II. सरकारी दमन: ब्रिटिश सरकार की कड़ी कार्रवाई।
III. समय की समस्या: प्रथम विश्व युद्ध के समय की अनिश्चितताओं का शिकार होना।
प्रश्न 11: गदर पार्टी के स्थापना के उद्देश्य क्या थे?
उत्तर: उद्देश्य:
I. स्वतंत्रता: ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त कराना।
II. समानता: सामाजिक और आर्थिक समानता की स्थापना।
III. गणतंत्र: भारत में गणतंत्रात्मक शासन की स्थापना।
प्रश्न 12: गदर पार्टी के सदस्यों की राजनीतिक दृष्टि क्या थी?
उत्तर: राजनीतिक दृष्टि:
I. राष्ट्रवाद: भारत की एकता और स्वतंत्रता पर जोर।
II. समाजवाद: सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता की वकालत।
III. अंतर्राष्ट्रीयता: विश्व के क्रांतिकारी आंदोलनों से प्रेरणा लेना।
प्रश्न 13: गदर पार्टी के प्रकाशनों ने क्रांतिकारी आंदोलन को कैसे प्रभावित किया?
उत्तर: प्रकाशनों का प्रभाव:
I. विचारधारा का प्रसार: क्रांतिकारी विचारों को जनमानस तक पहुँचाना।
II. एकता: विभिन्न समुदायों को एकजुट करना और हिंदू-मुस्लिम एकता को प्रोत्साहित करना।
III. जन आंदोलन: सामान्य जन को क्रांति के लिए प्रेरित करना।
प्रश्न 14: गदर पार्टी के कार्यों का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: प्रभाव:
I. प्रेरणा: युवाओं को क्रांति के लिए प्रेरित किया।
II. नेटवर्क: एक वैश्विक नेटवर्क बनाया जो क्रांतिकारी गतिविधियों को समर्थन देता था।
III. रणनीति: ब्रिटिश शासन के खिलाफ नई रणनीतियों का विकास।
प्रश्न 15: गदर पार्टी की विरासत क्या रही?
उत्तर: विरासत:
I. प्रतीक: गदर पार्टी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण प्रतीक के रूप में स्थापित हुई।
II. शिक्षा: नई पीढ़ी को क्रांतिकारी इतिहास और संघर्ष के बारे में शिक्षित किया।
III. स्मृति: क्रांतिकारियों की बलिदान की स्मृति जो आज भी सम्मानित है।
अध्याय 4: साइमन कमीशन, नेहरू रिपोर्ट, सविनय अवज्ञा आंदोलन
प्रश्न 1: साइमन कमीशन क्या था और इसका गठन क्यों किया गया था?
उत्तर: साइमन कमीशन:
I. परिचय: साइमन कमीशन 1927 में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत के शासन में सुधार के लिए नियुक्त किया गया था।
II. गठन: इसका गठन 1919 के भारत सरकार अधिनियम की समीक्षा करने के लिए किया गया था, जिसकी समय सीमा 10 साल थी।
III. उद्देश्य: भारतीय शासन प्रणाली में आवश्यक सुधारों का सुझाव देना।
प्रश्न 2: साइमन कमीशन के सदस्य कौन थे?
उत्तर: साइमन कमीशन के सदस्य:
I. प्रमुख सदस्य: सर जॉन साइमन, जिन्होंने इसका नेतृत्व किया।
II. अन्य सदस्य: केवल ब्रिटिश नागरिक थे, जिसमें कोई भी भारतीय शामिल नहीं था।
III. संख्या: कुल सात सदस्य थे जो सभी ब्रिटिश थे।
प्रश्न 3: साइमन कमीशन के आगमन और बहिष्कार का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर: आगमन और बहिष्कार:
I. आगमन: 1928 में भारत पहुँचे, जिसका व्यापक विरोध हुआ।
II. बहिष्कार: “साइमन गो बैक” नारे के साथ भारतीयों ने इसका बहिष्कार किया, क्योंकि कमीशन में कोई भारतीय नहीं था।
III. प्रभाव: इसने राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया और विरोध प्रदर्शनों ने आंदोलन को जन्म दिया।
प्रश्न 4: साइमन कमीशन की सिफारिशें क्या थीं?
उत्तर: सिफारिशें:
I. प्रांतीय स्वायत्तता: प्रांतों को अधिक स्वायत्तता देने की सिफारिश।
II. मताधिकार: मताधिकार की व्यवस्था में सुधार, हालांकि सीमित।
III. द्विसदनीय व्यवस्था: केंद्रीय विधानमंडल को दो सदनों में बदलने का सुझाव।
प्रश्न 5: साइमन कमीशन रिपोर्ट की समीक्षा कैसे हुई?
उत्तर: समीक्षा:
I. राष्ट्रीय आंदोलन: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन ने इसे अपर्याप्त माना, विशेषकर भारतीयों के शामिल न होने के कारण।
II. कांग्रेस: कांग्रेस ने इसे अस्वीकार कर दिया और अपना नेहरू रिपोर्ट तैयार किया।
III. ब्रिटिश सरकार: रिपोर्ट ने ब्रिटिश सरकार को कुछ सुधार करने के लिए प्रेरित किया, लेकिन वे अपेक्षाकृत सीमित थे।
प्रश्न 6: नेहरू रिपोर्ट क्या था और इसकी मुख्य सिफारिशें क्या थीं?
उत्तर: नेहरू रिपोर्ट:
I. परिचय: 1928 में मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक वैकल्पिक संविधान का प्रारूप तैयार किया गया।
II. सिफारिशें:
डोमिनियन स्टेटस: भारत को ब्रिटिश राज के अधीन डोमिनियन स्टेटस देना।
मौलिक अधिकार: नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों की स्थापना।
धर्मनिरपेक्ष राज्य: धार्मिक समानता और साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व के बजाय सामान्य मताधिकार।
प्रश्न 7: नेहरू रिपोर्ट पर राष्ट्रीय और साम्प्रदायिक प्रतिक्रिया क्या थी?
उत्तर: प्रतिक्रिया:
I. राष्ट्रीय: कांग्रेस ने इसे स्वीकार किया, लेकिन कुछ राष्ट्रवादी इसे अपर्याप्त मानते थे।
II. मुस्लिम लीग: मुस्लिम लीग ने इसका विरोध किया, क्योंकि यह साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की उनकी मांग को पूरा नहीं करता था।
III. सिख और अन्य समुदाय: सिख और हिंदू महासभा ने भी विभिन्न मुद्दों पर असहमति व्यक्त की।
प्रश्न 8: नेहरू रिपोर्ट का महत्व क्या था?
उत्तर: महत्व:
I. संवैधानिक रूपरेखा: भारत के लिए एक संवैधानिक रूपरेखा प्रस्तुत की।
II. राजनीतिक एकता: राजनीतिक दलों को एकजुट करने का प्रयास।
III. स्वराज की मांग: स्वराज की मांग को अधिक ठोस आकार दिया।
प्रश्न 9: साइमन कमीशन रिपोर्ट और नेहरू रिपोर्ट में क्या अंतर थे?
उत्तर: अंतर:
I. प्रकृति: साइमन कमीशन एक ब्रिटिश सुधार प्रस्ताव था, जबकि नेहरू रिपोर्ट भारतीय राष्ट्रीय आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करता था।
II. सदस्यता: साइमन कमीशन में कोई भारतीय नहीं था, जबकि नेहरू रिपोर्ट भारतीयों द्वारा तैयार की गई थी।
III. अधिकार: नेहरू रिपोर्ट में स्वायत्तता की मांग बहुत अधिक थी जबकि साइमन रिपोर्ट सीमित सुधारों की बात करती थी।
प्रश्न 10: सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण क्या थे?
उत्तर: कारण:
I. साइमन कमीशन का बहिष्कार: राष्ट्रीय असंतोष का एक बड़ा कारण।
II. नेहरू रिपोर्ट की अस्वीकृति: ब्रिटिश सरकार द्वारा नेहरू रिपोर्ट की अनदेखी।
III. लाहौर अधिवेशन: 1929 में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की मांग की।
प्रश्न 11: सविनय अवज्ञा आंदोलन के विभिन्न चरण क्या थे?
