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10th Biology notes in Hindi
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10th Biology notes in Hindi For UP Board, Bihar, MP, Rajasthan, Chhattisgarh, Ncert & CBSE :- इस लेख में हाई स्कूल जीव विज्ञानं नोट्स दिया गया है | यह नोट्स परीक्षा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है | आप इस विज्ञानं नोट को पीडीऍफ़ में भी डाउनलोड कर सकते हैं | Pdf Download लिंक इस पेज में सबसे नीचे दिया गया है |
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10th Biology notes in Hindi
1- त्वक पतन :- त्वचा की अधिचर्म की सबसे बाह्य स्तरीय मृत कोशिकाएं (कार्नियम स्तर की कोशिकाएं) समय-समय पर शरीर से पृथक होती रहती हैं इस प्रक्रिया को त्वक पतन कहते हैं |
2- संवेदांग(ज्ञानेन्द्रिय) :- बाह्य वातावरण या शरीर के अन्त: वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को ग्रहण करने वाले अंग संवेदांग कहलाते हैं | जैसे- त्वचा, नासिका, जीभ, नेत्र, कर्ण आदि |
3- त्वचा के कार्य :-
i) बाह्य आघातों से शरीर की सुरक्षा करना |
ii) जीवाणु आदि के संक्रमण से सुरक्षा |
iii) पसीने के रूप में उत्सर्जन में सहायक |
iv) शरीर के ताप का नियंत्रण करना |
4- स्वस्थ मनुष्य का ताप 37० C या 38०F होता है |
5- सिवेसियस ग्रंथियां रोम पुटिकाओं से लगी होती हैं | इनसे तैलीय पदार्थ सीबम श्रावित होता है जो बालों को चिकना एवं जलरोधी बनाये रखता है |
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6- मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रंथियां पाई जाती है –
i) अधोजिह्वा
ii) अधोहनु
iii) कर्णमूल
7- कर्णमूल ग्रंथियों में संक्रमण से कर्णमूल रोग(Mumps) हो जाता है |
8- लार में टाईलीन एवं लाइसोजाईम नामक एंजाइम पाया जाता है | टाईलीन मन्ड (स्टार्च) को शर्करा में बदलता है तथा लाइसोजाईम जीवाणुओं का भक्षण करता हैं |
9- मनुष्य के दात गर्तदंती , द्विवारदंती तथा विषमदन्ती होते हैं | ये चार प्रकार के होते हैं –
i) कृन्तक (काटने का कार्य)
ii) रदनक(चीरने-फाड़ने का कार्य)
iii) अग्रचवर्णक (चबाने तथा पिसने का कार्य)
iv) चवर्णक (चबाने तथा पीसने का कार्य)
10- जठर ग्रंथियां अमाशय में स्थित होती हैं जिनसे जठर रस स्रावित होता है | जठर रस में पेप्सिन(प्रोटीन पाचक) , लाइपेज(वसा पाचक) तथा रेनिन एंजाइम पाए जाते हैं |
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11- पीत रस यकृत से बनकर पित्ताशय में इकठ्ठा होता है | यह वसा का इमल्सीकरण करता है तथा भोजन के माध्यम को क्षारीय बनाता है |
12- मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि यकृत है | जिसका भार लगभग 1.5 किग्रा है | यकृत हानिकारक अमोनिया को यूरिया में बदल देता है |
13- अग्नाशय रस अग्नाशय ग्रंथि से स्रावित होता है | अग्नाशय रस में निम्नलिखित एंजाइम पाए जाते हैं –
i) ट्रिप्सिन तथा काइमोट्रिप्सिन (प्रोटीन पाचक)
ii) लाइपेज (वसा पाचक)
iii) एमाइलेज (मन्ड पाचक)
iv) न्युक्लिएज एंजाइम
14- अग्नाशय ग्रंथि की लैंगरहैन्स की द्विपिकाओं की बीटा कोशिकाओं द्वारा इन्सुलिन नामक हार्मोन स्रावित होता है जिसकी कमी से मधुमेह नामक रोग हो जाता है | लैंगरहैन्स की अल्फ़ा कोशिकाओं द्वारा ग्लुकागान नामक हार्मोन का स्रावण होता है |
15- प्रोटीन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम मुल्डर ने किया था | प्रोटीन के निर्माण की इकाई एमिनो अम्ल है | यह 20 प्रकार का होता है |
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16- यकृत का कार्य –
i) पित्त रस का निर्माण ताकि भोजन का माध्यम क्षारीय बन जाये |
ii) वसा का ईमल्सिकरण करना |
iii) आवश्यकता से अधिक ग्लूकोज को ग्लाइकोजन के रूप में संचित करना |
iv)हिपैरिन का स्रावण करना |
v) हानिकारक जीवाणुओं का भक्षण करना |
vi) विटामिन A का संश्लेषण करना |
