10th Chemistry notes in Hindi
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10th Chemistry Notes in Hindi :- इस लेख में रसायन विज्ञानं के सभी अध्यायों से नोट्स तैयार किया गया है | यह नोट्स बोर्ड परीक्षा के साथ-साथ पॉलिटेक्निक , IERT तथा ITI जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी उपयोगी है | आप इस नोट को pdf में भी download कर सकते हैं | पीडीऍफ़ डाउनलोड लिंक इस पेज में नीचे दिया गया है |
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Chapter 1 : Acid, Base and Salt
1- अम्ल एक ऐसा पदार्थ है, जो नीले लिटमस पेपर को लाल कर देता है तथा इसका स्वाद खट्टा होता है |
जैसे- इत्यादि
2- आरहिनियस के आयनिक सिद्धांत के अनुसार, “जब अम्ल को जल में घोला जाता है, तो वह H+ तथा OH– में टूट जाता है |
3- ब्रान्स्टेड और लौरी के अनुसार, “अम्ल ऐसा पदार्थ है , जो जल में घुलकर हाइड्रोनियम आयन H3O+ देता है |
4- जल में घुलने पर जो अम्ल जितना जल्दी H+ का त्याग कर देता है , वह अम्ल उतना ही प्रबल होता है |
5- क्षार ऐसा पदार्थ है, जो लाल लिटमस पेपर को नीला कर देता है | तथा इसका स्वाद कडवा होता है |
जैसे- इत्यादि
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6- क्षार जल में घुलकर OH– आयन देता है |
7- ऐसा पदार्थ जो अम्ल अथवा क्षार से अभिक्रिया करके अपना रंग बदल लेता है, सूचक कहलाता है |
जैसे- लिटमस पेपर, मेथिल ऑरेंज , फिनाल्फ्थेलिन इत्यादि
8- pH पैमाने का अविष्कार सारेंसन ने सन 1909 ई० में किया था |
9- pH पैमाने का उपयोग किसी विलयन की अम्लीयता या क्षारकता मापने के लिए किया जाता है |
10- pH पैमाने में 0 से लेकर 14 बिंदु होते हैं |
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11- अम्लीय विलयनों का pH मान 7 से कम होता है तथा क्षारीय विलयनों का pH का 7 से अधिक होता है |
12- उदासीन विलयनों का pH मान 7 होता है | पानी एक उदासीन विलयन है इसलिए इसका मान 7 होगा |
13- यदि किसी विलयन में H+ आयनों की सान्द्रता अधिक हो जाये तो वह विलयन अम्लीय होगा |
14- यदि किसी विलयन में OH– आयनों की सान्द्रता अधिक हो जाये तो वह विलयन क्षारीय होगा |
15- यदि किसी विलयन में H+ तथा OH– आयनों की सान्द्रता बराबर हो तब वह विलयन उदासीन होगा |
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16- किसी विलयन में pH तथा pOH मानों का कुल योग 14 होता है |
pH + pOH = 14
17- यदि किसी विलयन में H+ आयनों की सान्द्रता a हो, तो उस विलयन का
pH मान = -log10[a]
18- यदि किसी विलयन में OH– आयनों की सान्द्रता b हो, तो उस विलयन का
pOH मान = – log10 [b]
19- सार्वत्रिक एक प्रकार का सूचक है जो किसी पदार्थ का pH मान बदलने के साथ अपना रंग बदलता है |
20- सार्वत्रिक सूचक द्वारा विभिन्न pH मानों पर दिया गया विभिन्न रंग
pH मान | रंग |
0 | गहरा लाल |
1 | लाल |
2 | लाल |
3 | नारंगी-लाल |
4 | नारंगी |
5 | नारंगी-पीला |
6 | हरा-पीला |
7 | हरा |
8 | हरा-नीला |
9 | नीला |
10 | गहरा नीला |
11 | गुलाबी |
12 | गुलाबी |
13 | बैगनी |
14 | बैगनी |
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21- अम्लों के गुण :-
i) अम्ल का स्वाद खट्टा होता है |
ii) यह क्षार के साथ क्रिया करके लवन व जल बनाता है |
iii) जल में घुलकर H+ आयन देता है |
iv) धातुओं से क्रिया करके लवण बनाता है तथा \( H_2 \) गैस बाहर निकालता है |
v) धातु ऑक्साइड से क्रिया करके लवन बनाता है तथा जल बाहर निकालता है |
22- क्षारों के गुण :-
i) क्षारों का स्वाद कड़वा होता है |
ii) अम्ल के साथ क्रिया करके लवन और जल बनाता है |
iii) जल में घुलकर OH– आयन देता है |
iv) अधातु ऑक्साइड से क्रिया करके लवन और जल बनाता है |
v) गर्म करने पर जल उत्त्पन्न करता है |