उत्तर: चरण:
I. शुरुआती चरण: 1930 में नमक सत्याग्रह के साथ शुरू हुआ।
II. मध्य चरण: व्यापक गिरफ्तारियों और हड़तालों का समय।
III. पुनरारंभ: गांधी-इरविन समझौते के बाद आंदोलन का पुनर्जन्म।
प्रश्न 12: कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन क्यों शुरू किया?
उत्तर: निर्णय:
I. पूर्ण स्वराज: लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की मांग की गई।
II. असंतोष: ब्रिटिश नीतियों और सुधारों के प्रति बढ़ता असंतोष।
III. सत्याग्रह: अहिंसक सत्याग्रह के माध्यम से ब्रिटिश शासन को चुनौती देना।
प्रश्न 13: सविनय अवज्ञा आंदोलन के कार्यक्रम क्या थे?
उत्तर: कार्यक्रम:
I. नमक सत्याग्रह: नमक कानून का उल्लंघन करके स्वतंत्रता की मांग।
II. विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार: ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार।
III. सरकारी संस्थाओं का त्याग: सरकारी पदों, स्कूलों और अदालतों का बहिष्कार।
प्रश्न 14: कानून तोड़ने की नीति का सविनय अवज्ञा आंदोलन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: प्रभाव:
I. जन समर्थन: आम जनता को आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।
II. अंतर्राष्ट्रीय ध्यान: अहिंसक नागरिक अवज्ञा ने विश्व का ध्यान आकर्षित किया।
III. सरकारी दमन: इसने ब्रिटिश सरकार को कठोर कार्रवाई के लिए मजबूर किया।
प्रश्न 15: गांधी-इरविन समझौता क्या था और इसके परिणाम क्या रहे?
उत्तर: गांधी-इरविन समझौता:
I. समझौता: 1931 में गांधी और लॉर्ड इरविन के बीच हुआ, जिससे सविनय अवज्ञा आंदोलन को रोका गया।
II. परिणाम:
- राजनीतिक कैदियों की रिहाई: गिरफ्तार राजनीतिक कैदियों की रिहाई।
- गोलमेज सम्मेलन: गांधी को प्रथम गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए बुलाया गया।
- अस्थायी शांति: आंदोलन की गतिविधियों में कमी।
हालांकि, यह समझौता अस्थायी था और स्वतंत्रता की मांग जारी रही।
अध्याय 5: भारत छोड़ो आंदोलन
प्रश्न 1: गांधी जी का भारत छोड़ो आंदोलन पर क्या प्रभाव था?
उत्तर: गांधी जी का प्रभाव:
I. नेतृत्व: उनका नेतृत्व और व्यक्तित्व आंदोलन की दिशा निर्धारित करने में महत्वपूर्ण रहा।
II. अहिंसा और सत्याग्रह: गांधी जी के सिद्धांतों ने लोगों को शांतिपूर्ण विरोध के लिए प्रेरित किया।
III. जन समर्थन: उनकी उपस्थिति ने जन समर्थन को बढ़ाया, जिससे आंदोलन व्यापक हुआ।
IV. रणनीति: गांधी जी की रणनीतियों ने आंदोलन को संगठित और प्रभावी बनाया।
प्रश्न 2: ‘करो या मरो’ नारे का क्या महत्व था?
उत्तर: नारा – ‘करो या मरो’:
I. उद्देश्य: इस नारे ने स्वतंत्रता की मांग को अंतिम और निर्णायक बनाया।
II. प्रेरणा: यह नारा लोगों को पूर्ण समर्पण के लिए प्रेरित करता था।
III. साहस: यह संदेश देता था कि वापसी का कोई विकल्प नहीं है, जिसने साहस को जन्म दिया।
IV. एकजुटता: इसने भारतीयों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 3: विद्रोह का माहौल कैसे बना?
उत्तर: विद्रोह का माहौल:
I. राजनीतिक असंतोष: ब्रिटिश नीतियों और दमन ने असंतोष को बढ़ाया।
II. द्वितीय विश्व युद्ध: युद्ध के दौरान ब्रिटिश कमजोरी ने विद्रोह को प्रेरित किया।
III. जन जागरण: पिछले आंदोलनों ने जनता को राजनीतिक रूप से जागरूक किया।
IV. संचार: गांधी जी के संदेशों ने देशभर में विद्रोह का माहौल फैलाया।
प्रश्न 4: गांधी जी के उपवास का आंदोलन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: गांधी जी का उपवास:
I. नैतिक बल: उपवास ने गांधी जी की नैतिक शक्ति को बढ़ाया।
II. एकता: यह कार्य एकता और समर्पण का प्रतीक बना।
III. अंतर्राष्ट्रीय ध्यान: उपवास ने विश्व का ध्यान आकर्षित किया।
IV. सरकारी दबाव: इसने ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाया, हालांकि सीमित सफलता के साथ।
प्रश्न 5: समानान्तर सरकारों की भूमिका क्या थी?
उत्तर: समानान्तर सरकारें:
I. प्रशासनिक विकल्प: ब्रिटिश प्रशासन का वैकल्पिक रूप प्रस्तुत किया।
II. जन सहभागिता: स्थानीय स्तर पर जनता को शासन में शामिल किया।
III. प्रेरणा: ये सरकारें लोगों को स्वराज की संभावना दिखाती थीं।
IV. प्रतीक: ये सरकारें स्वतंत्रता के लिए एक शक्तिशाली प्रतीक बनीं।
प्रश्न 6: भारत छोड़ो आंदोलन के कारण क्या थे?
उत्तर: कारण:
I. ब्रिटिश नीतियों का असंतोष: भारतीयों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक असंतोष।
II. द्वितीय विश्व युद्ध: ब्रिटिश कमजोरी का लाभ उठाने की इच्छा।
III. कांग्रेस का संकल्प: कांग्रेस द्वारा पूर्ण स्वतंत्रता की मांग।
IV. जनता का समर्थन: जनता के बढ़ते राजनीतिक जागरण से आंदोलन को बल मिला।
प्रश्न 7: भारत छोड़ो आंदोलन की मुख्य घटनाएँ क्या थीं?
उत्तर: मुख्य घटनाएँ:
I. गांधी जी की घोषणा: 8 अगस्त 1942 को बंबई में भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा।
II. गिरफ्तारियाँ: सभी प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी।
III. हड़तालें: देशव्यापी हड़तालें और विरोध प्रदर्शन।
IV. हिंसा: कई स्थानों पर हिंसक घटनाएँ, जिसमें पुलिस फायरिंग भी शामिल थी।
प्रश्न 8: भारत छोड़ो आंदोलन का महत्व या सफलता क्या थी?
उत्तर: महत्व या सफलता:
I. जन आंदोलन: यह एक वास्तविक जन आंदोलन बना, जिसमें व्यापक जन सहभागिता थी।
II. ब्रिटिश सरकार का दबाव: ब्रिटिश सरकार पर राजनीतिक दबाव बढ़ा।
III. अंतर्राष्ट्रीय ध्यान: विश्व का ध्यान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की ओर गया।
IV. आत्मविश्वास: लोगों में स्वतंत्रता को प्राप्त करने का आत्मविश्वास बढ़ा।
प्रश्न 9: भारत छोड़ो आंदोलन की असफलता के कारण क्या थे?
उत्तर: असफलता के कारण:
I. कठोर दमन: ब्रिटिश सरकार ने कठोर उपाय किए, जिससे आंदोलन को दबाया गया।
II. नेतृत्व की कमी: प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी ने आंदोलन को बिना नेतृत्व के छोड़ दिया।
III. हिंसा: कुछ स्थानों पर हिंसा ने आंदोलन के अहिंसक स्वरूप को नुकसान पहुँचाया।
IV. विभाजन: हिंदू-मुस्लिम एकता की कमी और मुस्लिम लीग का विरोध।
प्रश्न 10: ‘करो या मरो’ नारे का प्रभाव क्या रहा?