17- विटामिन शब्द का प्रयोग सबसे पहले फूंक ने किया तथा विटामिन मत हाकिन्स तथा फूंक ने प्रस्तुत किया था |
18- i) जल में घुलनशील विटामिन – B तथा C
ii) वसा में घुलनशील विटामिन – विटामिन A, D, E तथा K
19- विटामिन A की कमी से रतौंधी रोग हो जाता है |
20- विटामिन D की कमी से सुखा(रिकेट्स) तथा आस्टियोमैलेसिया रोग हो जाता है |
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21- विटामिन K की कमी से हिमोफोलिया (रक्त का न जमना) नामक रोग हो जाता है |
22- विटामिन C की कमी से स्कर्वी नामक रोग हो जाता है | विटामिन C खट्टे फलों में अधिक मिलता है |
23- विटामिन B1 की कमी से बेरी-बेरी नामक रोग हो जाता है |
24- अवशोषण – छोटी आंत द्वारा भोज्य पदार्थों का विसरित होकर रक्त में मिलना अवशोषण कहलाता है | अवशोषण की क्रिया में सुक्ष्मांकुर सहायता करते हैं |
25- स्वांगीकरण – अवशोषित भोज्य पदार्थ कोशिकाओं में पहुचकर कोशाद्रव्य के ही अंश बनकर उसमे विलीन हो जाते हैं | इस क्रिया को स्वांगीकरण कहते हैं |
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26- कोशिकीय स्वसन – कोशिका में भोज्य पदार्थ(ग्लूकोज) के जैव रासायनिक आक्सीकरण को कोशिकीय श्वसन कहते हैं | श्वसन की क्रिया माइटोकान्ड्रिया में होती है | ग्लूकोज के एक अणु के आक्सीकरण से 38 ATP के अणु प्राप्त होते हैं |
27- i) ATP को उर्जा का सिक्का कहा जाता है | इसका पूरा नाम एडिनोसिन ट्राई फास्फेट है |
ii) ADP का पूरा नाम एडिनोसिन डाई फास्फेट है |
iii) NADP का पूरा नाम निकोटिनामाइड एडीनिन डाईन्युक्लियोटाइड फास्फेट है |
28- एक स्वस्थ मनुष्य एक मिनट में 12 – 15 बार साँस लेता है |
29- मनुष्य के फेफड़ों की सम्पूर्ण क्षमता 5800 लीटर होती है |
30- ग्लाइकोलिसिस की क्रिया कोशिकाद्रव्य में होती है तथा इसके अन्त में ग्लूकोज से पाइरुविक अम्ल के दो अणु बनते हैं |
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31- क्रेब्स चक्र की क्रिया माइटोकान्ड्रिया में पूरी होती है |
32- आक्सीश्वसन तथा अनाक्सीश्वसन में अंतर
आक्सीश्वसन | अनाक्सीश्वसन |
1- इस क्रिया में O2 की आवश्यकता होती है | | 1- इस क्रिया में O2 की आवश्यकता नहीं होती है | |
2- इस क्रिया में 38 ATP बनते हैं | | 2- इस क्रिया में 2 ATP बनते हैं | |
3- इस क्रिया में CO2 अधिक मात्रा में निकलती है | | 3- इस क्रिया में CO2 कम मात्रा में निकलती है | |
4- ग्लूकोज के पूर्ण आक्सीकरण में 673 KCal ऊर्जा मुक्त होती है | | 4- ग्लूकोज के आंशिक आक्सीकरण में 21 KCal ऊर्जा मुक्त होती है | |
33- श्वसन तथा श्वासोच्छ्वास में अंतर
श्वसन | श्वासोच्छ्वास |
1- यह एक अपचयी क्रिया है , जिसमें भोज्य पदार्थ का आक्सीकरण होता है | | 1- नि:श्वसन में वातावरण से वायु श्वसन अंगो तक पहुँचती है | |
2- आक्सीकरण के फलस्वरूप CO2 तथा जलवाष्प बनते हैं तथा ऊर्जा मुक्त होती है | | 2- उच्छ्वसन में श्वसन अंगो से CO2 तथा जलवाष्प शरीर से बाहर चली जाती है | |
3- इस क्रिया में ऊर्जा मुक्त होती है | | 3- इस क्रिया में ऊर्जा मुक्त नहीं होती है | |
34- दो तरल उत्तकों के नाम लिखिए –
i) रुधिर
ii) लसिका
35- रुधिर की उत्पत्ति भ्रूण के मिसोडर्म से होती है |
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36- रुधिर परिसंचरण तंत्र की खोज विलियम हार्वे ने किया था |
37- रक्त दाब(चाप) को स्फिग्मोमैनोमीटर द्वारा मापा जाता है | एक स्वस्थ मनुष्य का रक्तचाप 120/80 mmHG होता है |
38- मनुष्य के ह्रदय में चार वेश्म(कक्ष) होते हैं | दो अलिंद तथा दो निलय |
39- शरीर के विभिन्न भागों से अशुद्ध रुधिर दायें निलय में पहुचता है तथा दायें निलय से शुद्ध रुधिर पल्मोनरी (फुप्फुस) धमनी द्वारा फेफड़ो में शुद्ध होने के लिए भेज दिया जाता है |
40- दायें अलिंद-निलय छिद्र पर स्थित कपाट को त्रिवलन कपाट कहते हैं यह कपाट रक्त को अलिंद से निलय को ओर तो जाने देता है लेकिन वापस अलिंद में नहीं आने देता |