23- जब अम्ल और क्षार आपस में अभिक्रिया करते हैं , तब लवण और जल का निर्माण होता है | यह क्रिया ‘उदासीनीकरण’ कहलाती है |
24- लवण उदासीन होता है इसलिए इसका pH मान 7 होगा |
25- लवण 6 प्रकार के होते हैं -:
i) सामान्य लवण
जैसे – K2SO4 , NaCl , KCl इत्यादि
ii) अम्लीय लवण
जैसे- NaHSO4 , NaHCO3 , KHSO4 इत्यादि
iii) क्षारीय लवण
जैसे – Mg(OH)Cl , Ca(OH)Cl इत्यादि
iv) द्विक लवण
जैसे- K2SO4.Al2(SO4)3.24H2O , FeSO4.(NH4)4.6H2O इत्यादि
v) संकर लवण
जैसे- [K4[Fe(CN)6] , Na[Ag(CN)2] , [Cu(NH3)4]SO4] इत्यादि
Chapter 2 : Some Basic Salts and Their Use
26- धावन सोडा(कपडे धोने का सोडा) का रासायनिक नाम सोडियम कार्बोनेट तथा अणुसूत्र Na2CO3.10H20 होता है |
27- धावन सोडा बनाने के लिए कास्टिक सोडा NaOH के सान्द्र विलयन में CO2 गैस प्रवाहित किया जाता है |
28- ली-ब्लॉक विधि तथा साल्वे अमोनिया विधि से धावन सोडा का निर्माण किया जाता है |
29- धावन सोडा के गुण :-
i) यह एक गंधहीन तथा क्रिस्टलीय पदार्थ है |
ii) जल में घोलने पर ऊष्मा अवक्षेपी अभिक्रिया करता है अर्थात जब इसे जल में घोला जाता है , तब यह ऊष्मा उत्पन्न करता है |
iii) धावन सोडा गर्म करने पर निर्जल सोडियम कार्बोनेट में बदल जाता है |
iv) धावन सोडा के जलीय विलयन में CO2 गैस प्रवाहित करने पर बेकिंग सोडा(खाने वाला सोडा) प्राप्त होता है |
v) धावन सोडा अम्लों के साथ अभिक्रिया करके लवण तथा जल बनाता है तथा CO2 गैस बाहर निकलता है |
vi) धावन सोडा रेत के साथ क्रिया करके कांच Na2SiO3 बनाता है |
vii) धातु लवणों के साथ क्रिया करके धातु कार्बोनेट बनाता है |
30- धावन सोडा का उपयोग –
i) कपडे धोने में |
ii) प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में |
iii) बेकिंग पाउडर बनाने में
iv) कठोर जल को मृदु करने में |
v) पेट्रोलियम के शोधन में |
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31- खाने वाला सोडा बनाने के लिए सोडा ऐश Na2CO3 के जलीय विलयन में CO2 गैस प्रवाहित किया जाता है |
32- बेकिंग सोडा के गुण –
i) यह एक सफ़ेद क्रिस्टलीय पदार्थ है |
ii) बेकिंग सोडा दुघ में मिलाने पर दूध देर से फटता है |
iii) 100०C तक गर्म करने पर बेकिंग सोडा धावन सोडा में बदल जाता है |
iv) इसका जलीय विलयन क्षारीय होता है |
v) बेकिंग सोडा अम्लों से अभिक्रिया करके लवण तथा जल बनाता है |
33- बेकिंग सोडा के उपयोग –
i) धावन सोडा बनाने में |
ii) अग्निशामक यंत्रों में |
iii) प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में |
iv) डबल रोटी बनाने में |
v) खाद्य पदार्थों की सुरक्षा में |
34- नौसादर का रासायनिक नाम अमोनियम क्लोराइड तथा अणुसूत्र NH4Cl होता है |
35- नौसादर बनाने के लिए HCl विलयन में अमोनिया गैस प्रवाहित की जाती है |
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36- नौसादर के गुण –
i) यह सफ़ेद रंग का एक क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है |
ii) इसे जल में घोलने पर ऊष्मा का शोषण होता है , अर्थात यह जल के साथ ऊष्माशोषी अभिक्रिया करता है |
iii) नौसादर को गर्म करने पर अमोनिया गैस बाहर निकलती है |
iv) यह कास्टिक सोडा के साथ अभिक्रिया करके अमोनिया गैस बाहर निकालता है |
v) लिथार्ज PbO के साथ अभिक्रिया करके अमोनिया गैस बाहर निकालता है |
37- नौसादर के उपयोग –
i) विद्युत् सेल बनाने में |
ii) दवाई के रूप में |
iii) प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में |
iv) पेंट बनाने में |
v) अमोनिया गैस के निर्माण में |
38- फिटकरी का रासायनिक नाम ‘पोटाश एलम’ अथवा ‘पोटैशियम एल्युमिनियम सल्फेट’ होता है तथा इसका अणुसूत्र K2SO4.Al2(SO4)3.24H2O होता है |
39- फिटकरी एल्युमिनियम और पोटैशियम का एक द्विक लवण है |