उत्तर: नारे का प्रभाव:
I. मनोबल: यह नारा स्वतंत्रता संग्राम में लोगों का मनोबल बढ़ाता था।
II. रणनीति: इसने आंदोलन को एक अंतिम संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया।
III. प्रतिबद्धता: लोगों में स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्धता और समर्पण बढ़ा।
IV. विरासत: यह नारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की विरासत का अभिन्न हिस्सा बना।
प्रश्न 11: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कौन सी समानान्तर सरकारें बनीं?
उत्तर: समानान्तर सरकारें:
I. सतारा: यहाँ की समानान्तर सरकार ने ब्रिटिश प्रशासन को चुनौती दी।
II. मिदनापुर: बंगाल में मिदनापुर में स्थानीय प्रशासन का वैकल्पिक रूप।
III. तामलुक: पश्चिम बंगाल में तामलुक का प्रयोग स्वशासन के लिए।
IV. विभिन्न क्षेत्र: कई अन्य क्षेत्रों में भी ऐसी सरकारें बनीं, जो स्थानीय स्तर पर स्वतंत्रता का प्रतीक थीं।
प्रश्न 12: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कौन सी घटनाएँ प्रमुख रहीं?
उत्तर: प्रमुख घटनाएँ:
I. गांधी जी का भाषण: ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की बैठक में ऐतिहासिक भाषण।
II. हिंसा की घटनाएँ: बिहार, बंगाल, और उत्तर प्रदेश में हिंसा।
III. रेलवे हड़ताल: रेलवे कर्मचारियों की बड़ी हड़ताल।
IV. छात्र आंदोलन: छात्रों ने व्यापक रूप से हिस्सा लिया, शिक्षा संस्थानों का बहिष्कार किया।
प्रश्न 13: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान ब्रिटिश सरकार ने किस प्रकार की कार्रवाई की?
उत्तर: ब्रिटिश सरकार की कार्रवाई:
I. गिरफ्तारियाँ: प्रमुख नेताओं की तत्काल गिरफ्तारी।
II. दमन: हिंसक दमन, फायरिंग और लाठीचार्ज।
III. सेंसरशिप: मीडिया पर कड़ा नियंत्रण और सेंसरशिप।
IV. सैन्य उपस्थिति: सैन्य बलों का उपयोग व्यवस्था बनाए रखने के लिए।
प्रश्न 14: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गांधी जी की गिरफ्तारी का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर: गांधी जी की गिरफ्तारी का प्रभाव:
I. आंदोलन का प्रसार: उनकी गिरफ्तारी ने आंदोलन को और व्यापक बनाया।
II. असंतोष: यह कदम जनता में और अधिक असंतोष फैलाया।
III. नेतृत्व की कमी: आंदोलन में नेतृत्व की कमी महसूस हुई।
IV. अंतर्राष्ट्रीय सहानुभूति: गांधी जी की गिरफ्तारी ने विश्व स्तर पर सहानुभूति बढ़ाई।
प्रश्न 15: भारत छोड़ो आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को किस प्रकार आगे बढ़ाया?
उत्तर: स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाना:
I. जन सहभागिता: व्यापक जन सहभागिता ने स्वतंत्रता की मांग को मजबूत किया।
II. राजनीतिक जागरूकता: यह आंदोलन जनता को राजनीतिक रूप से और अधिक जागरूक बनाया।
III. ब्रिटिश नीति पर प्रभाव: ब्रिटिश सरकार को भारत के भविष्य पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया।
IV. प्रतीक: यह आंदोलन स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गया, जिसने आगे के संघर्षों को प्रेरित किया।
अध्याय 6: संवैधानिक संकट: क्रिप्स और कैबिनेट मिशन
प्रश्न 1: क्रिप्स मिशन के मुख्य प्रावधान कौन से थे?
उत्तर: मिशन के मुख्य प्रावधान:
I. स्वायत्तता: युद्ध के बाद, भारत को डोमिनियन स्टेटस देने की पेशकश।
II. संविधान निर्माण: भारतीयों द्वारा एक संविधान बनाने की व्यवस्था, जिसमें प्रांतों को विशेष अधिकार।
III. रक्षा और विदेशी मामले: युद्ध के दौरान रक्षा और विदेशी मामले ब्रिटिश नियंत्रण में रहने का प्रावधान।
IV. सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व: सांप्रदायिक समस्याओं के निपटारे के लिए प्रांतों को अलग-अलग समूह संरचना की स्वीकृति।
प्रश्न 2: क्रिप्स मिशन भारत में क्यों आया?
उत्तर: क्रिप्स मिशन के आगमन के कारण:
I. द्वितीय विश्व युद्ध: ब्रिटेन की जरूरत थी कि भारत अपने पूरे संसाधनों के साथ युद्ध में सहयोग करे।
II. राजनीतिक अस्थिरता: भारत में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता और क्विट इंडिया आंदोलन के बाद जनता के मनोबल को बढ़ाने की आवश्यकता।
III. अमेरिका का दबाव: अमेरिका ने ब्रिटेन को भारत में राजनीतिक सुधार करने के लिए प्रेरित किया।
IV. भारतीय सहयोग: भारतीय राजनीतिक नेताओं के साथ सहयोग सुनिश्चित करना ताकि युद्ध प्रयास में कोई रुकावट न आए।
प्रश्न 3: क्रिप्स मिशन का प्रस्ताव क्या था?
उत्तर: क्रिप्स मिशन का प्रस्ताव:
I. स्वशासन: युद्ध के बाद भारत को स्वशासन का अधिकार देने का प्रस्ताव।
II. संविधान सभा: एक संविधान सभा का गठन जो भारत का संविधान लिखेगी।
III. प्रांतीय स्वायत्तता: प्रांतों को अपना संविधान बनाने का अधिकार।
IV. रक्षा और विदेश मामले: युद्ध के दौरान ब्रिटिश ही इन मामलों का नियंत्रण रखेंगे।
प्रश्न 4: क्रिप्स मिशन के सुझाव या उपबंध क्या थे?
उत्तर: क्रिप्स मिशन के सुझाव या उपबंध:
I. स्वतंत्र संविधान: भारतीयों द्वारा स्वतंत्र भारत का संविधान बनाना।
II. सम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व: सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था को स्वीकार करना।
III. केंद्रीय सरकार: केंद्रीय सरकार के लिए न्यूनतम शक्तियों का प्रस्ताव।
IV. प्रांतीय स्वराज: प्रांतों को अधिक स्वायत्तता देने का सुझाव।
प्रश्न 5: क्रिप्स मिशन की प्रतिक्रिया किस प्रकार रही?
उत्तर: क्रिप्स मिशन की प्रतिक्रिया:
I. कांग्रेस: कांग्रेस ने इसे अपर्याप्त माना, क्योंकि पूर्ण स्वतंत्रता की मांग नहीं पूरी हो रही थी।
II. मुस्लिम लीग: मुस्लिम लीग ने भी इसे अस्वीकार किया, क्योंकि पाकिस्तान की मांग को नजरअंदाज किया गया।
III. अन्य: कई छोटे दलों और समुदायों ने भी अलग-अलग कारणों से इसे अस्वीकार किया।
IV. जनता: आम जनता में इसके प्रति उत्साह की कमी रही, क्योंकि यह उनकी आकांक्षाओं को पूरा नहीं करता था।
प्रश्न 6: क्रिप्स मिशन की असफलता के कारण क्या थे?
उत्तर: असफलता के कारण:
I. स्वतंत्रता की कमी: पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को पूरा नहीं किया गया।
II. सांप्रदायिक समस्या: सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का मुद्दा हल नहीं हुआ।
III. अपर्याप्त प्रावधान: प्रावधान भारतीय राजनीतिक मांगों के अनुरूप नहीं थे।
IV. युद्ध की स्थिति: युद्ध की स्थिति ने ब्रिटिश प्रतिबद्धता को सीमित कर दिया।
प्रश्न 7: क्रिप्स मिशन के दोष क्या थे?
उत्तर: क्रिप्स मिशन के दोष:
I. अधूरा स्वराज: पूर्ण स्वराज की जगह डोमिनियन स्टेटस की पेशकश।
II. अस्पष्टता: कई प्रावधानों में अस्पष्टता, जिससे भ्रम पैदा हुआ।
III. रक्षा और विदेश नियंत्रण: युद्ध के दौरान ब्रिटिश नियंत्रण का प्रावधान।
IV. सांप्रदायिक मुद्दा: सांप्रदायिक मुद्दों को पूरी तरह से नहीं सुलझाया गया।
प्रश्न 8: क्रिप्स मिशन का मूल्यांकन किस प्रकार हो सकता है?