41- पल्मोनरी (फुप्फुस) शिरा में शुद्ध रुधिर तथा पल्मोनरी धमनी में अशुद्ध रुधिर पाया जाता है |
42- ह्रदय में केवल ह्र्द पेशियाँ पाई जाती हैं | एक स्वस्थ मनुष्य का ह्रदय एक मिनट में 70-75 बार धडकता है |
43- धमनी तथा शिरा में अंतर
धमनी | शिरा |
1- धमनी की भित्ति मोटी होती है | | 1- शिरा की भित्ति पतली होती है | |
2- इसकी गुहा संकरी होती है | | 2- इसकी गुहा चौड़ी होती है | |
3- इनमें कपाट नहीं होते हैं | | 3- इनमें कपाट होते हैं | |
4- इसमें शुद्ध रक्त बहता है, पल्मोनरी धमनी को छोड़कर | | 4- इनमें अशुद्ध रक्त बहता है , पल्मोनरी शिरा को छोड़कर | |
5- रक्त अत्यधिक दबाव के साथ बहता है | | 5- रक्त धीमी गति से बहता है | |
44- रक्त तथा लसिका में अंतर
रक्त | लसिका |
1- यह लाल रंग का तरल होता है | | 1- यह रंगहीन तरल होता है | |
2- लाल रुधिराणु(RBC) पाए जाते हैं | | 2- लाल रुधिराणु (RBC) नहीं पाए जाते हैं | |
3- श्वेत रुधिराणु (WBC) कम , न्यूट्रोफिल्स अधिक होते हैं | | 3- श्वेत रुधिराणु तथा लिम्फोसाइट अधिक होते हैं | |
4- O2 और पोषक पदार्थ अधिक मात्रा में होते हैं | | 4- O2 और पोषक पदार्थ कम मात्रा में होते हैं | |
45- लाल रुधिर कणिकाओं में हिमोग्लोबिन पाया जाता है जिसके कारण रुधिर का रंग लाल दिखाई देता है | हिमोग्लोबिन का प्रमुख कार्य आक्सीजन का परिवहन करना है |
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46- रक्त के कार्य –
i) आक्सीजन का परिवहन करना
ii) CO2 का परिवहन करना
iii) पोषक पदार्थों को विभिन्न कोशिकाओं तक पहुचाना |
iv) उत्सर्जी पदार्थों , हार्मोन आदि का परिवहन करना
v) शरीर के ताप का नियमन करना
vi) चोट का उपचार करना
vii) हानिकारक जीवाणुओं का भक्षण करना
47- लाल रुधिर कणिकाओं का निर्माण लाल अस्थिमज्जा में होता है | इनका जीवनकाल लगभग 120 दिन होता है | स्तनधारियो में लाल रुधिर कणिकाएं केन्द्रक विहीन होती हैं | ऊंट तथा लामा को छोड़कर | यह श्वेत रुधिर कणिकाओं का भक्षण करती हैं |
48- रक्त प्लेटलेट्स रुधिर के जमने में सहायक होती है |
49- मनुष्य तथा केचुएँ में बंद प्रकार का रुधिर परिसंचरण तंत्र पाया जाता है |
50- प्लाज्मा रुधिर का तरल भाग होता है | यह रुधिर का 55% होता है | प्लाज्मा में लगभग 90% जल होता है |
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51- रुधिर वर्ग की खोज कार्ल लैंडस्टीनर ने किया तथा रुधिर को चार वर्गों में बाटा |
52- AB रुधिर वर्ग सर्वग्राही है | इनमें A तथा B दोनों प्रतिजन पाए जाते हैं किन्तु कोई प्रतिरक्षी नहीं पाया जाता है |
53- रुधिर वर्ग O सर्वदाता है क्योकि इसमें कोई प्रतिजन नहीं पाया जाता , लेकिन इसमें दोनों a तथा b प्रतिरक्षी पाए जाते हैं |
54- रक्त का थक्का ज़माने में थ्राम्बिन प्रोटीन एवं Ca++ आवश्यक होते हैं |
55- ह्रदय चारो ओर से ह्रदयवर्णी (पेरीकार्डियम) झिल्ली से घिरा रहता है , जिसमें ह्रदयवर्णी (पेरीकार्डियल) द्रव भरा रहता है जो ह्रदय को घर्षण से बचाता है |
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56- प्रकाश संश्लेषण – हरे पौधे(क्लोरोफिलयुक्त) जल एवं CO2 लेकर प्रकाश की उपस्थिति में कार्बोहाईड्रेट्स का निर्माण करते हैं इस क्रिया में O2 गैस निकलती है |
57- प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में आक्सीजन गैस जल के आक्सीकरण से निकलती है |
58- प्रकाश अभिक्रिया(हिल अभिक्रिया) हरित लवक के ग्रेनम तथा अप्रकाश अभिक्रिया(कैलविन चक्र) हरित लवक के स्ट्रोमा में होती है |
59- वाष्पोत्सर्जन – पौधे के वायुवीय भागों द्वारा जल का वाष्प में बदलना वाष्पोत्सर्जन कहलाता है | वाष्पोत्सर्जन के कारण पौधे का ताप सामान्य बना रहता है | वाष्पोत्सर्जन की दर ताप , आर्द्रता , प्रकाश , वायु आदि पर निर्भर करती है |
60- वाष्पोत्सर्जन की दर को मापने वाले उपकरण को पोटोमीटर कहते हैं |