40- फिटकरी बनाने के लिए पोटैशियम तथा एल्युमिनियम सल्फेट के मिश्रण का एक साथ सांद्रण किया जाता है |
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41- फिटकरी के गुण –
i) फिटकरी का जलीय विलयन अम्लीय होता है |
ii)यह एक रंगहीन क्रिस्टलीय पदार्थ है |
iii) 90०C तक गर्म करने पर फिटकरी पिघल जाती है |
iv) 200०C पर गर्म करने पर इसका पूरा जल निकल जाता है | इस फिटकरी को दग्ध फिटकरी कहते हैं |
v) जल में घोलने पर यह अपने आयनों में विभक्त हो जाती है |
42- फिटकरी का उपयोग –
i) जीवाणुनाशक के रूप में
ii) जल के शोधन में |
iii) अग्निशामक यंत्र में |
iv) कपडा रंगने में |
v) कागज तथा चमड़ा उद्योग में |
43- ब्लीचिंग पाउडर अथवा विरंजक चूर्ण का रासायनिक नाम “कैल्शियम आक्सो क्लोराइड” अथवा “कैल्शियम हाइपो क्लोराइड” होता है | तथा अणुसूत्र CaOCl2 होता है |
44- विरंजक चूर्ण बनाने के लिए बुझे चुने के अभिक्रिया क्लोरिन गैस के साथ करायी जाती है |
45- विरंजक चूर्ण के औधोगिक निर्माण के लिए ‘हेजनक्लेवर विधि’ तथा ‘बैचमैन विधि’ का उपयोग किया जाता है |
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46- विरंजक चूर्ण के गुण –
i) यह हल्के पीले रंग का चूर्ण है |
ii) इसमें से क्लोरिन गैस की गंध आती है |
iii) विरंजक चूर्ण के जलीय विलयन को गर्म करने पर क्लोरिन गैस बाहर निकलती है |
iv) CO2 के साथ अभिक्रिया करके चुना पत्थर CaCO3 बनाता है , तथा क्लोरिन गैस बाहर निकलती है |
v) तनु अम्लों के साथ क्रिया करके लवण तथा जल बनाता है और क्लोरिन गैस बाहर निकलती है |
vi) विरंजक चूर्ण को गर्म करने पर यह आक्सीजन गैस बाहर निकालता है |
47- विरंजक चूर्ण के उपयोग :-
i) क्लोरोफार्म (\( CHCl_3 \)) के निर्माण में |
ii) वायुमंडल से जहरीली गैस हटाने में |
iii) जल को शुद्ध करने में |
iv) आक्सीकारक के रूप में |
v) चीनी का रंग सफ़ेद करने में |
Chapter 3 : Metals and Non-Metals
48) वे तत्व जो ऊष्मा के सुचालक होते हैं तथा आघातवर्ध्य और तन्य होते हैं , तत्व कहलाते हैं |
जैसे – Cu , Fe , Mg इत्यादि
49- धातुओं के भौतिक गुण –
i) धातुएं चमकदार होती हैं |
ii) सोडियम और पोटैशियम को छोड़कर अन्य सभी धातुओं का घनत्व उच्च होता है |
iii) घातुओं के गलनांक तथा क्वथनांक उच्च होते हैं |
iv) धातुएं तन्य होतीं हैं अर्थात उनको खींचकर तार बनाया जा सकता है |
v) धातुएं विद्युत् और उष्मा की सुचालक होती हैं |
vi) साधारणत: धातुएं कठोर होती हैं |
50- धातुओं के रासायनिक गुण –
i) आक्सीजन की उपस्थिति में धातुओं को जलने पर धातु आक्साइड बनता है |
ii) जल से अभिक्रिया करके धातु हाइड्राक्साइड बनाती हैं तथा हाइड्रोजन गैस बाहर निकलती है |
iii) तनु अम्लों से क्रिया करके लवण तथा हाइड्रोजन गैस बनाती हैं |
iv) धातु क्लोरिन से अभिक्रिया करके क्लोराइड यौगिक बनाती हैं |
v) सक्रीय धातु (जैसे – Na तथा K) हाइड्रोजन से अभिक्रिया करके हाइड्राइड बनाती हैं |
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51- वे तत्व जिनमें धातुओं के गुण नहीं पाए जाते हैं , अधातु कहलाते हैं | या धातुओं को छोड़कर अन्य सभी तत्व अधातु हैं |
जैसे – C , O , S इत्यादि
52- अधातुओं के भौतिक गुण –
i) अधातु भंगुर होते हैं , अर्थात इनको पीटने या खींचने पर यह टूट जाते हैं |
ii) हीरा को छोड़कर अन्य सभी धातुओं के गलनांक तथा क्वथनांक उच्च होते हैं |
iii) अधातु विद्युत् तथा ऊष्मा के कुचालक होते हैं |
iv) अधातु का घनत्व कम होता है |
v) अधिकांश अधातु गैसीय रूप में पाए जाते हैं |
53- अधातुओं के रासायनिक गुण –
i) अधातु आक्सीजन की उपस्थिति में जलकर अपना आक्साइड बनाते हैं |
ii) अधातु क्लोरिन गैस से अभिक्रिया करके क्लोराइड यौगिक बनाते हैं |
iii) अधातु हाइड्रोजन से अभिक्रिया करके हाइड्राइड यौगिक बनाते हैं |