उत्तर: मूल्यांकन:
I. असफलता के बावजूद प्रयास: यह भारतीय स्वतंत्रता की ओर ब्रिटिश की पहली ठोस पहल थी।
II. राजनीतिक चेतना: इसने भारतीय राजनीतिक चेतना को और बढ़ाया।
III. सीमित सफलता: यह संविधान सभा के विचार को प्रोत्साहित करने में सफल रहा।
IV. ब्रिटिश इरादा: यह दिखाया कि ब्रिटिश सरकार भारत के भविष्य पर विचार कर रही थी।
प्रश्न 9: कैबिनेट मिशन का भारत आगमन क्यों हुआ?
उत्तर: कैबिनेट मिशन का भारत आगमन:
I. राजनीतिक समाधान: भारत में बढ़ती राजनीतिक समस्याओं के लिए एक समाधान खोजना।
II. सत्ता हस्तांतरण: युद्ध के बाद भारत को सत्ता हस्तांतरित करने की योजना बनाना।
III. सांप्रदायिक मुद्दा: हिंदू-मुस्लिम समस्या को हल करने का प्रयास।
IV. कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौता: इन दोनों प्रमुख दलों के बीच समझौता कराना।
प्रश्न 10: कैबिनेट मिशन की सिफारिशें क्या थीं?
उत्तर: कैबिनेट मिशन की सिफारिशें:
I. एकल संघ: भारत के लिए एक एकल संघ की सिफारिश।
II. संविधान सभा: एक संविधान सभा का गठन जो नया संविधान लिखे।
III. समूह संरचना: प्रांतों को तीन समूहों में विभाजित करना।
IV. केंद्रीय सरकार: एक केंद्रीय सरकार जिसमें सीमित शक्तियाँ हों।
प्रश्न 11: कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव क्या थे?
उत्तर: कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव:
I. संघीय संरचना: भारत को संघीय राज्य के रूप में स्थापित करना।
II. प्रांतीय स्वायत्तता: प्रांतों को व्यापक स्वायत्तता देना।
III. सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व: सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के लिए एक समझौता प्रस्ताव।
IV. अंतरिम सरकार: एक अंतरिम सरकार की स्थापना जो संविधान सभा की स्थापना तक काम करे।
प्रश्न 12: कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों पर कैसी प्रतिक्रिया दी?
उत्तर: प्रतिक्रिया:
I. कांग्रेस: कांग्रेस ने प्रस्तावों को स्वीकार किया, लेकिन संघीय संरचना और प्रांतीय स्वायत्तता के मुद्दों पर आरक्षण रखा।
II. मुस्लिम लीग: मुस्लिम लीग ने प्रथमतः प्रस्तावों को स्वीकार किया, लेकिन बाद में पाकिस्तान की मांग को न माने जाने पर इसे अस्वीकार कर दिया।
III. समझौता: दोनों दलों के बीच समझौता नहीं हो पाया, जिसने समस्या को और जटिल बनाया।
IV. संशय: दोनों पक्षों में संशय रहा कि प्रस्ताव वास्तव में उनकी आकांक्षाओं को पूरा करेंगे या नहीं।
प्रश्न 13: कैबिनेट मिशन की असफलता के कारण क्या रहे?
उत्तर: कैबिनेट मिशन की असफलता के कारण:
I. सांप्रदायिक मतभेद: हिंदू-मुस्लिम समस्या का समाधान न हो पाना।
II. मुस्लिम लीग की असहमति: मुस्लिम लीग का पाकिस्तान की मांग पर अड़े रहना।
III. कांग्रेस का आरक्षण: कांग्रेस का संघीय संरचना और प्रांतीय स्वायत्तता पर आरक्षण।
IV. अपर्याप्त स्वीकृति: प्रस्तावों को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया जाना।
प्रश्न 14: कैबिनेट मिशन के गुण क्या थे?
उत्तर: कैबिनेट मिशन के गुण:
I. संघीय विचार: एक संघीय संरचना का प्रस्ताव जो विविधता को सम्मान देता था।
II. संविधान सभा: संविधान सभा की अवधारणा ने भारतीयों को स्वयं अपना संविधान लिखने का अधिकार दिया।
III. समझौता की कोशिश: सांप्रदायिक समस्याओं को सुलझाने का एक ईमानदार प्रयास।
IV. सत्ता हस्तांतरण: युद्ध के बाद भारत को सत्ता हस्तांतरित करने की एक ठोस योजना।
प्रश्न 15: कैबिनेट मिशन के दोष क्या थे?
उत्तर: कैबिनेट मिशन के दोष:
I. सांप्रदायिक समस्या: सांप्रदायिक समस्या का स्थायी समाधान नहीं दे पाया।
II. पाकिस्तान की मांग: पाकिस्तान की मांग को न मानना जो मुस्लिम लीग के लिए अस्वीकार्य था।
III. अस्पष्टता: कई प्रस्तावों में अस्पष्टता जिसने समझौते को जटिल बनाया।
IV. कांग्रेस-मुस्लिम लीग विरोध: दोनों पक्षों के बीच मतभेदों को कम न कर पाना।
अध्याय 7: सुभाष चन्द्र बोस एवं आजाद हिन्द फौज
प्रश्न 1: सुभाष चन्द्र बोस का प्रारम्भिक जीवन कैसा था?
उत्तर: प्रारम्भिक जीवन:
I. जन्म: सुभाष चन्द्र बोस 23 जनवरी 1897 को कटक, उड़ीसा में जन्मे।
II. शिक्षा: उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक किया और फिर कैंब्रिज विश्वविद्यालय से आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण की, लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया।
III. प्रभाव: उन पर स्वामी विवेकानंद का बहुत प्रभाव था, जिसने उन्हें राष्ट्रवाद के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
IV. परिवार: उनका परिवार अपेक्षाकृत सम्पन्न और शिक्षित था, जिसने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।
प्रश्न 2: सुभाष चन्द्र बोस का राजनीति में प्रवेश कैसे हुआ?
उत्तर: राजनीति में प्रवेश:
I. छात्र आंदोलन: कलकत्ता विश्वविद्यालय में छात्र आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी।
II. कांग्रेस में सम्मिलन: 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने।
III. देशबंधु चित्तरंजन दास: दास के संरक्षण में काम किया, जिन्होंने उन्हें राजनीतिक विचारों को व्यापक रूप दिया।
IV. बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी: बंगाल प्रांतीय कांग्रेस कमेटी में महत्वपूर्ण पदों पर रहे।
प्रश्न 3: गांधी जी से सुभाष चन्द्र बोस के मतभेद क्या थे?
उत्तर: मतभेद:
I. अहिंसा का दर्शन: बोस गांधी के अहिंसा के सिद्धांत से सहमत नहीं थे, उन्होंने सशस्त्र विद्रोह की वकालत की।
II. स्वराज की मांग: बोस पूर्ण स्वतंत्रता की तत्काल मांग करते थे, जबकि गांधी धीरे-धीरे स्वराज के पक्ष में थे।
III. राजनीतिक रणनीति: बोस की राजनीतिक रणनीति में समाजवाद और राष्ट्रीयकरण की प्रमुख भूमिका थी।
IV. कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव: 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में मतभेद और विवाद।
प्रश्न 4: फॉरवर्ड ब्लाक की स्थापना का क्या उद्देश्य था?
उत्तर: फॉरवर्ड ब्लाक की स्थापना:
I. वैकल्पिक नेतृत्व: कांग्रेस के भीतर एक वैकल्पिक नेतृत्व और विचारधारा स्थापित करना।
II. राष्ट्रवाद और समाजवाद: उदार राष्ट्रवाद और समाजवाद को बढ़ावा देना।
III. त्वरित स्वतंत्रता: पूर्ण स्वतंत्रता की त्वरित मांग।
IV. संगठन: कांग्रेस के अंदर एक मजबूत संगठन बनाना जो उनके विचारों का प्रतिनिधित्व करे।
प्रश्न 5: सुभाष चन्द्र बोस की वीर सावरकर से भेंट का क्या महत्व था?