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61- रंध्र – पत्तियों के सतह पर रंध्रों की संख्या औसतन 250-300 /वर्ग मि० मि० होती है | रंध्र का निर्माण एक जोड़ी रक्षक(द्वार) कोशिकाओं द्वारा होता है | रक्षक कोशिकाओं में एक केन्द्रक होता है तथा हरित लवक पाए जाते हैं | रक्षक कोशिकाएं सहायक कोशिकाओं से घिरी रहती है | रक्षक कोशिकाओं के स्फीति होने से रंध्र खुल जाते हैं और शलथ होने पर बंद हो जाते हैं | रंध्र प्राय: दिन में खुले रहते हैं रात में बन्द रहते हैं |
62- रंध्र के कार्य –
i) CO2 तथा O2 का आदान-प्रदान करना |
ii) वाष्पोत्सर्जन की क्रिया करना |
63- बिंदुस्राव – जल रंध्रो द्वारा कोशारस के बाहर निकलने की क्रिया को बिंदुस्राव कहते हैं | जल रंध्र सदैव खुले रहते हैं | यह क्रिया वायुमंडल में अधिक आर्द्रता के कारण होती है |
64- रसारोहण – पौधों में गुरुत्वाकर्षण के विपरीत कोशारस के उपर चढ़ने की क्रिया को रसारोहण कहते हैं | यह क्रिया जाइलम वाहिनियों एवं वाहिकाओं द्वारा होती है |
65- रसारोहण के सम्बन्ध में डिक्सन तथा जौली का सिद्धांत – इसे वाष्पोत्सर्जन- ससंजन तनाव सिद्धांत भी कहते हैं | यह सिद्धांत तीन तथ्यों पर आधारित है –
i) जाइलम वाहिकाओं एवं वाहिनियों में जल के अटूट स्तम्भ होते हैं |
ii) जल अणुओं के मध्य लगभग 350 वायुमंडल दाब के बराबर का ससंजन बल होता है |
iii) वाष्पोत्सर्जन के कारण वाष्पोत्सर्जनाकर्षण उत्पन्न होता है | वाष्पोत्सर्जन आकर्षण के कारण जल स्तम्भ जड़ के जाइलम से पत्तियों के जाइलम तक उपर खिचता चला जाता है |
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66- खाद्यपदार्थों के स्थानान्तरण की मुंच परिकल्पना – इस परिकल्पना के अनुसार भोज्य पदार्थों का स्थानान्तरण अधिक सान्द्रता वाले स्थानों से कम सान्द्रता वाले स्थानों की ओर होता है |
67- पत्ती की मिसोफिल कोशिकाओं में निरंतर भोज्य पदार्थ बनने के कारण परासरण दाब अधिक बना रहता है | जड़ या भोजन दाब वाली मिसोफिल कोशिकाओं से जड़ की ओर फ्लोयम द्वारा प्रवाहित होता रहता है |
68- पौधों में जल एवं खनिज लवणों का परिवहन जाइलम उत्तक द्वारा तथा भोज्य पदार्थों का परिवहन फ्लोयम उत्तक द्वारा होता है |
69- जिबरेलिन हार्मोन की खोज कुरोसावा ने किया था | इसके प्रयोग से पौधों की लम्बाई तथा फलों का आकर बढ़ता है |
70- साइटोकाईनिन के कार्य –
i) कोशिका का विभाजन करना
ii) पुष्पन प्रारंभ करना
iii) अनिषेक फलन को प्रेरित करना |
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71- एथिलीन एकमात्र गैसीय अवस्था में पाया जाने वाला हार्मोन है | यह फलों को पकाने में सहायक है | यह वृद्धिरोधक एवं पत्ती पुष्प , फल के विलगन को प्रेरित करता है |
72- आक्सिन की खोज एफ० डब्लू० वेंट ने किया था | आक्सिन के कार्य निम्नलिखित हैं –
i) शीर्ष प्रभाविता
ii) खर-पतवार निवारण
iii) अनिषेक फलन(बीज रहित फल)
iv) विलगन को रोकना |
73- अनिषेक फलन – अनेक पौधों में आक्सिन का उपयोग करके बिना निषेचन के फल का निर्माण कराने की क्रिया को अनिषेक फलन कहते हैं | इस फल में बीज नहीं होते हैं | जैसे – अंगूर
74- अन्त:स्रावी ग्रंथि – नलिका विहीन ग्रंथियों को अन्त:स्रावी ग्रंथियां कहते हैं | इन ग्रंथियों से स्रावित रासायनिक पदार्थ को हार्मोन्स कहते हैं | अन्त:स्रावी ग्रंथियां जैसे- थायराइड ग्रंथि , पियूष ग्रंथि , अधिवृक्क ग्रंथि , पैराथायराइड ग्रंथि आदि |
75- अग्नाशय ग्रंथि एक मिश्रित ग्रंथि है | इस ग्रंथि की लैंगरहेन्स की द्विपिकाओं की बीटा कोशिकाओं द्वारा इन्सुलिन नामक हार्मोन स्रावित होता है जिसकी कमी से मधुमेह रोग हो जाता है तथा अल्फ़ा कोशिकाओं द्वारा ग्लुकागान हार्मोन स्रावित होता है | इन्सुलिन ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में बदलता है |