54- किसी धातु के लवणीय विलयन में डूबी हुई उसी धातु की छड़ को ‘इलेक्ट्रोड’ कहते हैं |
55- विद्युत् रासायनिक श्रेणीं में विभिन्न इलेक्ट्रोडों को उनके मानक इलेक्ट्रोड विभव के बढ़ते क्रम में रखा जाता है |
56- विद्युत् रासायनिक श्रेणी में उपर स्थित धातुएं अधिक क्रियाशील तथा निचे स्थित धातुएं कम क्रियाशील होती हैं |
57- जिन पदार्थों से धातुओं का निष्कर्षण किया जाता है , खनिज कहलाते हैं |
58- वे खनिज जिनसे धातु का निष्कर्षण कम समय , कम लागत तथा आसानी से हो जाये , अयस्क कहलाता है |
जैसे – कापर का अयस्क कापर पाइराइट , एल्युमिनियम का अयस्क बाक्साईट , लोहे का अयस्क हेमेटाईट इत्यादि
59- अयस्क से धातु के निष्कर्षण की क्रिया धातुकर्म कहलाती है | धातुकर्म के तीन मुख्य चरण हैं –
i) अयस्क का सांद्रण
ii) सांद्रित अयस्क का अपचयन
iii)अपचयित अयस्क का शोधन
60- अयस्क के सांद्रण की प्रमुख विधियाँ
i) फेन-प्लवन विधि (झाग विधि)
ii) चुम्बकीय पृथक्करण विधि
iii) गुरुत्वीय पृथक्करण विधि
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61- धातु निष्कर्षण के प्रमुख चरण
i)निस्तापन
ii)भर्जन
iii) प्रगलन
iv) गालक
v) अपचयन
vi) धातु का शोधन
62- अपचयन की मुख्य विधियाँ
i) कोक द्वारा अपचयन
ii) एल्युमिनियम द्वारा अपचयन
iii)विद्युत् अपघटन द्वारा अपचयन
iv) अमलगम विधि द्वारा अपचयन
63- ताबा(कापर) के प्रमुख अयस्क
i) कापर पाइराईट CuFeS2
ii) क्युप्राईट Cu2O
iii) मैलेकाईट CuCO3.Cu(OH)2
iv) कोवेलाईट CuS
v) एजुराईट 2CuCO3.Cu(OH)2
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65- ताबा का उपयोग
i) विद्युत् यंत्रो में |
ii) बर्तन बनाने में |
iii) सिक्के बनाने में |
iv) एथेन बनाने में |
v) विद्युत् लेपन में |
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66- दो या दो से अधिक धातुओं के समांगी मिश्रण से प्राप्त धातु को मिश्रधातु कहते हैं |
जैसे – पीतल , कांसा , रोल्ड गोल्ड इत्यादि
67- कुछ प्रमुख मिश्र धातुएं –
i) पीतल ( 80% Cu , 20% Zn)
ii) कांसा (88% Cu , 12% Sn)
iii) गनमेटल ( 88% Cu , 10% Sn , 2% Zn )
iv) रोल्ड गोल्ड ( 95% Cu , 5% Al)
v) फास्फर ब्रांज ( 85% Cu , 13% Sn , 2% P)
vi) मुद्रा धातु (95% Cu , 4% Sn , 1% P)
Chapter 4 : Sulphur Dioxide and Ammonia Gases
68- सबसे पहले सल्फर डाई ऑक्साइड गैस का निर्माण ‘प्रिस्टले” ने मरकरी की अभिक्रिया सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ कराकर किया था |
69- प्रयोगशाला में सल्फर डाई ऑक्साइड गैस का निर्माण ताबे के छीलन को सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म करके बनायीं जाती है |
70- सल्फर डाई ऑक्साइड के गुण -:
i) यह रंगहीन गैस है तथा इसमें से सल्फर की तेज गंध आती है |
ii) यह जल में घुलनशील है |
iii) यह गैस वायु से 23 गुनी भारी है |
iv) यह जल में घुलकर सल्युरस अम्ल बनाती है |
v) सूर्य के प्रकाश में इसका अपघटन सल्फर ट्राई ऑक्साइड में हो जाता है |
vi) सूर्य के प्रकाश में सल्फर डाई ऑक्साइड क्लोरिन गैस से अभिक्रिया करके सल्फ्युरिल क्लोराइड बनाती है |
vii) सल्फर डाई ऑक्साइड पानी में भीगे हुए फूलों या कपड़ों का रंग उड़ा देती है , यह क्रिया विरंजन अभिक्रिया कहलाती है और यह एक अस्थायी अभिक्रिया है |
viii) सल्फर डाई ऑक्साइड हाइड्रोजन सल्फाइड को सल्फर में आक्सीकृत कर देती है |
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71- सल्फर डाई ऑक्साइड का उपयोग
i) सल्फ्यूरिक अम्ल बनाने में |
ii) कीटाणुनाशक के रूप में |
iii) चीनी को शुद्ध करने में |
iv) रेशम और उन का रंग उड़ाने में |
v) मांस को सड़ने से बचाने में |
72- अमोनिया गैस का निर्माण सबसे पहले ‘प्रिस्टले’ ने किया था |