उत्तर: वीर सावरकर से भेंट:
I. विचारधारा का आदान-प्रदान: दोनों नेताओं के बीच राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी विचारों का आदान-प्रदान।
II. सहयोग: स्वतंत्रता के लिए साझा प्रयासों और रणनीतियों की चर्चा।
III. हिंदू महासभा: बोस की सावरकर के हिंदू महासभा के विचारों के प्रति सम्मान।
IV. प्रेरणा: सावरकर के क्रांतिकारी विचारों से बोस को प्रेरणा मिली।
प्रश्न 6: सुभाष चन्द्र बोस की गिरफ्तारी किस प्रकार हुई?
उत्तर: गिरफ्तारी:
I. सविनय अवज्ञा आंदोलन: 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तारी।
II. बंगाल की गतिविधियाँ: बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियों के संदेह में कई बार गिरफ्तार हुए।
III. कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव: 1939 के चुनाव के बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार किया।
IV. पलायन: 1941 में उन्होंने कैद से भागकर जर्मनी और फिर जापान की ओर रुख किया।
प्रश्न 7: आजाद हिन्द फौज की स्थापना की पृष्ठभूमि क्या थी?
उत्तर: पृष्ठभूमि:
I. ब्रिटिश युद्ध बंदियों: द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों के ब्रिटिश सेना में बंदी होने की स्थिति।
II. रास बिहारी बोस: रास बिहारी बोस ने सबसे पहले इस विचार को आकार दिया।
III. जापानी समर्थन: जापान की सहायता से INA का पहला रूप स्थापित किया गया।
IV. स्वतंत्रता की आकांक्षा: भारतीयों की स्वतंत्रता की आकांक्षा जो इस फौज को मजबूत बनाती थी।
प्रश्न 8: सुभाष चन्द्र बोस का भारत से पलायन क्यों हुआ?
उत्तर: पलायन:
I. गिरफ्तारी: ब्रिटिश सरकार की गिरफ्त से बचने के लिए।
II. विदेशी सहायता: विदेशों से भारत की स्वतंत्रता के लिए सहायता और समर्थन जुटाने के लिए।
III. सैन्य प्रशिक्षण: आजाद हिन्द फौज के लिए सैन्य प्रशिक्षण और संगठन की आवश्यकता।
IV. राजनीतिक रणनीति: बाहर से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नए आयाम देने का प्रयास।
प्रश्न 9: सुभाष चन्द्र बोस की हिटलर से मुलाकात का क्या महत्व था?
उत्तर: हिटलर से मुलाकात:
I. सहायता प्राप्ति: जर्मनी से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए सैन्य और राजनीतिक सहायता प्राप्त करना।
II. रणनीति: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी के साथ रणनीतिक गठजोड़।
III. प्रचार: जर्मनी के प्रचार मशीन का उपयोग भारतीय स्वतंत्रता के लिए।
IV. मान्यता: नाजी जर्मनी से भारत की स्वतंत्रता के लिए अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करना।
प्रश्न 10: सुभाष चन्द्र बोस की लिबरेशन आर्मी क्या थी?
उत्तर: लिबरेशन आर्मी:
I. गठन: जर्मनी में भारतीय युद्ध बंदियों से बनाई गई।
II. उद्देश्य: भारत को मुक्त करने के लिए एक सैन्य इकाई का गठन।
III. प्रशिक्षण: जर्मनी में सैन्य प्रशिक्षण।
IV. सीमित सफलता: इस इकाई ने बहुत कम सफलता हासिल की, लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नैतिक बल को बढ़ाया।
प्रश्न 11: रास बिहारी बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना क्या थी?
उत्तर: रास बिहारी बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना:
I. मूल स्थापना: 1942 में जापान के समर्थन से पहली इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना।
II. लक्ष्य: भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करना।
III. भारतीय बंदियों: इसमें मुख्यतः भारतीय युद्ध बंदी शामिल थे।
IV. सुभाष चन्द्र बोस का आगमन: सुभाष चन्द्र बोस के आने के बाद इसे नई ऊर्जा और दिशा मिली।
प्रश्न 12: आजाद हिन्द फौज का भंग किया जाना क्यों हुआ?
उत्तर: भंग होना:
I. युद्ध का रुख: द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद स्थिति का बदलना।
II. संसाधनों की कमी: संसाधनों की कमी और जापानी सहायता का कम होना।
III. नेतृत्व की कमी: सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु के बाद नेतृत्व की कमी।
IV. ब्रिटिश कार्रवाई: ब्रिटिश सेना ने पुनः नियंत्रण हासिल किया।
प्रश्न 13: रास बिहारी द्वारा की गई अपील क्या थी?
उत्तर: अपील:
I. भारतीयों को एकजुट करना: विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया में रहने वाले भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए एकजुट करना।
II. सैन्य भर्ती: INA में भर्ती करने और सहयोग देने की अपील।
III. वित्तीय समर्थन: आर्थिक सहायता जुटाने की अपील।
IV. राजनीतिक समर्थन: भारतीय स्वतंत्रता के लिए राजनीतिक समर्थन जुटाना।
प्रश्न 14: सुभाष चन्द्र बोस का दक्षिण-पूर्व एशिया में आगमन क्यों महत्वपूर्ण था?
उत्तर: आगमन का महत्व:
I. नेतृत्व: INA को एक नया और प्रेरणादायक नेतृत्व मिला।
II. प्रेरणा: उनका आगमन भारतीय प्रवासियों में नई उम्मीद जगाई।
III. संगठन: आजाद हिन्द फौज का पुनर्गठन और व्यवस्थित रूप से संगठन।
IV. अंतरराष्ट्रीय मंच: उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक अंतरराष्ट्रीय मंच बनाया।
प्रश्न 15: सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज प्लाटून को कैसे संबोधित किया?
उत्तर: संबोधन:
I. प्रेरणादायक भाषण: “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” जैसे नारों के साथ प्रेरणादायक भाषण।
II. राष्ट्रवाद: भारतीय राष्ट्रवाद की भावना को जगाना।
III. एकता: हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना।
IV. बलिदान: स्वतंत्रता के लिए बलिदान की आवश्यकता को रेखांकित किया।
यह संबोधन न केवल सैनिकों को प्रेरित करता था बल्कि भारतीय स्वतंत्रता के लिए एक शक्तिशाली आह्वान भी था।
अध्याय 8: माउंटबेटन योजना, विभाजन और स्वतंत्रता
प्रश्न 1: माउंटबेटन योजना की पृष्ठभूमि क्या थी?
उत्तर: पृष्ठभूमि:
I. ब्रिटिश नीति: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन की कमजोर हुई स्थिति और भारत से निकलने की इच्छा।
II. राजनीतिक अस्थिरता: भारत में बढ़ती राजनीतिक अस्थिरता, सांप्रदायिक तनाव, और आंदोलनों की वृद्धि।
III. समय सारिणी: 1945 में क्लेमेंट एटली की घोषणा के बाद, ब्रिटिश सरकार ने एक स्पष्ट समय सीमा निर्धारित की।
IV. विभाजन की संभावना: मुस्लिम लीग की पाकिस्तान मांग के कारण विभाजन की संभावना बढ़ी।
प्रश्न 2: भारत की स्थिति कैसी थी जब माउंटबेटन योजना आई?
उत्तर: भारत की स्थिति:
I. सांप्रदायिक तनाव: हिंदू-मुस्लिम तनाव चरम पर, विशेषकर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच मतभेद।
II. राजनीतिक आंदोलन: अंतिम चरण में स्वतंत्रता आंदोलन, कांग्रेस, मुस्लिम लीग और अन्य दलों का सक्रिय संघर्ष।
III. द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव: युद्ध ने भारत की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया, जिससे ब्रिटिश सरकार पर दबाव बढ़ा।
IV. ब्रिटिश सत्ता का अंत: ब्रिटिश साम्राज्य का पतन और भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत।
प्रश्न 3: एटली की घोषणा क्या थी?