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76- पियूष ग्रंथि को मास्टर ग्रंथि कहते हैं | यह मस्तिष्क के हाइपोथैलमस में लगी रहती है इससे वेसोप्रेसिन, आक्सीटोसिन वृद्धि हार्मोन , प्रोलैक्टिन , पुटिका प्रेरक हार्मोन , थाइरोट्रापिक हार्मोन आदि स्रावित होते हैं |
77- बाह्यस्रावी तथा अन्त:स्रावी ग्रंथियों में अंतर –
बाह्यस्रावी | अन्त:स्रावी |
1- यह नलिकायुक्त होती है | | 1- ये नलकाविहीन होती है | |
2- इनसे लार , स्वेद , दुग्ध , सीबम , एन्जाइम आदि स्रावित होते हैं | | 2- इन ग्रंथियों से हार्मोन स्रावित होते हैं | |
3- स्रावित पदार्थ नलिकाओं द्वारा अंगो तक पहुंचते हैं | | 3- स्रावित पदार्थ रक्त के माध्यम से अंगों तक पहुंचते हैं | |
78- हार्मोन तथा एंजाइम में अंतर –
हार्मोन | एंजाइम |
1- ये अंत:स्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित होते हैं | | 1- ये बहिस्रावी ग्रंथियों द्वारा स्रावित होते हैं | |
2- ये प्रोटीन्स , एमिनो अम्ल , स्टेरॉइड्स आदि के व्युत्पन्न होते हैं | | 2- ये प्रोटीन्स होते हैं | |
3- इनका अणुभार बहुत कम होता है | | 3- इनका अणुभार बहुत अधिक होता है | |
4- ये उपापचयी क्रियाओं में सीधे भाग नहीं लेते हैं | | 4- ये उपापचयी क्रियाओं को उत्प्रेरित करते हैं | |
79- जनन के प्रकार –
i) द्विखंडन जैसे- जीवाणु , यीस्ट आदि
ii) मुकुलन जैसे- यीस्ट
iii) खण्डन जैसे- शैवाल, कवक आदि
iv) बीजाणु जनन जैसे – शैवाल, कवक
80- कायिक जनन –
i) जड़ो द्वारा जैसे- डहेलिया , सतावर , शकरकंद , परवल इत्यादि
ii) तने द्वारा जैसे- आलू, प्याज , अदरक, अरवी इत्यादि
iii) पत्तियों द्वारा जैसे- अजूबा
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81- परागण – परागकणों का प्रागकोष से निकलकर जायंग के वर्तिकाग्र पर पहुचने की क्रिया को परागण कहते हैं | परागण कई माध्यमों द्वारा होता है | जैसे – वायु परागण (मक्का में) , जल परागण (वैलिसनेरिया में) , किट परागण(सैल्विया में ) आदि |
82- निषेचन – ननर युग्मक तथा अंड कोशिका के मिलने को निषेचन (संग्युमन) कहते हैं | इससे भ्रूण का निर्माण होता है |
83- त्रिक संलयन – दुसरे नर युग्मक (n) तथा द्वितीयक केन्द्रक (2n) के मिलने को त्रिक संलयन कहते हैं | त्रिक संलयन से भ्रूण कोश का निर्माण होता है |
84- द्विनिषेचन – संयुग्मन तथा त्रिक संलयन को सयुंक्त रूप से द्विनिषेचन कहते हैं | द्विनिषेचन के पश्चात् बीजाण्ड से बीज बनता है | द्विनिषेचन आवृतबीजी पौधों की विशेषता है इसकी खोज नवासिन ने किया था |
85- भारत में जनसँख्या वृद्धि के कारण :-
i) अशिक्षा
ii) धार्मिंक मान्यताएं
iii) बाल विवाह
iv) शीघ्र यौन परिपक्वता
v) परिवार नियोजन के प्रति उदासीनता
vi) निम्न सामाजिक स्तर
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86- जनसँख्या वृद्धि पर नियंत्रण :-
i) उचित शिक्षा व्यवस्था द्वारा
ii) आर्थिक स्थिति में सुधार
iii) क़ानूनी व्यवस्था द्वारा
iv) परिवार कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर
v) परिवार नियोजन द्वारा
87- परिवार नियोजन – परिवार में बच्चों की संख्या को सिमित(2-3) रखना परिवार नियोजन कहलाता है | परिवार नियोजन को दो विधियाँ हैं :-
i) अस्थाई विधि – गर्भ निरोधक गोली के प्रयोग द्वारा(माला डी, माला ऍन इत्यादि दवाइयां) , लूप(कापर टी) के प्रयोग द्वारा , निरोध के प्रयोग द्वारा और गर्भ समापन आदि |
ii) स्थाई विधि – पुरुष नसबंदी एवं महिला नसबंदी |
88- तम्बाकू में निकोटिन नामक एल्केलायड पाया जाता है | जो गले एवं मुख का कैंसर उत्पन्न करता है |
89- 31 मई को विश्व तम्बाकू विरोध दिवस मनाया जाता है |
90- चाय के पौधे का वैज्ञानिक नाम थिया साईंनेन्सिस है | चाय में थिन एवं कैफीन नामक एल्केलायड पाया जाता है |
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91- काफी कैफ़िया अरेबिया के बीजों से बनाई जाती है | काफी में कैफीन नामक एल्केलायड पाया जाता है |
92- एल्कोहाल सबसे अधिक यकृत को प्रभावित करता है | जिसके कारण लीवर फैटी हो जाता है | इसकी अधिकता से पेप्टिक अल्सर हो जाता है |