73- प्रयोगशाला में अमोनिया गैस नौसादर और शुष्क बुझे चुने को एक साथ गर्म करके बनायीं जाती है |
74- अमोनिया गैस के गुण
i) यह रंगहीन तथा तेज गंध वाली गैस है | इसको सूंघने पर आँखों में आंसू आ जाते हैं |
ii) अमोनिया गैस वायु से हल्की है |
iii) यह जल में घुलनशील है |
iv) अमोनिया गैस अम्लों से क्रिया करके अमोनियम लवण बनाती है |
v) अमोनिया विद्युत् स्फुलिंग के प्रभाव से अपने अवयवों में टूट जाती है |
vi) सोडियम से अभिक्रिया करके सोडामाइड NaNH2 बनाती है तथा हाइड्रोजन गैस बाहर निकलती है |
vi) अमोनिया गैस को आक्सीजन के साथ 800०C पर गर्म करने पर नाईट्रिक ऑक्साइड प्राप्त होता है |
vii) अमोनिया गैस क्लोरिन गैस से अभिक्रिया करके अमोनियम क्लोराइड बनाती है |
viii) अमोनिया गैस मैग्नीशियम के साथ उच्च ताप पर अभिक्रिया करके मैग्नीशियम नाइट्राइड बनाती है तथा हाइड्रोजन गैस बनाती है |
75- अमोनिया गैस का उपयोग
i) बर्फ के कारखाने में |
ii) कृत्रिम रेशम बनाने में |
iii) अश्रु गैस बनाने में |
iv) नाईट्रिक अम्ल बनाने में |
v) विस्फोटक बनाने में |
Chapter 5 : Classification of Elements
76- मेंडेलीफ़ की मूल आवर्त सरणी में तत्वों को उनके परमाणु भार के बढ़ते क्रम में रखा गया था |
77- मेंडेलीफ़ की मूल आवर्त सरणी के सामान्य लक्षण
i) इसमें तत्वों को उनके परमाणु भार के बढ़ते क्रम में रखा गया था |
ii) इस आवर्त सरणी में 12 श्रेणियां थीं |
iii) इस आवर्त सरणी में 9 वर्ग अथवा समूह थे |
iv) इस आवर्त सारणी के अनुसार तत्वों के का मौलिक गुण उनका परमाणु भार होता है |
v) इस आवर्त सरणी के एक ही वर्ग या समूह में उपस्थित तत्वों के सभी गुणधर्म समान होते हैं |
78- मेंडेलीफ़ की मूल आवर्त सरणी की उपयोगिता
i) तत्वों के अध्यन में आसानी
ii) परमाणु भार ज्ञात करने में उपयोगी
iii) नए तत्वों के खोज में आसानी
79- मेंडेलीफ़ की मूल आवर्त सरणी के दोष
i) हाइड्रोजन का दो जगहों पर स्थान
ii) अधिक परमाणु भार वाले कुछ तत्वों को कम परमाणु भार वाले तत्वों से पहले रखना
iii) नए तत्वों के लिए उचित स्थान का अभाव
iv) तत्वों का मूल लक्षण परमाणु भार नहीं होता |
v) कुछ विपरीत गुणों वाले तत्वों को एक ही वर्ग में रखा गया |
80- मेंडेलीफ़ की मूल आवर्त सरणी में संशोधन करके मोजले ने मेंडेलीफ़ की आधुनिक आवर्त सरणी की रचना किया था |
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81- मेंडेलीफ़ की आधुनिक आवर्त सरणी के लक्षण
i) इस आवर्त सारणी में 7 आवर्त तथा 9 वर्ग या समूह हैं |
ii) पहले आवर्त को ‘अतिलघु आवर्त’ कहते हैं , क्योकि इसमें केवल 2 तत्व ही होते हैं |
iii) दुसरे तथा तीसरे आवर्त को ‘लघु आवर्त’ कहते हैं , क्योकि इनमें 8-8 तत्व ही हैं | तीसरे आवर्त के तत्वों को प्रारुपी तत्व कहते हैं |
iv) चौथे तथा पांचवे आवर्त में 18-18 तत्व होते हैं , इसलिए इनको ‘दीर्घ आवर्त’ कहते है |
v) दीर्घ आवर्त में स्थित पहले 8 तत्वों को सामान्य तत्व तथा अन्य 10 तत्वों को संक्रमण तत्व कहते हैं |
vi) छठवें तथा सातवें आवर्त में 32-32 तत्व हो सकते हैं इसलिए इनको अति दीर्घ आवर्त कहते हैं |
vii) छठवें आवर्त के अन्त: संक्रमण तत्वों को लैन्थेनाइड तथा सातवें आवर्त के अन्त: संक्रमण तत्वों को एक्टिनाइड कहा जाता है |
82- मेंडेलीफ़ की आधुनिक आवर्त सरणी की विशेषताएं
i) तत्वों के अध्यन में आसानी
ii) परमाणु भार ज्ञात करने में उपयोगी
iii) नए तत्वों के खोज में आसानी
83- मेंडेलीफ़ की आधुनिक आवर्त सरणी के दोष
i) हाइड्रोजन की स्थिति निर्धारित नहीं है |
ii) धातुओं तथा अधातुओं को एक ही वर्ग में रखा गया है |
iii) लैन्थेनाइड तथा एक्टिनाइड श्रेणी के तत्वों को आवर्त सरणी से अगल स्थान दिया गया है |
iv) समान गुणों वाले तत्वों को अलग रखा गया है |
v) असमान गुणों वाले तत्वों को एक साथ रखा गया है |