उत्तर: एटली की घोषणा:
I. स्वतंत्रता की घोषणा: 20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने घोषणा की कि ब्रिटेन भारत से नवंबर 1947 तक शासन हटा लेगा।
II. शक्ति हस्तांतरण: भारत को शक्ति हस्तांतरित की जाएगी, चाहे वह एक या अधिक राज्यों के रूप में हो।
III. प्रांतीय स्वायत्तता: प्रांतों को चुनने का अधिकार दिया गया कि वे किस राज्य में शामिल होना चाहते हैं।
IV. संवैधानिक व्यवस्था: संवैधानिक व्यवस्था के लिए भारतीय नेताओं को समय दिया गया।
प्रश्न 4: माउंटबेटन का निर्णय क्या था?
उत्तर: माउंटबेटन का निर्णय:
I. विभाजन को स्वीकार: मुस्लिम लीग की पाकिस्तान की मांग को स्वीकार करना और भारत के विभाजन को अनिवार्य मानना।
II. त्वरित स्वतंत्रता: स्वतंत्रता की प्रक्रिया को तेज करना, जिसके फलस्वरूप स्वतंत्रता की तारीख 15 अगस्त 1947 निर्धारित की गई।
III. प्रांतीय स्वतंत्रता: प्रांतों को अपना राज्य चुनने की स्वतंत्रता देना।
IV. शांतिपूर्ण संक्रमण: विभाजन के दौरान शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण की आवश्यकता पर जोर।
प्रश्न 5: माउंटबेटन योजना द्वारा प्रस्तावित प्रमुख तत्व क्या थे?
उत्तर: प्रमुख तत्व:
I. दो राष्ट्र: भारत और पाकिस्तान के रूप में दो स्वतंत्र राष्ट्रों की स्थापना।
II. सीमा आयोग: राधाकृष्णन बोर्डर कमीशन की स्थापना जो सीमाएं निर्धारित करेगा।
III. शक्ति का हस्तांतरण: शक्ति का हस्तांतरण 15 अगस्त 1947 को होना।
IV. रियासतों का विलय: रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का विकल्प देना।
प्रश्न 6: माउंटबेटन योजना की स्वीकृति कैसे हुई?
उत्तर: स्वीकृति:
I. कांग्रेस: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने विभाजन को दुखद प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया।
II. मुस्लिम लीग: मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए इसे स्वीकार किया।
III. ब्रिटिश सरकार: ब्रिटिश सरकार ने इस योजना को आधिकारिक तौर पर मंजूरी दी।
IV. समय का दबाव: समय की कमी और सांप्रदायिक तनाव ने सभी पक्षों को इस योजना को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया।
प्रश्न 7: माउंटबेटन की घोषणा और स्वतंत्रता कैसे हुई?
उत्तर: घोषणा और स्वतंत्रता:
I. घोषणा: 3 जून 1947 को माउंटबेटन ने विभाजन और स्वतंत्रता की घोषणा की।
II. स्वतंत्रता तिथि: 15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान को स्वतंत्र घोषित किया गया।
III. समारोह: दोनों देशों में स्वतंत्रता के समारोह आयोजित किए गए, जिसमें भारत में राष्ट्रीय ध्वज का फहराया जाना शामिल था।
प्रश्न 8: सुभाष चन्द्र बोस का भारत से पलायन क्यों हुआ?
उत्तर: पलायन:
I. गिरफ्तारी: ब्रिटिश सरकार की गिरफ्त से बचने के लिए।
II. विदेशी सहायता: विदेशों से भारत की स्वतंत्रता के लिए सहायता और समर्थन जुटाने के लिए।
III. सैन्य प्रशिक्षण: आजाद हिन्द फौज के लिए सैन्य प्रशिक्षण और संगठन की आवश्यकता।
IV. राजनीतिक रणनीति: बाहर से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नए आयाम देने का प्रयास।
प्रश्न 9: सुभाष चन्द्र बोस की हिटलर से मुलाकात का क्या महत्व था?
उत्तर: हिटलर से मुलाकात:
I. सहायता प्राप्ति: जर्मनी से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए सैन्य और राजनीतिक सहायता प्राप्त करना।
II. रणनीति: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी के साथ रणनीतिक गठजोड़।
III. प्रचार: जर्मनी के प्रचार मशीन का उपयोग भारतीय स्वतंत्रता के लिए।
IV. मान्यता: नाजी जर्मनी से भारत की स्वतंत्रता के लिए अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करना।
प्रश्न 10: सुभाष चन्द्र बोस की लिबरेशन आर्मी क्या थी?
उत्तर: लिबरेशन आर्मी:
I. गठन: जर्मनी में भारतीय युद्ध बंदियों से बनाई गई।
II. उद्देश्य: भारत को मुक्त करने के लिए एक सैन्य इकाई का गठन।
III. प्रशिक्षण: जर्मनी में सैन्य प्रशिक्षण।
IV. सीमित सफलता: इस इकाई ने बहुत कम सफलता हासिल की, लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नैतिक बल को बढ़ाया।
प्रश्न 11: रास बिहारी बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना क्या थी?
उत्तर: रास बिहारी बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना:
I. मूल स्थापना: 1942 में जापान के समर्थन से पहली इंडियन नेशनल आर्मी की स्थापना।
II. लक्ष्य: भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त करना।
III. भारतीय बंदियों: इसमें मुख्यतः भारतीय युद्ध बंदी शामिल थे।
IV. सुभाष चन्द्र बोस का आगमन: सुभाष चन्द्र बोस के आने के बाद इसे नई ऊर्जा और दिशा मिली।
प्रश्न 12: आजाद हिन्द फौज का भंग किया जाना क्यों हुआ?
उत्तर: भंग होना:
I. युद्ध का रुख: द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद स्थिति का बदलना।
II. संसाधनों की कमी: संसाधनों की कमी और जापानी सहायता का कम होना।
III. नेतृत्व की कमी: सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु के बाद नेतृत्व की कमी।
IV. ब्रिटिश कार्रवाई: ब्रिटिश सेना ने पुनः नियंत्रण हासिल किया।
प्रश्न 13: रास बिहारी द्वारा की गई अपील क्या थी?
उत्तर: अपील:
I. भारतीयों को एकजुट करना: विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया में रहने वाले भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए एकजुट करना।
II. सैन्य भर्ती: INA में भर्ती करने और सहयोग देने की अपील।
III. वित्तीय समर्थन: आर्थिक सहायता जुटाने की अपील।
IV. राजनीतिक समर्थन: भारतीय स्वतंत्रता के लिए राजनीतिक समर्थन जुटाना।
प्रश्न 14: सुभाष चन्द्र बोस का दक्षिण-पूर्व एशिया में आगमन क्यों महत्वपूर्ण था?
उत्तर: आगमन का महत्व:
I. नेतृत्व: INA को एक नया और प्रेरणादायक नेतृत्व मिला।
II. प्रेरणा: उनका आगमन भारतीय प्रवासियों में नई उम्मीद जगाई।
III. संगठन: आजाद हिन्द फौज का पुनर्गठन और व्यवस्थित रूप से संगठन।
IV. अंतरराष्ट्रीय मंच: उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक अंतरराष्ट्रीय मंच बनाया।
प्रश्न 15: सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज प्लाटून को कैसे संबोधित किया?