93- अफीम में मारफीन नामक एल्केलायड पाया जाता है | अफीम पोस्त के फल से प्राप्त होती है | इसके सेवन से व्यक्ति भ्रामक स्थिति में आ जाता है |
94- ग्रेगर जॉन मेंडल को अनुवांशिकता का जनक कहा जाता है |
95- मेंडल ने अपने प्रयोग मीठी मटर (पाइसम सैटाइवाम) पर किये थे |
96- अनुवांशिकता – अनुवांशिक लक्षणों की वंशागति को अनुवांशिकता कहते है |
97- जब तुलनात्मक (विपरीत) लक्षणों वाले जनकों के बीच निषेचन कराया जाता है, तो इस क्रिया को संकरण तथा इससे उत्पन्न संतानों को संकर कहते हैं |
98- प्रभावी लक्षण – जब तुलनात्मक लक्षणों वाले शुद्ध जनकों के बीच संकरण की क्रिया करायी जाती है, तो प्रथम पीढ़ी में जो लक्षण दिखाई देता है उसे प्रभावी कहते हैं तथा जो लक्षण दिखाई नहीं देता उसे अप्रभावी लक्षण कहते हैं |
जैसे – लम्बे तथा बौनेपन में लम्बापन प्रभावी लक्षण है |
99- एलिल/एलिलोमार्फ़ – तुलनात्मक लक्षणों वाले जोड़ों को एलिल कहते हैं |
जैसे – लम्बा तथा बौना |
100- संकर पूर्वज संकरण – जब संकर संतान (F1) एवं किसी शुद्ध जनक के बीच संकरण कराया जाता है , तो उसे परिक्षण संकरण कहते हैं इससे पौधों का जिनोटाईप ज्ञात किया जाता है |
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101- जीन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम जॉनसन ने किया था | मेंडल ने इसे कारक नाम दिया था |
102- प्रभाविकता का नियम – जब तुलनात्मक लक्षणों वाले जनको में संकरण कराया जाता है तो प्रथम पीढ़ी(F1) में प्रभावी लक्षण सुप्ता लक्षण को प्रदर्शित नहीं होने देता है |
जैसे – लाल(RR) एवं सफेद(rr) पुष्प वाले पौधों में संकरण कराने पर (F1) पीढ़ी में सभी पौधों ही होते हैं |
103- पृथक्करण (युग्मकों की शुद्धता) का नियम – प्रथम पीढ़ी(F1) से संकर संतानों में परस्पर संकरण कराने पर द्वितीय पीढ़ी(F2) में लक्षणों का एक निश्चित अनुपात (3:1) में प्रथक्करण हो जाता है | अत: पृथक्करण का नियम कहते हैं | अर्थात युग्मकों के निर्माण के समय जोड़े के जिन्स पृथक होकर प्रत्येक युग्मक में केवल एक ही जीन जाते हैं | इस प्रकार युग्मकों की शुद्धता बनी रहती है |
104- स्वतंत्र अपव्युहन का नियम – दो या दो से अधिक तुलनात्मक लक्षणों वाले जीनों के जोड़े के जिन्स एक दुसरे युग्मको में आ जाते हैं और निषेचन के समय ये युग्मक आपस में अनियमित रूप से संयोजित होते हैं |
105- समयुग्मजी तथा विषमयुग्मजी
समयुग्मजी | विषमयुग्मजी |
1- जब किसी युग्म के दोनों जीन्स समान होते हैं, तो उस युग्म को संयुग्मजी कहते हैं | | 1-जब किसी युग्म के दोनों जीन्स समान होते हैं, तो उस युग्म को संयुग्मजी कहते हैं | |
2- ये शुद्ध युग्म होते हैं | | 2- ये संकर युग्म होते हैं | |
3- इसमें दोनों जीन्स सामान होते हैं जैसे- RR या rr | 3- इसमें दोनों जीन्स तुलनात्मक लक्षण वाले होते हैं जैसे- Rr या Tt |
10th Biology notes in Hindi
106- मनुष्य में 23 जोड़ी गुणसूत्र(46) पाए जाते हैं | 22 जोड़ी गुणसूत्र आटोसोम्स कहलाते हैं | 23वीं जोड़ी लिंग गुणसूत्र होती है | पुरुषों में गुणसूत्रों की संख्या 44+ xy तथा स्त्रियों में 44+ xx होती है |
107- गुणसूत्र शब्द का प्रयोग वालडेयर ने किया |
108- लिंग सहलग्न लक्षण – सामान्यतया लिंग गुणसूत्र लिंग निर्धारण के लिए उत्तरदायी होते हैं किन्तु कुछ अन्य लक्षणों के जीन लिंग गुणसूत्रों पर पाए जाते हैं इन लक्षणों को लिंग सहलग्न लक्षण कहते हैं | इन्हें तीन समूहों में बाटा गया है |
i) सहलग्न लक्षण – इसके जीन x गुणसूत्र पर पाए जाते हैं |
जैसे- हिमोफोलिया , वर्णधानता |
ii) सहलग्न लक्षण – इसके लक्षण y गुणसूत्र पर पाए जाते हैं जैसे – हाइपरट्राईकोसीस(कर्ण पल्लवों पर लम्बे मोटे बाल)
iii) सहलग्न लक्षण- जैसे – पूर्ण वर्णधानता, नेफाइटिस |
109- एल्कप्टोन्यूरिया रोग में मूत्र हवा के संपर्क में आने पर काला हो जाता है |