vi) आठवें समूह को तीन उपसमूहों में बाटा गया है |
84- आधुनिक आवर्त सारणी (दीर्घाकार आवर्त सारणी) की विशेषताएँ
i) इस आवर्त सारणी में 7 आवर्त तथा 18 वर्ग या समूह है |
ii) समान लक्षण वाले तत्वों को एक ही समूह में रखा गया है |
iii) तत्वों को उनके इलेक्ट्रानिक विन्यास के आधार पर रखा गया है |
iv) इस आवर्त सारणी को 4 ब्लॉक s, p, d तथा f में बाटा गया है |
v) हाइड्रोजन को पहले तथा 17वें दोनों वर्गों में रखा गया है |
85- आधुनिक आवर्त सारणी (दीर्घाकार आवर्त सारणी) की उपयोग
i) तत्वों के अध्यन में आसानी
ii) इलेक्ट्रानिक विन्यास ज्ञात करने में उपयोगी
iii) नए तत्वों के खोज में आसानी
iv) तत्वों का आयनन विभव ज्ञात करने में आसानी
v) तत्वों का इलेक्ट्रान बंधुता ज्ञात करने में आसानी
Chapter 6 : Valency of Carbon
86- रसायन विज्ञान की वह शाखा जिसमें कार्बनिक यौगिकों का अध्ययन किया जाता है , कार्बनिक रसायन कहलाता है |
87- जैवशक्ति सिद्धांत फ़्रांस के वैज्ञानिक जे० जे० बर्जीलियस ने दिया था |
88- जैवशक्ति सिद्धांत में बर्जीलियस ने बताया था की कार्बनिक यौगिकों का निर्माण प्रयोगशाला में नहीं किया जा सकता | यह केवल ईश्वर द्वारा बनाये जीवों में ही पाया जाता है |
89- प्रयोगशाला में बनाया गया सबसे पहला यौगिक यूरिया था | जिसे फ्रेडरिक वोहलर ने बनाया था |
90- वोहलर ने अमोनियम सायनेट को गर्म करके यूरिया प्राप्त किया था |
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91- पुरे ब्रहमांड में सबसे अधिक कार्बन के यौगिक पाए जाते हैं , क्योंकि अन्य तत्वों की अपेक्षा कार्बन में यौगिक बनाने या श्रृंखला बनाने की क्षमता सबसे अधिक है |
92- कार्बन दो तरह की श्रृंखलाएं बनाता है
i) खुली श्रृंखला
93- कार्बन तीन प्रकार का बंध बनाता है
i) एकल बंध
94- कार्बन परमाणु का आकार समचतुष्फल्कीय होता है | कार्बन के किन्ही दो संयोजकताओं के बीच का कोण 109० 28′ होता है |
95- कार्बनिक यौगिको को दो भागों में बाटा गया है
i) खुली श्रृंखला यौगिक अथवा एलिफैटिक यौगिक
ii) बंद श्रृंखला यौगिक अथवा चक्रीय यौगिक
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96- बंद श्रृंखला यौगिक अथवा चक्रीय यौगिक भी दो प्रकार के होते हैं
i) समचक्रीय अथवा कार्बोचक्रीय यौगिक
97- दैनिक उपयोग की लगभग सभी वस्तुओं में कार्बन पाया जाता है |
98- क्रियात्मक समूह के आधार पर कार्बनिक यौगिकों को मुख्यत: 7 भागो में बाटा गया है
99- समान क्रियात्मक समूह के कार्बनिक यौगिकों के बढ़ते या घटते अणुभार के क्रम में रखने से जो श्रेणी बनेगी उसे सजातीय श्रेणी कहते हैं |
100- एल्केन यौगिको का सामान्य सूत्र CnH2n+2 होता है |
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101- एल्कीन यौगिकों का सामान्य सूत्र CnH2n होता है |
102- एल्काइन यौगिकों का सामान्य सूत्र CnH2n-2 होता है |
103- I.U.P.A.C का पूरा नाम International Union of Pure and Applied Chemistry होता है |
Chapter 7 : Organic Compounds
104- कार्बन तथा हाइड्रोजन के संयोग से बना यौगिक हाइड्रोकार्बन कहलाता है |
105- हाइड्रोकार्बन दो प्रकार के होते हैं –
i) खुली श्रृंखला वाले(एलिफैटिक) हाइड्रोकार्बन
जैसे –
ii) बंद श्रृंखला वाले(एरोमैटिक) हाइड्रोकार्बन
जैसे –
10th Chemistry Notes in Hindi
106- मेथेन का अणुसूत्र CH4 होता है |
107- प्रयोगशाला में मेथेन गैस बनाने के लिए सोडियम एसिटेट को कास्टिक सोडा तथा बिना बुझे हुए चुने के मिश्रण के साथ गर्म करके बनाई जाती है |
108- मेथेन के गुण
i) यह एक रंगहीन , स्वादहीन तथा गंधहीन गैस है |
ii) यह जल की अपेक्षा कार्बनिक विलयको में अधिक विलेय है |
iii) अगर मेथेन गैस को -164०C से कम ताप पर ठंडा किया जाये तो यह द्रव में बदल जाएगी |