उत्तर: संबोधन:
I. प्रेरणादायक भाषण: सुभाष चन्द्र बोस ने अपने संबोधन में “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” जैसे प्रेरणादायक नारे दिए, जिसने सैनिकों में स्वतंत्रता के लिए समर्पण की भावना जगाई।
II. राष्ट्रवाद: उन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद को प्रोत्साहित किया और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष को एक जन-आंदोलन बनाने का आह्वान किया।
III. एकता: उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया, जोर देकर कहा कि स्वतंत्रता की लड़ाई साम्प्रदायिक भेदभाव से ऊपर उठकर सभी भारतीयों की है।
IV. बलिदान: स्वतंत्रता के लिए बलिदान की आवश्यकता को रेखांकित किया, सैनिकों को अपने जीवन को देश के लिए समर्पित करने के लिए प्रेरित किया।
BA 6th Semester History Important Question Answers
Era of Gandhi and Mass Movement (गांधी युग एवं जन आन्दोलन)
Unit 1: Entry of Gandhi and The Non Co-Operation Movement
1.1. गांधी जी का आगमन (Entry of Gandhi)
1.1.1. गांधी जी का भारतीय राजनीति में प्रवेश (Emergence of Gandhiji in Indian Politics)
1.1.2. चम्पारन, अहमदाबाद तथा खेड़ा में गांधी जी की उपलब्धियाँ (Achievements of Gandhi in Champaran, Ahmedabad and Kheda)
1.2. असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement)
1.2.1. असहयोग आंदोलन के मुख्य कारण (Main Causes of Non-Cooperation Movement)
1.2.2. असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव (Proposal for Non-Cooperation Movement)
1.2.3. प्रस्ताव का विरोध (Opposing Proposal)
1.2.4. विद्यार्थियों का निर्णय एवं रचनात्मक कार्य (Decision of Exclusion and Constructive Work)
1.2.5. आंदोलन की प्रगति एवं शिक्षा संस्थाओं का बहिष्कार (Progress of Movement and Boycott of Educational Institutions)
1.2.6. आंदोलन का चरमोत्कर्ष (Advancement of Movement)
1.2.7. चौरी-चौरा घटना (Chauri-Chaura Incident)
1.2.8. असहयोग आंदोलन वापस लेने पर नेताओं का विचार (Leaders’ Views on Withdrawal of Non-Cooperation Movement)
1.2.9. असहयोग आंदोलन का परिणाम (Impact of Non-Cooperation Movement)
1.2.10. असहयोग आंदोलन का महत्व (Importance of Non-Cooperation Movement)
Unit 2: Rise of Revolutionary Movement in India with Special Reference to HRA, HSRA and Trial of Bhagat Singh
2.1. भारत में क्रांतिकारी आंदोलन (Revolutionary Movement in India)
2.1.1. भारत में क्रांतिकारी आंदोलन की उत्पत्ति एवं विकास (Rise and Progress of Revolutionary Movement in India)
2.1.2. क्रांतिकारियों की कार्यप्रणाली (Modus Operandi of Revolutionaries)
2.1.3. क्रांतिकारी आंदोलन का लक्ष्य (Goals of Revolutionary Movement)
2.1.4. भारत में क्रांतिकारी आंदोलन के उदय के कारण (Reason of Rise of the Revolutionary Movement in India)
2.1.5. क्रांतिकारी आंदोलन की तात्कालिक असफलता के कारण (Momentary Failure of the Revolutionary Movement in India)
2.2. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (Hindustan Republican Association)
2.2.1. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की पृष्ठभूमि (Background of the Hindustan Republican Association)
2.2.2. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन (Formation of the Hindustan Republican Association)
2.2.3. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के उद्देश्य (Objectives of the Hindustan Republican Association)
2.2.4. क्रांतिकारी घोषणापत्र का प्रकाशन-दि रिवोल्युशनरी (Publication of Revolutionary Manifesto – The Revolutionary)
2.2.5. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य (Members of Hindustan Republican Association)
2.2.6. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की गतिविधियाँ (Activities of Hindustan Republican Association)
2.2.7. हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की आलोचना (Criticism of Hindustan Republican Association)
2.3. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन [Hindustan Socialist Republican Association (HSRA)]
2.3.1. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन (Formation of Hindustan Socialist Republican Association)
2.3.2. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की गतिविधियाँ (Activities of Hindustan Socialist Republican Association)
2.3.3. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की आलोचना (Criticism of Hindustan Socialist Republican Association)
2.4. भगत सिंह का मुकदमा (The Trial of Bhagat Singh)
2.4.1. भगत सिंह जी का प्रारंभिक जीवन (Early Life of Bhagat Singh)
2.4.2. राजनीतिक जीवन एवं संघर्ष (Political Life and Struggle of Bhagat Singh)
2.4.3. भगत सिंह का मुकदमा (Trial of Bhagat Singh)
Unit 3: Rise of Revolutionary Movement Outside India with Special Reference to Gadar Party
3.1. ग़दर पार्टी (Gadar Party)
3.1.1. ग़दर पार्टी की पृष्ठभूमि (Background of Gadar Party)
3.1.2. ग़दर क्रांतिकारी (Gadar Revolutionaries)
3.1.3. ग़दर पार्टी की विशेषताएँ (Features of Gadar Party)
3.1.4. ग़दर साप्ताहिक पत्र (Gadar Weekly Paper)
3.1.5. ग़दर पार्टी में ग़दर क्रांतिकारियों के द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध स्वतंत्रता की तैयारी (Preparations for Independence against British Empire by Gadar Revolutionaries in Gadar Party)
3.1.6. ग़दर पार्टी की गतिविधियाँ (Activities of Gadar Party)
3.1.7. ग़दर आन्दोलन की मुख्य घटनाएँ (Main Events of Gadar Movement)
3.1.8. ग़दर आन्दोलन का दमन (Suppression of Gadar Movement)
3.1.9. ग़दर पार्टी की उपलब्धियाँ (Achievements of Gadar Party)
3.1.10. ग़दर पार्टी की असफलता (Failures of Gadar Party)
Unit 4: Simon Commission, Nehru Report, Civil Disobedience Movement
4.1. साइमन कमीशन (Simon Commission)
4.1.1. परिचय (Introduction)
4.1.2. साइमन कमीशन का गठन (Formation of Simon Commission)
4.1.3. साइमन कमीशन के सदस्य (Members of Simon Commission)
4.1.4. साइमन कमीशन का आगमन एवं बहिष्कार (Arrival and Exclusion of Simon Commission)
4.1.5. साइमन कमीशन की सिफारिशें (Recommendations of Simon Commission)
4.1.6. साइमन कमीशन की रिपोर्ट की समीक्षा (Review of Simon Commission Report)
4.1.7. साइमन कमीशन एवं राष्ट्रीय आन्दोलन (Simon Commission and National Movement)
4.2. नेहरू रिपोर्ट (Nehru Report)
4.2.1. परिचय (Introduction)
4.2.2. नेहरू रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें (Main Recommendations of Nehru Report)
4.2.3. नेहरू रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया (Reaction on Nehru Report)
4.2.4. नेहरू रिपोर्ट का महत्व (Importance of Nehru Report)
4.2.5. साइमन कमीशन रिपोर्ट तथा नेहरू रिपोर्ट में अन्तर (Difference Between Simon Commission and Nehru Report)
4.3. सविनय अवज्ञा आन्दोलन (Civil Disobedience Movement)
4.3.1. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण (Causes of Civil Disobedience Movement)
4.3.2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के विभिन्न चरण (Different Phases of Civil Disobedience Movement)
4.3.3. कांग्रेस द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निर्णय (Congress’s Decision to Start Civil Disobedience Movement)
4.3.4. सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम (Programs of Civil Disobedience Movement)