110- सुजननीकी – व्यावहारिक आनुवंशिक वह शाखा जिसके अंतगर्त आनुवंशिक के सिद्धांतों की सहायता से मानव की भावी पीढ़ियों में लक्षणों की वंशागति को नियंत्रित करके मानव जाति को सुधारने का अध्ययन किया जाता है सुजननीकी कहलाती है | सर फ्रांसिस गैल्टन को सुजननीकी का जनक कहा जाता है |
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111- वाटसन तथा क्रिक ने डी० एन० ए० की संरचना का माडल प्रस्तुत किया |
112- डाउन सिंड्रोम में 21वें गुणसूत्र की संख्या 2 के स्थान पर 3 हो जाती है | इस प्रकार कुल गुणसूत्रों की संख्या 46 के स्थान पर 47 हो जाती है | ऐसे व्यक्ति की आँखे तिरछी , पलकें मंगोलों की भांति , सिर गोल , त्वचा खुरदुरी , जीभ मोती हो जाती है | ये मंदबुद्धि होते हैं | कद छोटा होता है | इसे मंगोलिक जड़ता कहते हैं |
113- मनुष्य में लिंग निर्धारण – मनुष्य की जनन कोशिकाओं में 23 जोड़ी(46) गुणसूत्र होते हैं | इनमें से 22 जोड़ी गुणसूत्र नर तथा मादा दोनों में समान होते हैं इन्हें आटोसोम्स कहते हैं | 23वीं जोड़ी के गुणसूत्र को लिंग गुणसूत्र कहते हैं | स्त्री में लिंग गुणसूत्र समान होते हैं , इन्हें xx द्वारा प्रदर्शित किया जाता है | पुरुष में लिंग गुणसूत्र असमान होते हैं, इन्हें xy द्वारा प्रदर्शित किया जाता है |
114- वर्णान्ध व्यक्ति लाल एवं हरे रंग में भेद नहीं कर पाता इसीलिए ऐसे व्यक्ति को रेलवे का ड्राइवर नहीं बनाया जाता है |
115- गुणसूत्र – केन्द्रकद्रव्य में स्थित क्रोमेटिनजाल कोशिका विभाजन के समय सिकुड़कर मोटे हो जाते हैं, जो गुणसूत्र कहलाते हैं | इनकी खोज स्ट्रांसबर्गर ने किया तथा वाल्डेयरने इन्हें क्रोमोसोम नाम दिया |
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116- पिलिकल – गुणसूत्र एक झिल्ली द्वारा घिरा रहता है, जिसे पिलिकल कहते हैं | इसके अन्दर गाढ़ा तरल पदार्थ मैट्रिक्स भरा रहता है |
117- क्रोमोनिमेटा – प्रत्येक गुणसूत्र में दो क्रोमैटिड्स होते हैं , जो परस्पर लिपटे रहते हैं इन पर क्रोमोमीयर्स पाए जाते हैं , जिनमे जिन्स होते हैं |
118- सेंट्रोमियर – गुणसूत्र के दोनों क्रोमैटिड्स सेंट्रोमियर द्वारा परस्पर जुड़े रहते हैं | इसे प्राथमिक संकिर्णन भी कहते हैं |
119- सैटेलाईट – कुछ गुणसूत्रों में द्वितीयक संकिर्णन के बाद सिरे पर गोलाकार रचना होती है , जिसे सैटेलाईट कहते हैं |
120- गुणसूत्र अनुवांशिक लक्षणों के वाहक होते हैं , इन्हें वंशागति का भौतिक आधार कहते हैं |
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121- डी० एन० ए० के निर्माण की भौतिक इकाई न्यूक्लीयोटाइड होती है |
122- डी० एन० ए० तथा आर० एन० ए० में अंतर
डी० एन० ए० | आर० एन० ए० |
1- DNA द्विसूत्री होता है | | 1- यह एक सूत्री होता है | |
2- इसमें डी आक्सीराइबोज़ शर्करा होती है | | 2- इसमें राइबोज़ शर्करा होती है | |
3- इसमें द्विगुणन की क्षमता होती है | | 3- इसमें द्विगुणन की क्षमता नहीं होती है | |
4- इसमें थाइमिन क्षार पाया जाता है | | 4- इसमें यूरेसिल क्षार पाया जाता है | |
123- जैवप्रौधोगिकी – जैव रसायन सूक्ष्म विज्ञान, अनुवांशिकी और रसायन अभियांत्रिकी के तकनीक ज्ञान का एकात्मक सघन उपयोग जैव प्रौधोगिकी कहलाता है |
124- जैवप्रद्योगिकी का महत्व –
i) कृषि में महत्व जैसे – रोग रहित एवं रोग प्रतिरोधक पौधों को विकसित करना , भूमि व पौधों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण क्रिया को बढ़ाना , पौधों में पोषण क्षमता बढ़ाना , जैव उर्वरकों को खोज करना |
ii) चिकित्सा क्षेत्र में महत्व , विभिन्न प्रकार की प्रोटीन्स एवं एंजाइम्स का निर्माण करके चिकित्सकीय उपचार करना जैस – इंटरफेरान-विषाणु संक्रमण एवं कैंसर उपचार में , मानव वृद्धि हार्मोन(सोमेटोट्रिपिन) कृत्रिम तरीके से बनाया गया प्रथम वृद्धि हार्मोन है , इन्सुलिन , युरोमेस्ट्रान इत्यादि