iv) मेथेन गैस को आक्सीजन की उपस्थिति में जलाने पर जल तथा कार्बन डाई ऑक्साइड गैस बनाती है |
v) मेथेन गैस ओजोन गैस से अभिक्रिया करके फ़र्मेल्डिहाइड बनाती है |
vi) 1000०C पर मेथेन अपने अवयवों में टूट जाती है |
vii) सूर्य के हल्के प्रकाश में क्लोरिन तथा ब्रोमिन मेथेन के सबसे हाइड्रोजन परमाणुओं को विस्थापित कर देते हैं |
viii) मेथेन गैस नाइट्रिक अम्ल के साथ अभिक्रिया करके नाइट्रोमेथेन बनाती है |
109- मेथेन के उपयोग
i) इसका उपयोग मुख्यत: इंधन के रूप में किया जाता है |
ii) बैटरियों में |
iii) कार्बन-ब्लैक बनाने में |
iv) हाइड्रोजन गैस बनाने में |
v) मेथिल एल्कोहाल बनाने में |
110- प्रयोगशाला में एथिलीन अथवा एथीन गैस बनाने के लिए एथिल एल्कोहल को 100०C पर एक साथ गर्म किया जाता है , जिससे एथिल हाइड्रोजन सल्फेट प्राप्त होता है |
अब एथिल हाइड्रोजन सल्फेट को 160०C पर गर्म किया जाता है , जिससे एथिलीन गैस प्राप्त होती है |
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111- एथिलीन गैस बनाने के लिए कोल्बे की विद्युत् अपघटनी विधि का भी उपयोग किया जाता है |
112- एथिलीन गैस के गुण
i) यह एक हल्की मीठी गंध वाली गैस है , जिसको अधिक सूंघने पर मूर्छा आ जाता है |
ii) यह जल की अपेक्षा कार्बनिक विलायकों में अधिक विलेय है |
iii) आक्सीजन की उपस्थिति में एथिलीन गैस को जलाने पर जल तथा कार्बन डाई ऑक्साइड गैस प्राप्त होता है |
iv) हैलोजन से अभिक्रिया करके एथिलीन डाईहैलाइड बनाती है |
v) हाइपोक्लोरस अम्ल से अभिक्रिया करके एथिलीन क्लोरोहाइड्रिन बनाती है |
vi) सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल से अभिक्रिया करके एथिल हाइड्रोजन सल्फेट बनाती है |
vii) हैलोजन अम्लों से अभिक्रिया करके एथिल हैलाइड बनाती है |
viii) वह अभिक्रिया जिसमें एक पदार्थ के कई अणु आपस में संयोग करके एक बड़ा अणु बनाते हैं , बहुलीकरण कहलाती है | द्रव एथिलीन उच्च ताप तथा दाब पर बहुलिकृत होकर पालिएथिलीन बनाती है |
113- एथिलीन के उपयोग
i) प्लास्टिक बनाने में
ii) मस्टर्ड गैस बनाने में
iii) रबर तथा पालीथीन बनाने में
iv) कच्चे फलों को पकाने में
v) निश्चेतक के रूप में |
114- एथिल एल्कोहल का रासायनिक अणुसूत्र C2H5OH होता है | इसको साधारण भाषा में ‘शराब’ या ‘वाइन’ कहते हैं |
115- प्रयोगशाला में एथिल एल्कोहाल बनाने के लिए एथिल ब्रोमाइड की अभिक्रिया कास्टिक सोडा के कराई जाती है |
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116- एथिल एल्कोहाल का निर्माण किण्वन विधि से भी किया जाता है | सूक्ष्म जीवों द्वारा कार्बनिक पदार्थो को धीरे-धीरे सरल कार्बनिक पदार्थो में अपघटित करने की क्रिया को ‘किण्वन’ कहते हैं | एथिल एल्कोहल बनाने के लिए शर्करा तथा स्टार्च युक्त पदार्थो का किण्वन कराया जाता है |
117- एथिल एल्कोहाल के गुण
i) यह एक रंगहीन तथा तीव्र गंध वाला पदार्थ है |
ii इसका क्वथनांक 78.1०C होता है |
iii) एथिल एल्कोहाल सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में एसिटिक अम्ल से अभिक्रिया करके एस्टर CH3COOC2H5 बनाता है |
iv) एथिल एल्कोहाल सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ 140०C पर अभिक्रिया करके डाईएथिल ईथर बनाता है |
v) एथिल एल्कोहाल क्लोरिन से अभिक्रिया करके ट्राई-क्लोरो एसिटेल्डिहाइड(CCl3CHO) बनाता है |
vi) एथिल एल्कोहाल को क्लोरिन तथा कास्टिक सोडा के साथ गर्म करने पर क्लोरोफार्म(CHCl3) प्राप्त होता है |
vii) एथिल एल्कोहाल सोडियम से अभिक्रिया करके सोडियम एथाक्साइड(2C2H5ONa) बनाता है |
118- एथिल एल्कोहल के उपयोग
i) क्लोरोफार्म बनाने में |
ii) स्पिरिट बनाने में |
iii) मदिरा के रूप में |
iv) ईंधन के रूप में |
v) पेंट तथा वार्निश बनाने में |
vi) दवाइयां बनाने में |