4.3.5. कानून तोड़ने की नीति (Policy of Breaking Laws)
4.3.6. कानून तोड़ने की नीति का आन्दोलन पर प्रभाव (Impact of Policy of Breaking Laws in Movement)
4.3.7. सविनय अवज्ञा आन्दोलन की प्रगति (Progress of Civil Disobedience Movement)
4.3.8. सविनय अवज्ञा आन्दोलन का दमन (Suppression of Civil Disobedience Movement)
4.3.9. प्रथम गोलमेज सम्मेलन (First Round Table Conference)
4.3.10. गांधी–इरविन समझौता (Gandhi-Irwin Pact)
4.3.11. द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (Second Round Table Conference)
4.3.12. साम्प्रदायिक निर्णय (Communal Award)
4.3.13. सविनय अवज्ञा आन्दोलन का पुनः प्रारम्भ (Restart of Civil Disobedience Movement)
4.3.14. तृतीय गोलमेज सम्मेलन (Third Round Table Conference)
4.3.15. सविनय अवज्ञा आन्दोलन की असफलता (Failure of Civil Disobedience Movement)
4.3.16. सविनय अवज्ञा आन्दोलन का महत्व (Importance of Civil Disobedience Movement)
Unit 5: The Quit India Movement
5.1. भारत छोड़ो आन्दोलन (Quit India Movement)
5.1.1. गाँधी जी का प्रभाव (Influence of Gandhiji)
5.1.2. गाँधी जी का नारा – ‘करो या मरो’ (Gandhi Ji Slogan: Do or Die)
5.1.3. विद्रोह का माहौल (Atmosphere of Revolt)
5.1.4. गाँधी जी का उपवास (Gandhiji’s Fasting)
5.1.5. समानान्तर सरकारें (Parallel Government)
5.1.6. भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण (Causes of Quit India Movement)
5.1.7. भारत छोड़ो आन्दोलन की मुख्य घटनाएँ (Main Events of the Quit India Movement)
5.1.8. भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्व अथवा सफलताएँ (Significance or Success of Quit India Movement)
5.1.9. भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के कारण (Reasons for Failure of Quit India Movement)
Unit 6: Constitutional Crisis: Cripps and Cabinet Mission
6.1. क्रिप्स मिशन (Cripps Mission)
6.1.1. मिशन के मुख्य प्रावधान (Main Provisions of Mission)
6.1.2. भारत में क्रिप्स मिशन के आगमन के कारण (Reasons for Arrival of Cripps Mission in India)
6.1.3. क्रिप्स मिशन का प्रस्ताव (Proposal of Cripps Mission)
6.1.4. क्रिप्स मिशन के सुझाव या उपबंध (Cripps Mission’s Suggestions or Provisions)
6.1.5. क्रिप्स मिशन की प्रतिक्रिया (Response to Cripps Mission)
6.1.6. क्रिप्स मिशन की असफलता के कारण (Reasons for Failure of Cripps Mission)
6.1.7. क्रिप्स मिशन के दोष (Demerits of Cripps Mission)
6.1.8. क्रिप्स मिशन का मूल्यांकन (Evaluation of Cripps Mission)
6.2. कैबिनेट मिशन (Cabinet Mission)
6.2.1. कैबिनेट मिशन का भारत आगमन (Arrival of Cabinet Mission in India)
6.2.2. कैबिनेट मिशन की सिफारिशें (Recommendations of Cabinet Mission)
6.2.3. कैबिनेट मिशन के प्रस्ताव (Proposals of Cabinet Mission)
6.2.4. कैबिनेट मिशन के प्रस्तावों पर कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया (Reaction of Congress and Muslim League to Cabinet Mission Proposals)
6.2.5. कैबिनेट मिशन की असफलता (Failure of Cabinet Mission)
6.2.6. कैबिनेट मिशन के गुण (Merits of Cabinet Mission)
6.2.7. कैबिनेट मिशन के दोष (Demerits of Cabinet Mission)
Unit 7: Subhas Chandra Bose and Indian National Army
7.1. सुभाष चन्द्र बोस (Subhas Chandra Bose)
7.1.1. सुभाष चन्द्र बोस का प्रारम्भिक जीवन (Early Life of Subhas Chandra Bose)
7.1.2. राजनीति में प्रवेश (Entry into Politics)
7.1.3. गाँधी जी से मतभेद (Differences with Gandhiji)
7.1.4. फॉरवर्ड ब्लाक की स्थापना (Establishment of Forward Block)
7.1.5. वीर सावरकर से भेंट (Meeting with Veer Savarkar)
7.1.6. सुभाष चन्द्र बोस की गिरफ्तारी (Arrest of Subhash Chandra Bose)
7.2. आजाद हिन्द फौज (Indian National Army)
7.2.1. आजाद हिन्द फौज की स्थापना की पृष्ठभूमि (Background of Establishment of Indian National Army)
7.2.2. सुभाष चन्द्र बोस का भारत से पलायन (Migration from India of Subhash Chandra Bose)
7.2.3. हिटलर से मुलाकात (Meeting Hitler)
7.2.4. सुभाष चन्द्र बोस की लिबरेशन आर्मी (Subhash Chandra Bose’s Liberation Army)
7.2.5. रास बिहारी बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना (Rash Behari Bose’s Indian Army)
7.2.6. आजाद हिन्द फौज का भंग किया जाना (Disbandment of Indian National Army)
7.2.7. रास बिहारी द्वारा की गई अपील (Appeal Made by Rash Behari)
7.2.8. सुभाष चन्द्र बोस दक्षिण-पूर्व एशिया में आगमन (Subhash Chandra Bose’s Arrival in South East Asia)
7.2.9. सुभाष चन्द्र बोस का आजाद हिन्द फौज प्लाटून को सम्बोधन (Subhash Chandra Bose’s Address to Azad Hind Fauj Platoon)
7.2.10. सुभाष चन्द्र बोस द्वारा भारतीयों के लिए मर्मस्पर्शी सन्देश (Touching Message for Indians by Subhash Chandra Bose)
7.2.11. सुभाष चन्द्र बोस द्वारा लोकप्रिय नारों का निर्माण (Creation of Popular Slogans by Subhash Chandra Bose)
7.2.12. अस्थायी भारत सरकार का गठन (Formation of Temporary Government of India)
7.2.13. सुभाष चन्द्र बोस द्वारा आजाद हिन्द फौज का पुनर्गठन (Reorganization of Indian National Army by Subhash Chandra Bose)
7.2.14. दक्षिण पूर्व-एशियाई देशों के प्रवासी भारतीयों के प्रयास (Efforts of Diaspora of South East Asia Countries)
7.2.15. सुभाष चन्द्र बोस के अंतिम दिन (Last Days of Subhash Chandra Bose)
7.2.16. आजाद हिन्द फौज की सफलताओं का मूल्यांकन (Evaluation of Success of Indian National Army)
7.2.17. सुभाष चन्द्र बोस की राजनीतिक यथार्थवादिता (Political Realism of Subhash Chandra Bose)
7.2.18. सुभाष चन्द्र बोस की राष्ट्रवादिता (Nationalism of Subhash Chandra Bose)
Unit 8: Mountbatten Plan, Partition and Independence
8.1. माउंटबेटन योजना (Mountbatten Plan)
8.1.1. माउंटबेटन योजना की पृष्ठभूमि (Background of Mountbatten Plan)
8.1.2. भारत की स्थिति (Situation of India)
8.1.3. एटली की घोषणा (Attlee’s Announcement)
8.1.4. माउंटबेटन का निर्णय (Mountbatten’s Decision)
8.1.5. माउंटबेटन योजना द्वारा प्रस्तावित प्रमुख तत्व (Key Elements Proposed by the Mountbatten Plan)
8.1.6. योजना की स्वीकृति (Approval of Plan)
8.1.7. माउंटबेटन की घोषणा एवं स्वतंत्रता (Declaration of Mountbatten and Freedom)
8.2. भारत का विभाजन (Partition of India)
8.2.1. पाकिस्तान की मांग (Demand of Pakistan)
8.2.2. भारत का विभाजन (Partition of India)
8.2.3. भारत विभाजन का प्रस्ताव अथवा माउंटबेटन योजना (Proposal for Partition of India or Mountbatten Plan)
8.2.4. माउंटबेटन योजना की स्वीकृति (Approval of Mountbatten Plan)
8.2.5. नेहरू द्वारा माउंटबेटन योजना का विरोध (Nehru’s Opposition to Mountbatten Plan)
8.2.6. भारत विभाजन योजना का पुनर्निर्माण (Reconstruction of India Partition Plan)
8.2.7. कांग्रेस अधिवेशन में भारत-विभाजन प्रस्ताव को स्वीकृति (India’s Partition Proposal Approved in Congress Session)
8.2.8. भारत विभाजन पर प्रतिक्रियाएँ (Reactions to Partition of India)
8.2.9. भारत विभाजन के कारण (Reasons for Partition of India)
8.3. भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 (Indian Independence Act, 1947)
8.3.1. भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 की पृष्ठभूमि (Background of Indian Independence Act, 1947)
8.3.2. अधिनियम की प्रमुख धाराएँ (Major Sections of the Act)
8.3.3. अधिनियम का मूल्यांकन (Evaluation of the Act)
thanks!
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