125- जिनी अभियांत्रिकी – अनुवांशिक पदार्थ डीएनए की संरचना में हेर-फेर करने को जीनी अभियांत्रिकी कहते हैं | इसकी नींव नाथन एवं स्मिथ ने 1970 में डाली |
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126- ट्रांसजैनिक पौधे – किसी पादप में विदेशी जिन्स को स्थानान्तरित करने से प्राप्त पादप को ट्रांसजेनिक पादप कहलाता है , ट्रांसजेनिक पौधे रोग प्रतिरोधी होते हैं तथा अधिक उत्पादन की क्षमता होती है |
127- जीवन की उत्पत्ति के सम्बन्ध में ओपेरिन ने आधुनिक परिकल्पना प्रस्तुत किया था |
128- आदि वातावरण में आक्सीजन का अभाव था |
129- जीवत परिकल्पना का मत लुई पाश्चर ने प्रस्तुत किया था |
130- कोएसरवेट्स का नाम ओपेरिन ने दिया था | कोएसरवेट्स आदि सागर में बनी जटिल कार्बनिक(प्रोटीन) कोलायडी संरचना थी | सिडनी फाक्स ने इसी प्रकार की रचना को माइक्रोस्फीयर नाम दिया था |
131- लैमार्क ने फिलास्फी जुलोजिक नामक पुस्तक लिखा था |
132- पुनरावृत्ति का सिद्धांत – भ्रूण परिवर्तन या व्यक्तिवृत्त में जातिवृत की पुनरावृत्ति होती है | इसे पुनरावृत्ति का सिद्धांत कहते हैं | इस सिद्धांत को अर्नेस्ट हेकेल ने प्रतिपादित किया था |
133- संयोजक कड़ी – जब किसी जन्तु में दो वर्गों या समूहों के लक्षण मिलते हैं तो उस जन्तु को संयोजक कड़ी कहते हैं |
जैसे – आर्कियोप्तेरिक्स(सरीसृप एवं पक्षी वर्ग के बीच की कड़ी) , एकिडना(सरीसृप एवं स्तनधारी वर्ग के बीच की कड़ी ) , युग्लिना(जंतु एवं पादप वर्ग की बीच की कड़ी) इत्यादि
134- अवशेषी अंग – जन्तुओ में निष्क्रिय या अनावश्यक अंगो को अवशेषी अंग कहते हैं | मनुष्य में 100 से अधिक अवशेषी अंग हैं |
जैसे- त्वचा के बाल , निमेषक पटल , कृमीरूपी परिशोषिका , पुच्छ कशेरुका इत्यादि |
135- उत्परिवर्तन – जन्तुओ में अचानक होने वाले परिवर्तनों को उत्परिवर्तन कहते हैं | ये उत्परिवर्तन वंशागत होते हैं |
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136- जैव विकास – जैव विकास अत्यंत धीमी गति से निरंतर चलने वाली वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा निम्न कोटि के सरल जीवों से उच्च कोटि के जटिल जीवों का विकास होता है |
137- समजात अंग – विभिन्न जंतुओं के वे अंग जिनकी उत्पत्ति एवं मूल संरचना समान होती है किन्तु कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं समजात अंग कहलाते हैं |
जैसे – मनुष्य के हाथ, घोड़े की अगली टांग , चिड़िया के पंख इत्यादि |
138- समवृत्ति अंग – विभिन्न जंतुओं के वे अंग जिनकी एवं मूल संरचना भिन्न-भिन्न होती है किन्तु कार्य एकसमान होते हैं , समवृत्ति अंग कहलाते हैं |
जैसे- तितली के पंख , टेराडेक्टाइल एवं पक्षी के पंख आदि |
139- लैमार्कवाद निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित है –
i) वातावरण का सीधा प्रभाव
ii) अंगो का उपयोग
iii) उपार्जित लक्षणों की वंशागति
140- डार्विनवाद निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित है –
i) जीवों में संतानोत्पत्ति की प्रचुर क्षमता
ii) जीवन अंतर जातीय संघर्ष
iii) वातावरणीय संघर्ष
iv) विभिन्नताएं एवं इनकी वंशागति की उत्तर जीविता
v) प्राकृतिक चयन
vi) नई जातियों की उत्पत्ति |
Thanks for visiting GKPAD by YadavG. Good luck!
View Comments (13)
You are great sir
Sir aap mujhe apne group mai admin kar dijiye please sir help me
thank you @Shweta, But I can't.
Great infomation sir ji
Sir ap eak what’s app Group banaye jisse bhut Accha rahega My n.
7785095085
Hi @Abhishek mai jld hi ek whatsapp group banaunga.
Hello sir bseb 2019 exam near hai please sir math ka question v.v.i. dale notes banakar
thankyou
narendra 2000rasula
Super sir
Sir math ke notes nhi hai mujhe maths ke note chahiye
very nice notes...
sir notes ki pdf bhi daale...
Hi @Mausam.
Is notes ka pdf file maine pahle se hi upload kiya hai
vary nice