119- एसिटिक अम्ल का अणुसूत्र CH3COOH होता है , इसको साधारण भाषा में सिरका कहते हैं |
120- प्रयोगशाला में एसिटिक अम्ल बनाने के लिए एस्टर का जल अपघटन कराया जाता है |
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121- एसिटिक अम्ल के गुण
i) यह रंगहीन तथा सिरके जैसी गंध वाला एक पदार्थ है |
ii) यह पानी तथा कार्बनिक विलायकों में विलेय है |
iii) सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में एसिटिक अम्ल एथिल एल्कोहाल से अभिक्रिया करके एस्टर बनाता है | यह क्रिया एस्टरीकरण कहलाती है |
iv) एसिटिक अम्ल को गर्म करने पर एसिटिक ऍनहाइड्राइड प्राप्त होता है |
v) एसिटिक अम्ल को लिथियम एल्युमिनियम हाइड्राइड की उपस्थिति में अपचयन कराने पर एथेनाल बनता है |
vi) एसिटिक अम्ल कास्टिक सोडा(NaOH) तथा सोडा ऐश ( Na2CO3) के साथ अभीक्रिया करके सोडियम एसिटेट बनाता है |
vii) सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में एसिटिक अम्ल हाइड्रेजेईक अम्ल से अभिक्रिया करके मेथिल एमिन बनाता है | यह अभिक्रिया श्मिट अभिक्रिया कहलाती है |
122- एसिटिक अम्ल के उपयोग
i) रबर और कागज उद्योग में |
ii) सिरके के रूप में |
iii) प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में |
iv) दवाइयों में |
v) रेशम बनाने में |
vi) कार्बनिक विलायक के रूप में |
123- पेट्रोलियम एक चक्रीय श्रृंखला वाले संतृप्त हाइड्रोकार्बनों का मिश्रण है | इसमें कार्बन परमाणुओं की संख्या 1 से 40 तक होती है |
124- पेट्रोलियम शब्द का अर्थ ‘कच्चा तेल’ होता है |
125- पेट्रोलियम के साथ प्राकृतिक गैस भी पाई जाती है |
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126- पेट्रोलियम का शोधन प्रभाजक स्तम्भ में होता है |
127- पेट्रोल में कार्बन परमाणुओं की संख्या 5 से 10 तक होती है |
128- केरोसिन में कार्बन परमाणुओं की संख्या 11 से 12 तक होती है |
129- डीजल में कार्बन परमाणुओं की संख्या 13 से 15 तक होती है |
130- पैराफिन मोम में कार्बन परमाणुओं की संख्या 21 से 29 होती है |
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131- जब उच्च वसा वाले तेल को कास्टिक सोडा या कास्टिक पोटाश के साथ गर्म किया जाता है , तो सोडियम या पोटैशियम लवण के साथ ग्लिसरीन प्राप्त होता है | इन सोडियम या पोटैशियम लवण को साबुन तथा इस क्रिया को साबुनीकरण कहते हैं |
132- कास्टिक सोडा से बना साबुन कठोर साबुन होता है , जोकि जल के साथ कम झाग देता है |
133- कास्टिक पोटाश से बना साबुन मुलायम होता है , जो जल के साथ अधिक झाग देता है | दैनिक जीवन में मुलायम साबुन का उपयोग किया जाता है |
134- अच्छे साबुन के गुण
i) इसमें 10 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए |
ii) इसमें अत्यधिक मात्रा में क्षार नहीं होना चाहिए |
iii) इसमें कीटाणुनाशक पदार्थ होने चाहिए |
iv) अधिक झाग देने वाला होना चाहिए |
v) एल्कोहाल में पूर्ण रूप से विलेय होता चाहिए |
135- डिटर्जेंट या अपमार्जक बनाने के लिए सबसे पहले लारिल एल्कोहाल (C12H25OH) की अभिक्रिया सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ कराई जाती है |
अब उपरोक्त अभिक्रिया से प्राप्त लारिल सल्फ्यूरिक अम्ल(C12H25O.SO3H) की अभिक्रिया कास्टिक सोडा के साथ कराई जाती है , जिससे सोडियम लारिल सल्फेट ( C12H25O.SO3Na) प्राप्त होता है , जोकि एक डिटर्जेंट है |
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136- डिटर्जेंट के गुण
i) यह वसा रहित होते हैं
ii) कठोर तथा मृदु दोनों तरह के जल के साथ अधिक झाग देता है |
iii) इसका जलीय विलयन उदासीन होता है |
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शिवम राय says
बहुत अच्छा ऐसी पढ़कर मुझे सब समझ में आ गया। ऐसे ही मैं अपने दोस्तों में शेयर करूंगा।